सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर कोहरे और वायु प्रदूषण के मिश्रण (स्मॉग) की चपेट में आ जाता है। फोटो: विकास चौधरी
सर्दियों में दिल्ली-एनसीआर कोहरे और वायु प्रदूषण के मिश्रण (स्मॉग) की चपेट में आ जाता है। फोटो: विकास चौधरी

दिल्ली का वायु संकट: हवा की सफाई या आकड़ों की बाजीगरी?

दिल्ली में वायु गुणवत्ता मापने वाले निगरानी स्टेशनों की बड़ी व्यापक संख्या है। हालांकि, चौंकाने वाला यह है कि कई निगरानी केंद्र उन जगहों पर लगाए गए हैं, वैज्ञानिक मानको के अनुरूप उन्हें वहां नहीं होना चाहिए
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दिल्ली की हवा साल दर साल जहरीली होती जा रही है। शहरीकरण, वाहनों की भीड़, औद्योगिक गतिविधियों और अनियंत्रित निर्माण कार्यों ने मिलकर राजधानी को एक गैस चैंबर में तब्दील कर दिया है। वायु प्रदूषण अब केवल एक मौसमी समस्या नहीं, बल्कि साल भर के लिए एक सतत स्वास्थ्य आपातकाल बन चुका है।  मगर अफसोस कि दिल्ली में घर कर गयी  वायु प्रदूषण से सार्वजनिक स्वास्थ्य से बचाव के लिए जिन जरुरी कदम उठाने की दरकार थी, उसके बजाय सरकारी तंत्र और व्यस्थायें आंकड़ों की चमक-दमक के पीछे भागती दिख रही हैं।

दिल्ली में वायु गुणवत्ता की निगरानी के लिए एक बहुस्तरीय ढांचा मौजूद है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) द्वारा संचालित 40 से अधिक सतत निगरानी केंद्र समूचे शहर में कार्यरत हैं। कागज पर यह व्यवस्था व्यापक प्रतीत होती है, लेकिन जमीनी सच्चाई कहीं अधिक जटिल और चिंताजनक है। कई निगरानी केंद्रों उन जगहों पर लगाए गए हैं जहा वैज्ञानिक मानको के अनुरूप उन्हें नहीं होना चाहिए। इसका नतीजा यह है कि वायु प्रदूषण के वास्तविक स्तर का पता नहीं लग पाता।

केंद्रीय एजेंसियों और नियंत्रकों और महालेखापरीक्षक (कैग) की हालिया रिपोर्टें और न्यूजलांड्री के एक अध्ययन साफ तौर पर बताती हैं कि निगरानी नेटवर्क में पारदर्शिता और वैज्ञानिक ईमानदारी का अभाव है। दिल्ली में पिछले महीने आई नयी सरकार प्रदूषण के मसले पर संजीदा दिख रही है चाहे यमुना की सफाई का मुद्दा हो या फिर दिल्ली की खराब हवा। इसी कवायद में दिल्ली सरकार की राजधानी में छह नए सतत परिवेश वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशन (सीएएक्यूएमएस) स्थापित करने की हालिया पहल ने विवाद पैदा कर दिया है।

हालांकि यह निर्णय एक सकारात्मक पहल की तरह प्रस्तुत किया गया, परंतु गहन विश्लेषण से स्पष्ट होता है कि नए स्टेशनों के लिए चयनित स्थान - जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली छावनी, राष्ट्रमंडल खेल परिसर और इसरो अर्थ स्टेशन जैसे इलाके,अपेक्षाकृत स्वच्छ और हरित क्षेत्र हैं। इन स्थानों में वायु गुणवत्ता पहले से ही राजधानी के अन्य औद्योगिक या भीड़भाड़ वाले क्षेत्रों की तुलना में काफी बेहतर रहती है। जब असली संकट आनंद विहार, मुंडका, नांगलोई, ओखला, वजीरपुर जैसे घनी आबादी और भारी प्रदूषण वाले इलाकों में पसरा हुआ है, तब निगरानी का विस्तार अपेक्षाकृत स्वच्छ क्षेत्रों तक करना एक तरह से वायु प्रदुषण के विकराल होते संकट को छुपाने की चतुराई है। 

