
जब बर्नीहाट को दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर घोषित किया गया, तो एक सवाल सबसे ज्यादा उठने लगा — आखिर इतना छोटा सा कस्बा इतनी ज्यादा प्रदूषण कैसे फैला सकता है? इसके बाद कई रिपोर्टें सामने आईं, जिनमें इस संकट के कारण बताए गए — तेज औद्योगिक विस्तार, कस्बे की भौगोलिक बनावट और भारी डीजल गाड़ियों की बेतहाशा आवाजाही जो उस राजमार्ग से गुजरती हैं जो बर्नीहाट को चीरते हुए निकलता है।
लेकिन बर्नीहाट की रोजमर्रा की जिंदगी पर एक नजर डालें तो साफ लगता है कि यहां के निवासी इस भारी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार नहीं हैं। वे तो जहरीली हवा में फंसे हुए हैं और उन्हें बुनियादी सुविधाएं भी मयस्सर नहीं — जिनमें सबसे जरूरी है, एक सुचारू सार्वजनिक परिवहन प्रणाली।
नोंगकिल्लाह की रहने वाली मेरीना मारक रोजाना लोअर बलियान (राजाबागान) स्थित एक फैक्ट्री में काम पर जाने के लिए दौड़ती हैं। "मैं अपने घर से राष्ट्रीय राजमार्ग के पास वाले ऑटो स्टैंड तक पैदल जाती हूं, वहां से एक साझा ऑटोरिक्शा पकड़ती हूं और फिर लगभग 3-4 किलोमीटर पहले उतरकर बाकी रास्ता फिर पैदल तय करती हूं," उन्होंने बताया। मेरीना की तरह बॉबी शर्मा भी यही दिनचर्या दोहराती हैं।
उनकी यह कहानी सैकड़ों-हजारों लोगों से मेल खाती है जो अब बर्नीहाट में दोनों ओर लगी फैक्ट्रियों में काम करते हैं, क्योंकि यह इलाका अब एक पूर्ण औद्योगिक शहर में तब्दील हो गया है, जो असम और मेघालय की सीमाओं को छूता है।
बर्नीहाट का सड़क नेटवर्क बहुत कमजोर है और इसकी रीढ़ है — राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या 6 (एनएच-6), जो गुवाहाटी से थोड़ा आगे जोराबाट से शुरू होता है। कुछ ही मिनट की ड्राइव में 12वां माइल आता है — जो बर्नीहाट की सीमा पर है — जहां यह राजमार्ग दो प्रशासनिक हिस्सों में बंटता है: बाएं ओर असम, दाएं ओर मेघालय। यह विभाजन उमट्रेव नदी पुल तक चलता है, जिसके बाद एनएच-6 के दोनों ओर का क्षेत्र मेघालय में आता है।
इस विस्तृत बर्नीहाट क्षेत्र की शुरुआत 13वें माइल से होती है, जहां बर्नीहाट पोस्ट ऑफिस और केंद्रीय राज्य वन सेवा प्रशिक्षण संस्थान (सीएएसएफओएस) जैसे स्थल हैं। 14वें माइल पर बर्नीहाट का विकसित क्षेत्र शुरू होता है, जहां सड़क किनारे और आंतरिक इलाकों में फैक्ट्रियां धुआं उगलती हैं।
इन अंदरूनी मोहल्लों से — चाहे वे मेघालय में हों या असम में — लोग आमतौर पर साझा ऑटोरिक्शा के जरिए एनएच-6 तक पहुंचते हैं और उस पर सफर करते हैं। औद्योगिक होने के बावजूद, बर्नीहाट की अधिकतर आबादी निम्न-मध्यमवर्गीय हालात में रहती है। निजी वाहन अब भी विलासिता माने जाते हैं, इसी कारण यहां अक्सर जाम नहीं लगता।
कोंजर्वेशन ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट (सीटीआई) में पढ़ाने वाली शिक्षिका इआदा वाहलांग रोजाना नोंगकिल्लाह खासी से यहां आती हैं। उनके पति राजू पातर हर सुबह उन्हें काम पर छोड़ते हैं। लेकिन लौटते समय, इआदा को बाकी लोगों की तरह साझा ऑटोरिक्शा का ही सहारा लेना पड़ता है।
