सांसों का आपातकाल : वायु प्रदूषण कुपोषण और धूम्रपान से भी ज्यादा खतरनाक

सीएसई की नई किताब "सांसों का आपातकाल" के दूसरे अध्याय में वायु प्रदूषण के कारण सेहत पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों का विश्लेषण
मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे अपेक्षाकृत बेहतर वायु गुणवत्ता वाले शहरों में भी मृत्यु दर काफी ज्यादा है।
मुंबई, कोलकाता और चेन्नई जैसे अपेक्षाकृत बेहतर वायु गुणवत्ता वाले शहरों में भी मृत्यु दर काफी ज्यादा है। फोटो साभार: विकास चौधरी, सीएसई
Published on

बाहरी और घरेलू वायु प्रदूषण के बीच एक छुपा हुआ लेकिन गहरा रिश्ता है। भारत सरकार के केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन “स्टीयरिंग कमेटी ऑन एयर पॉल्यूशन एंड हेल्थ” की 2015 की रिपोर्ट के अनुसार, घर के भीतर पैदा होने वाला वायु प्रदूषण भी बाहर के वायु प्रदूषण को 25-30 प्रतिशत तक बढ़ा सकता है। घर में होने वाले वायु प्रदूषण के प्रभाव पर भारत में महामारी विज्ञान से संबंधित कई अध्ययन हुए हैं। चेन्नई के श्री राम मेडिकल कॉलेज की कल्पना बालकृष्णन और उनकी टीम ने देश की पहली “मदर–चाइल्ड कोहोर्ट स्टडी” की है। इस रिसर्च में गर्भावस्था के दौरान पीएम 2.5 के संपर्क और नवजात शिशुओं के वजन में गिरावट के बीच के संबंध को ट्रैक किया गया। इससे पता चला कि गर्भावस्था के दौरान पीएम 2.5 के संपर्क में 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की बढ़ोतरी होने से जन्म के समय शिशु के वजन में औसतन 4 ग्राम वजन की कमी आ सकती है जिससे कम वजन वाले बच्चों की संख्या में 2 प्रतिशत तक वृद्धि देखी गई। वहीं, जिन घरों में ठोस ईंधन का इस्तेमाल किया जाता है, वहां शिशुओं के जन्म में औसतन 70 ग्राम तक की गिरावट पाई गई।

हालांकि, मार्च 2023 में प्रकाशित एक वैश्विक अध्ययन “ग्लोबल, रीजनल, एंड नेशनल बर्डन ऑफ एंबिएंट एंड हाउसहोल्ड पीएम 2.5 रिलेटेड नियोनेटल डिसऑर्डर्स, 1990-2019” के अनुसार, घरेलू पीएम 2.5 के कारण होने वाले वैश्विक नवजात विकारों के बोझ में पिछले 30 वर्षों में 38.35 प्रतिशत की कमी आई है। इकोटॉक्सिकोलॉजी एंड एनवायरनमेंटल सेफ्टी में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, इसकी प्रमुख वजह इस दौरान घरेलू पीएम 2.5 से जुड़े नवजात रोगों में 52.33 प्रतिशत की गिरावट दर्ज हुई है। आईएचएमई की रिपोर्ट “स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2019” के अनुसार, भारत में खाना पकाने के लिए 2005 में 76 प्रतिशत घरों में ठोस ईंधन का इस्तेमाल किया जाता था, जो 2017 में घटकर 60 प्रतिशत पर आ गया। यह कमी देश में एलपीजी जैसी स्वच्छ ऊर्जा की उपलब्धता में हुए सुधार के बाद आई है। हालांकि, अभी भी निम्न आय वर्ग के बीच ठोस ईंधन का इस्तेमाल अधिक हो रहा है और पीएम 2.5 से होने वाले नवजात रोगों के दो तिहाई बोझ के लिए यही ठोस ईंधन जिम्मेदार है।

