दिल्ली में खतरनाक प्रदूषण की पहचान करने में सरकार के वैज्ञानिक मॉडल विफल साबित हो रहे हैं। न ही खतरनाक प्रदूषण के लिए जिम्मेवार उत्सर्जन स्रोतों का पता चल पा रहा है और न ही मॉ़डल सही परिणाम बता पा रहे हैं। अगर आप भी वायु प्रदूषण की भविष्यवाणी को सही मानकर योजनाएं बना रहे हैं तो संभल जाइए।
अर्ली वार्निंग सिस्टम से जुड़े एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने डाउन टू अर्थ को बताया कि वायु प्रदूषण की पहचान करने वाला मॉडल फिलहाल सटीक जानकारी देने में असफल है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के एयर क्वालिटी अर्ली वार्निंग सिस्टम फॉर दिल्ली के फोरकास्टिंग की मानें तो 19 नवंबर, 2024 को दिल्ली के कई हिस्सों में न सिर्फ पार्टिकुलेट मैटर प्रदूषण का स्तर सामान्य हो जाएगा बल्कि हवा आपात स्तर से निकलकर सामान्य श्रेणी में आ जाएगी। आईआईटीएम के इसी डिसिजन सपोर्ट सिस्टम (डीएसएस) के जरिए प्रदूषण की तात्कालिक रोकथाम की योजनाएं भी बनाई जाती हैं। डिसिजन सपोर्ट सिस्टम प्रदूषण के सोर्स की जानकारी देने के साथ-साथ अगले पांच दिनों का पूर्वानुमान भी करता है।
रातो-रात दिल्ली में हवा के बेहतर हो जाने की जानकारी हैरान कर देने वाली है, लेकिन भरोसेमेंद बिल्कुल भी नहीं। क्योंकि डिसीजन सपोर्ट सिस्टम में जिस मॉडल के जरिए यह फोरकास्टिंग की जा रही है वह मॉडल प्रदूषण के स्तर को कम आंक रहा है।
2021 में शुरू की गई इस परियोजना को चलाने वाले इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (आईआईटीएम) के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने नाम न छापने की शर्त पर डाउन टू अर्थ को बताया कि करीब 50 फीसदी उत्सर्जन के स्रोत अभी तक पहचाने नहीं जा सके हैं। इसलिए दिल्ली में खतरनाक प्रदूषण की सटीक भविष्यवाणी मॉडल के जरिए करना मुश्किल है।
उन्होंने आगे कहा कि मिसाल के तौर पर 12 नवंबर, 2024 को दिल्ली में करीब 50 हजार शादियां थीं, इनमें होने वाली आतिशबाजी के उत्सर्जन को मॉडल के साथ नहीं जोड़ा जा सका। ऐसे ही कई अन्य उत्सर्जन स्रोत हैं जो अभी मॉडल के साथ जुड़ नहीं पाए हैं। इसलिए मॉडल पूरी सटीकता के साथ वायु प्रदूषण को भांप नहीं पा रहा और उसे कम आंक रहा है।
प्रदूषण को कम करके आंकना दरअसल एक बड़ी समस्या को जन्म देता है।
दरअसल, आईआईटीएम वेदर रिसर्च एंड फोरकास्टिंग-केमेस्ट्री मॉडल (डब्ल्यूएफआर-केम मॉडल) का इस्तेमाल प्रदूषण की जानकारी जुटाने के लिए करता है। यह एक विशेष प्रकार का वायुमंडलीय मॉडल है, जिसे मौसम और वायु गुणवत्ता दोनों को संयुक्त रूप से समझने और पूर्वानुमान करने के लिए विकसित किया गया है।
आईआईटीएम के वैज्ञानिक बताते हैं कि इसमें वातावरण की परिस्थितियों के सात रासायनिक और भौतिक प्रक्रियाओं का भी अध्ययन किया जाता है। मिसाल के तौर पर हवा का रुख क्या होगा और वह किस-किस तरह के उत्सर्जन को साथ लाएगा।
वह बताते हैं कि अभी मुश्किल यह है कि हमारे पास फायर काउंट डेटा नहीं है। हम आईएआरआई के फायर काउंट डेटा का इस्तेमाल कर रहे हैं। इसके अलावा हमें यह पता नहीं होता कि अगले दिन कितनी और किस तरह की फायर बर्निंग होगी। यदि भविष्य में फायर डेटा ठीक होता है तो वायु प्रदूषण की सटीक जानकारी दी जा सकती है।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने भी 18 नवंबर को वायु प्रदूषण की खतरनाक स्थितियों के बावजूद समय से ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के सख्त कदम न उठाए जाने पर सरकार को फटाकारा। साथ ही अपनी टिप्पणी में कहा कि यदि वायु गुणवत्ता सूचकांक 450 से नीचे आ भी जाए तो ग्रेप के स्टेज 4 को हमसे पूछे बिना बंद न किया जाए।
बहरहाल भले ही आईआईटीएम का मॉडल वायु प्रदूषण की सही और सटीक जानकारी जुटाने में विफल साबित हो रहा हो और कम एक्यूरेसी वाला पूर्वानुमान दे रहा हो, आईआईटीएम के वैज्ञानिक अपने अनुभवों के आधार पर दिल्ली की हवा को अगले तीन दिन तक गंभीर श्रेणी में ही बने रहने का अनुमान लगा रहे हैं। यानी स्मॉग से छुटकारा नहीं है। बच्चों और बुजुर्गों को घर से बाहर न निकलने की खास सलाह दी जा रही है।