तीन पहिया वाहन एक अनौपचारिक लेकिन व्यवस्थित ढंग से काम करते हैं, जिन्हें असम और मेघालय दोनों के परिवहन विभागों से अनुमति मिली हुई है। हर ऑटो स्टैंड की अपनी समिति और वाहन सूची होती है। "एक स्टैंड से चलने वाले ऑटो दूसरे स्टैंड पर सवारी छोड़ सकते हैं, लेकिन वहां रुक नहीं सकते," डाउन टू अर्थ से बात करते हुए जोराबाट शनि मंदिर ऑटो स्टैंड के उपाध्यक्ष भुवनेश्वर डेका ने कहा। "हर वाहन को अपने स्टैंड पर लौटकर ही खड़ा होना होता है।"
डेका अपनी सुबह बर्नीहाट से शुरू करते हैं, रास्ते में अधिकतर छात्र और फैक्ट्रीकर्मी बैठते हैं। 12 किलोमीटर की यह दूरी सुबह के समय लगभग 20-25 मिनट में पूरी हो जाती है, जब ट्रकों की आवाजाही पर रोक रहती है। लेकिन रात 9 बजे के बाद, जब ट्रक दोबारा चलने लगते हैं, एनएच-6 लंबी कतारों में खड़े ट्रकों से जाम हो जाता है।
बर्नीहाट के ट्रैफिक प्रभारी सनी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि हर रात हजारों ट्रक बर्नीहाट से होकर गुवाहाटी की ओर जाते हैं — सिलचर, मिजोरम, शिलांग और मणिपुर जैसे पूर्वोत्तर के इलाकों से। "गुवाहाटी में सुबह 8 से रात 9 बजे तक ट्रकों की एंट्री पर रोक है, तो वे बर्नीहाट में ही राजमार्ग पर कतारबद्ध खड़े हो जाते हैं, जिससे भयंकर जाम लगता है," उन्होंने कहा।
ऑटो किराए एक तय ढांचे के अनुसार चलते हैं। बर्नीहाट से जोराबाट तक की सवारी 40 रुपये में होती है, लेकिन छात्रों से कम लिया जाता है — आमतौर पर 20-25 रुपये। "हमने एक अनौपचारिक समझ बनाई है कि छात्रों को छूट दी जाएगी," डेका ने बताया।
हालांकि ऑटो ही यहां की जीवनरेखा हैं, लेकिन कुछ निजी बसें भी चलती हैं। "एक बस बर्नीहाट से चलकर गुवाहाटी के आदाबाड़ी तक जाती है। यह रोज चलने वाली है, लेकिन सवारियों की कमी और बार-बार खराबी के कारण यह अक्सर नहीं चलती," एक निवासी ने बताया।
एक अन्य बस आदाबाड़ी से बर्नीहाट की ओर आती है — एनएच 27 के रास्ते, जो गुवाहाटी को ऊपरी असम से जोड़ता है। ये दोनों बसें मिलाकर दिन में दो बार से ज्यादा नहीं चलतीं।
कुछ पुरानी टाटा 407 मिनी बसें भी बर्नीहाट से गुवाहाटी के पालतन बाजार तक जाती हैं — जो रेलवे स्टेशन के पास स्थित एक व्यस्त टर्मिनस है, जिसे दिल्ली के पहाड़गंज जैसा माना जाता है, क्योंकि वहां सस्ते होटल और हर दिशा की बसें मिलती हैं।
सिद्धिक अली, जो इस 407 बस बेड़े का प्रबंधन करते हैं, ने बताया कि उनके मालिक के पास चार बसें हैं। "इनमें 20 लोग बैठ सकते हैं, लेकिन हम अक्सर आधी खाली चलाते हैं। आजकल तो बमुश्किल खर्च निकलता है — ज्यादातर लोग ऑटो ही पसंद करते हैं," उन्होंने डाउन टू अर्थ से कहा।
ऑटो स्टैंड प्रतिनिधियों से बात करके डाउन टू अर्थ ने अनुमान लगाया कि बर्नीहाट और आसपास हर दिन लगभग 1000 ऑटोरिक्शा चलते हैं, जो लोगों को अंदरूनी इलाकों और गुवाहाटी से जोड़ते हैं।
"सोनाईगांव, मौपुर या सरुतरी जैसे इलाकों में जाने के लिए ऑटो ही एकमात्र साधन हैं। वहां कोई बस या सरकारी परिवहन नहीं जाता," 14वें माइल ऑटो स्टैंड के ऑटो चालक और मौपुर निवासी हरि छेत्री ने कहा। उनका रास्ता कम सेवा प्राप्त क्षेत्रों को जोड़ता है और वह एक अहम कड़ी बनता है।