8 अप्रैल, 2022 को साइंस एडवांस में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, 2005-2018 के दौरान भारत के प्रमुख महानगरों में वायु प्रदूषण के कारण एक लाख से ज्यादा लोगों की असमय जान चली गई। बेंगलुरु, हैदराबाद, कोलकाता और पुणे उन शहरों में हैं, जहां प्रति एक लाख जनसंख्या पर असमय मौतें सबसे ज्यादा रहीं। इस अवधि के दौरान बेंगलुरु में प्रति लाख 93.9, हैदराबाद में 96.4, कोलकाता में 82.1 और पुणे में 73.6 असमय मौतें हुईं। मुंबई, सूरत, चेन्नई और अहमदाबाद में भी प्रति एक लाख जनसंख्या पर क्रमश: 65.5, 58.4, 48 और 47.7 अकाल मौतें दर्ज की गईं। इस शोध पत्र के प्रमुख लेखक और यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के रिसर्च फेलो कर्ण वोहरा ने कहा, “हम उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में तेजी से बढ़ते शहरों पर अध्ययन करना चाहते थे, जिनके साल 2100 तक मेगासिटी बनने का अनुमान है और इनमें से 8 शहर भारत में हैं।”

इस अध्ययन का मकसद उन शहरों में हवा की गुणवत्ता में होने वाले दीर्घकालिक बदलावों को आंकना था, जहां ग्राउंड-लेवल मॉनिटरिंग नेटवर्क सीमित हैं। 2005 से 2018 के बीच उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में वायु प्रदूषकों का डेटा इकट्ठा करने के लिए वोहरा और उनके सहयोगियों ने नासा और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के उपग्रहों पर लगे उपकरणों पर भरोसा किया। वोहरा ने कहा, “उष्णकटिबंधीय क्षेत्र वायु प्रदूषण का नया केंद्र हैं, जहां जनसंख्या अभूतपूर्व गति से बढ़ रही है, लेकिन प्रदूषण से निपटने के लिए नीतियां और बुनियादी ढांचा अब तक नहीं विकसित हो पाया है।”

शोध में यह पाया गया कि 2005 से 2018 के बीच पूरी दुनिया में वायु प्रदूषकों का स्तर हर साल लगातार बढ़ा। उष्णकटिबंधीय शहरों में वायुमंडल में नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (एनओ2) में 14 फीसदी तक बढ़ गई, जबकि पार्टिकुलेट मैटर (पीएम 2.5) की मात्रा 8 फीसदी बढ़ी। टीम ने पाया कि 2005 में कोलकाता में 39,200, अहमदाबाद में 10,500, सूरत में 5,800, मुंबई में 30,400, पुणे में 7,400, बेंगलुरु में 9,500, चेन्नई में 11,200 और हैदराबाद में 9,900 अकाल मौतें दर्ज की गई थीं। 2018 में ये आंकड़े कोलकाता के लिए बढ़कर 54,000, अहमदाबाद के लिए 18,400, सूरत के लिए 15,000, मुंबई के लिए 48,300, पुणे के लिए 15,500, बेंगलुरु के लिए 21,000, चेन्नई के लिए 20,800 और हैदराबाद के लिए 23,700 हो गए। कुल मिलाकर, भारत में 2005 में लंबे समय तक पीएम 2.5 के संपर्क में रहने से 1,23,900 अकाल मौतें हुईं, जो 2018 में बढ़कर 2,23,200 तक पहुंच गईं।

खराब हवा की वजह से भारत के लोग अपनी उम्र का एक बड़ा हिस्सा खो रहे हैं। 2022 में यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो द्वारा प्रकाशित एक विश्लेषण रिपोर्ट के अनुसार, दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी मानी जाती है और इस कारण यहां के लोगों की उम्र में औसतन 10 साल तक की कमी आ रही है। वायु प्रदूषण के कारण हर भारतीय की उम्र औसतन 5 साल कम हो रही है। शिकागो विश्वविद्यालय के द एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की तरफ से जुलाई 2022 में जारी एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स (एक्यूएलआई) के अनुसार, उम्र में कम हो रहे सालों का आकलन डब्ल्यूएचओ द्वारा निर्धारित पीएम 2.5 की गाइडलाइन (5 माइक्रोग्राम प्रति घनमीटर) के आधार पर किया गया है। यह रिपोर्ट कहती है कि अगर हमारे देश की हवा विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों जितनी साफ होती, तो हम 5 साल ज्यादा जीते। यह बहुत गंभीर बात है, क्योंकि बाल और मातृ कुपोषण से उम्र 1.8 साल घटती है और धूम्रपान से लगभग 2 साल। इसका मतलब है कि वायु प्रदूषण, कुपोषण और धूम्रपान से भी ज्यादा खतरनाक है।

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in