ऐसे में छ: नए स्टेशनों के चयन से दिल्ली का औसत वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) कृत्रिम रूप से सुधरता दिखाई देगा, जबकि धरातल पर प्रदूषण की भयावहता जस की तस बनी रहेगी। यह आंकड़ों का सौंदर्यीकरण महज कागजी राहत प्रदान कर सकता है, वास्तविकता में दिल्ली वालो के उखाड़ते सांसों में कोई सुकून नहीं ला सकता। औसत एक्यूआई के आकड़ो में सुधार दिखाने की रणनीति प्रदुषण और शहरी के नीतिगत निर्णयों को भी भ्रमित करने वाला हो सकता है। 

अभी दिल्ली में एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग के 40 स्टेशन है, जिसमें  कम से कम दस औद्योगिक  इलाको में (जैसे मुंडका, वजीरपुर, जहांगीरपुर), सात हरित क्षेत्रो में  जैसे (लोदी गार्डन, ओखला पार्क), आठ रिहायसी इलाको में (जैसे आर के पुरम, पंजाबी बाग) और बाकी  ट्रैफिक, बिज़नेस केंद्र जैसे भीड़-भाड़ क्षेत्रो में हैं।  जैसा कि  कई रिपोर्ट अपर्याप्त एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग नेटवर्क की ओर इशारा कर चुके हैं। सघन जनसंख्या वाले आवासीय क्षेत्र, भीड़भाड़ वाले यातायात जंक्शन, औद्योगिक क्षेत्र, लैंडफिल और कूड़ा निस्तारण के इलाके और नयी बसावट और निर्माण के क्षेत्र वो जगहें  हैं  जहां अधिकांश लोग, विशेष रूप से बच्चे और बुजुर्ग, प्रदूषित हवा के लंबे समय तक संपर्क के प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभावों से सबसे अधिक प्रभावित हैं। दिल्ली में वायु  निगरानी तंत्र के विस्तार के लिए उपरोक्त स्थानों को प्राथमिकता देने की जरुरत है। उदाहरण के लिए ओखला, नांगलोई और उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कुछ हिस्से में अभी भी चौबीसों घंटे निगरानी नहीं है। दिल्ली के मॉनिटरिंग स्टेशन के भौगोलिक विस्तार को देखे तो दक्षिण-पश्चिम और उत्तर-पश्चिम के बाहरी इलाकों में मॉनिटरिंग स्टेशन के विस्तार की जरुरत है। दिल्ली के वायु गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क का वितरण असमान और असंतुलित है। ऐसे में बिना व्यापक और वैज्ञानिक निगरानी के न तो वास्तविक वायु प्रदूषण हॉटस्पॉट पहचाने जा सकते हैं और न ही ठोस सुधारात्मक उपायों की योजना बन सकती है।

वास्तव में, अपेक्षाकृत साफ हरित इलाको और स्वच्छ परिसरों, जैसा कि प्रस्तावित सभी नए केंद्र है भी, में वायु प्रदुषण निगरानी तंत्र स्थापित करने का वैज्ञानिक औचित्य हो सकता है, क्योंकि ये दीर्घकालिक रुझानों और तुलनात्मक शोध के लिए एक प्रकार के नियंत्रण समूह की भूमिका निभा सकते हैं। लेकिन जब पूरा शहर वायु प्रदुषण के कारण सार्वजनिक स्वास्थ्य आपातकाल का सामना कर रहा हो, तब नीतिगत में प्राथमिकता उन इलाकों को मिलनी चाहिए जहाँ वायु प्रदूषण का स्तर सर्वाधिक है और जहां सबसे अधिक जनसंख्या निवास करती है। वर्तमान परिदृश्य में आंकड़ों के सौंदर्यीकरण की कोशिश सरकार की नादानी और तकनीकी समझ की कमी का परिणाम हो सकती है। इससे तत्कालीन राजनीतिक लाभ दिखने भी लगे, लेकिन दीर्घकालिक रूप से दिल्लीवासियों को शायद ही कोई सकारात्मक परिणाम मिले।