नोंगपो में जिला परिवहन कार्यालय से आधिकारिक आंकड़े प्राप्त करने की कोशिश नाकाम रही। क्योंकि दोनों राज्यों के ऑटो एक-दूसरे के क्षेत्रों में चलते हैं, इसलिए सटीक संख्या स्पष्ट नहीं है। फिर भी, ऑटो स्टैंड कर्मचारियों का अनुमान है कि कुल मिलाकर करीब 1000 वाहन नियमित रूप से चलते हैं। "हमारे स्टैंड पर ही 35 हैं," जोराबाट काली मंदिर ऑटो स्टैंड के कोषाध्यक्ष गोरजा बहादुर छेत्री ने कहा। "हर स्टैंड में थोड़ा फर्क है, लेकिन ज्यादा नहीं।"
औद्योगिक ताकत के बावजूद, बड़ी संख्या में फैक्ट्रियां स्थानीय मजदूरों पर पूरी तरह निर्भर नहीं हैं। बर्नीहाट के निवासी कई तरह के छोटे-मोटे काम करते हैं — कुछ फैक्ट्रियों में कम वेतन पर काम करते हैं, कुछ खेती करते हैं या छोटे व्यवसाय चलाते हैं।
लोअर बलियान के सुपारी किसान संजीत किलिंग की मासिक आय 20,000 रुपये से थोड़ी ज्यादा है। उसका एक तिहाई — लगभग 8,000 रुपये — उनके तीन स्कूली बच्चों के ऑटो किराए में चला जाता है। इससे साफ होता है कि परिवहन खर्च गरीब परिवारों की कमर तोड़ देता है।
यहां के अधिकतर स्कूल कक्षा 10 से ऊपर की पढ़ाई नहीं करवाते, इसलिए कई छात्रों — खासकर असम वाले इलाके से — को गुवाहाटी या सोनापुर जाना पड़ता है। "आसपास कोई अच्छा असमी माध्यम वाला उच्च विद्यालय नहीं है। कक्षा 10 से 12 के छात्र हर महीने 3,000 रुपये से ज्यादा सिर्फ सफर में खर्च करते हैं," सरकारी मिडिल स्कूल के शिक्षक अर्जुन डे ने बताया।
भारतीय जनता पार्टी के पूर्व मंडल अध्यक्ष हेमंता तिमुंग ने डाउन टू अर्थ को बताया कि बर्नीहाट में एक सरकारी डिग्री कॉलेज की सख्त जरूरत है।
"यहां कोई सरकारी कार्यालय नहीं है, कोई नगरपालिका नहीं है," 15वें माइल के नोंगथिम्माई इलाके की ब्रेसी नोंगरम ने कहा। "बर्नीहाट में जो भी माल बनता है, उससे कई राज्यों को फायदा होता है, लेकिन हम जहरीली हवा में जीते हैं और हमारे पास कोई स्थानीय शासन नहीं है।"
अपना बचपन याद करते हुए उन्होंने बताया, "हमने असम की तरफ हरियाली से भरे धान के खेत और दलदली जमीनें देखी थीं। लेकिन 2006 के बाद बेकाबू औद्योगिक विकास ने सब कुछ नष्ट कर दिया।"
प्रदूषण अब एक राजनीतिक मुद्दा बन चुका है। मेघालय के मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा पहले कह चुके हैं कि सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियां असम की ओर हैं। तिमुंग ने जोड़ा: "दोनों राज्यों के बीच मिलकर एक्शन प्लान बनाने की बात हुई थी, लेकिन कुछ नहीं हुआ। हां, मेघालय ने शुरुआत में कुछ प्रदूषण फैलाने वाली फैक्ट्रियां जरूर बंद कर दी थीं, जब बर्नीहाट को दुनिया के सबसे प्रदूषित कस्बों में गिना भी नहीं गया था।"
मार्च 2025 में वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय पर्यावरणीय इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (सीएसआईआर-नीरी) द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि सड़क की धूल पीएम 10 के 63 प्रतिशत स्रोत के रूप में सामने आई, जबकि उद्योग पीएम 2.5 के 38 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार थे। वाहनों से होने वाला प्रदूषण पीएम 10 के 14 प्रतिशत और पीएम 2.5 के 11 प्रतिशत के लिए जिम्मेदार था।
ऑटोरिक्शा और बसें सल्फर डाइऑक्साइड और नाइट्रोजन ऑक्साइड के उत्सर्जन में सबसे आगे हैं — लेकिन तिमुंग मानते हैं कि हर रात एक साथ जलने वाले हजारों ट्रकों के इंजन इस संकट को और भयानक बना देते हैं।