दिल्ली का सरकारी अमला एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग खासकर स्वास्थ्य सम्बन्धी तकनीकी पहलू  को दरकिनार कर औसत वायु गुणवत्ता के हिसाब किताब के केवल सांख्यिकी पहलू पर जोर देता दिख रहा है। वायु प्रदूषण पर चिंता का महत्वपूर्ण कारण है उसका स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव है। औसत एयर क्वालिटी निर्धारण में अक्सर दो किस्म की विसंगतियाँ होने की सम्भावना रहती हैं, कम प्रदूषण के बदले ज्यादा प्रदूषण की गणना और इसका उल्टा यानि ज्यादा प्रदूषित के बदले कम प्रदूषण की गणना हो जाना। ये दोनों त्रुटियां शहर में प्रदूषण के क्षेत्रीय विस्तार और मोनिटरिंग स्टेशन के वितरण से प्रभावित होती हैं। इन दोनों विसंगतियों में दूसरी वाली विसंगति जहाँ असल में अधिक प्रदूषण वाले क्षेत्र में कम प्रदूषण रिकार्ड होगा, अनजाने में जहरीला पानी को साफ समझ कर पीने की स्थिति का द्योतक है! हरित और अपेक्षाकृत साफ-सुथरे इलाकों में स्वास्थ्य नेटवर्क  का विस्तार हमें यही परिणाम देने वाला कदम है।

दिल्ली सरकार द्वारा स्थापित मॉनिटरिंग स्टेशनों के स्थान चयन में पारदर्शिता का अभाव दिखता है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रदूषण के असली स्रोतों को उजागर करने से बचने के लिए जानबूझकर कम प्रदूषित इलाकों को चुना गया है। स्वास्थ्य नीति का मूल सिद्धांत यही होना चाहिए कि समस्या की पहचान पूरी ईमानदारी और वैज्ञानिक विधि से की जाए। अगर मूलभूत डेटा ही विकृत हो जाए, तो न तो कोई प्रभावी हस्तक्षेप संभव है, और न ही स्वास्थ्य आपदा को टाला जा सकता है।

सरकारी स्तर का ये मौजूदा फैसला ख़राब या प्रदूषित हवा को केवल कम प्रदूषित हवा मान लेने भर का मामला नहीं है। शहर का औसत एयर क्वालिटी महत्वपूर्ण सार्वजनिक स्वास्थ्य परामर्शों, गंभीर प्रदूषण की घटनाओं के दौरान स्कूल-कॉलेज बंद करने, कार्यालयों में ऑनलाइन गतिविधि संबंधी निर्णयों और पर्यावरण और शहरी नियोजन के दूरगामी रणनीतियों के निर्धारण सहित अनेक सरकारी और गैर-सरकारी निर्णयों के लिए आधार का काम करता है। खासकर सर्वोच्च नयायालय के दखल के बाद 2016 से दिल्ली में ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान के लागू  होने के बाद शहर का औसत एयर क्वालिटी इंडेक्स शहर के हर कार्यकलाप का पैमाना बन गया है। ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान दिल्ली-एनसीआर में बढे हुए वायु-प्रदूषण के स्तर को तात्कालिक रूप से नियंत्रित करने की आपातकालीन व्यवस्था है, जिसमें  मुख्य रूप से निर्माण गतिविधि, शिक्षण, यातायात में स्तरीय नियंत्रण शामिल है। 

दिल्ली की वायु गुणवत्ता में सुधार के लिए निगरानी नेटवर्क का पुनर्गठन एक प्राथमिक आवश्यकता बन चुका है। दिल्ली में एयर मॉनिटरिंग ढांचे का विस्तार एक सकारात्मक कदम हो सकता है, लेकिन नए सीएएक्यूएमएस को मुख्य रूप से अपेक्षाकृत स्वच्छ, हरे-भरे क्षेत्रों में स्थापित करने की वर्तमान रणनीति एक भ्रामक दृष्टिकोण प्रतीत होती है, जिससे ना सिर्फ सार्वजनिक स्वास्थ्य चेतावनियाँ बल्कि प्रदूषण कम करने के प्रयास गलत दिशा में जा सकते  हैं। वर्तमान परिदृश्य में दिल्ली एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है जहां वायु प्रदूषण का संकट नीतिगत चूक और इच्छाशक्ति की परीक्षा ले रहा है। आंकड़ों का मेकअप करके न तो हवा साफ होगी और ना ही दमघोटू हवा से निजात मिलेगी। ऐसे में जरुरत है कि नीति निर्माताओं की प्राथमिकता जनस्वास्थ्य हो, न कि आंकड़ों की चमकती तस्वीरें और सरकार पारदर्शीपूर्ण तरीके से और तकनीकी पक्ष के आधार पर प्रदूषण नियंत्रण की नीति लागू  करे।    

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