भारत के उत्तरी और मध्य भागों के बड़े हिस्से जब 29 मई, 2024 को अत्यधिक लू की चपेट में थे, तब नई दिल्ली में भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुंगेशपुर स्वचालित मौसम स्टेशन ने 52.9 डिग्री सेल्सियस तापमान दर्ज किया।
यह देश में दर्ज किया गया अब तक का सबसे अधिक तापमान बताया गया था। हालांकि मौसम एजेंसी ने तुरंत रीडिंग का खंडन किया, यह समझाते हुए कि असामान्य तापमान ‘सेंसर या स्थानीय कारक में त्रुटि के कारण हो सकता है’।
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दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में कई अन्य मौसम स्टेशनों ने उस दिन 45.2 डिग्री सेल्सियस से 49.1 डिग्री सेल्सियस के बीच तापमान दर्ज किया था। गुजरात और राजस्थान लू से सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। गुजरात में 15 मई से 26 मई के बीच भीषण लू के 12 दिन और राजस्थान में 11 दिन दर्ज हुए। कई शहरों में मई के लिए गर्मी के सर्वकालिक रिकॉर्ड ध्वस्त हो गए। इसमें चंडीगढ़ भी शामिल है, जहां 29 मई को तापमान 46.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया, जिससे मई 1988 में शहर का 46.5 डिग्री सेल्सियस तापमान का रिकॉर्ड टूट गया।
गर्मी के मौसम में देश के इन हिस्सों में लू सामान्य है। आईआईटी बॉम्बे में जलवायु अध्ययन के प्रोफेसर और मैरीलैंड यूनिवर्सिटी, अमेरिका में एमेरिटस प्रोफेसर रघु मर्तुगुड्डे कहते हैं, “लेकिन इस साल इस गर्मी ने उन्हें दंडित किया, जो अरब सागर से बहने वाली गर्म हवाओं से आया था।” मार्च 2022 में अर्थ साइंस रिव्यू में प्रकाशित शोध के अनुसार, अरब सागर पिछले कुछ दशकों में 1.2 डिग्री सेल्सियस से 1.4 डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो गया है। आमतौर पर, पश्चिम से अरब सागर से गर्म हवाओं का प्रवेश उत्तरपूर्व से आने वाली तेज व्यापारिक हवाओं को रोकता है। लेकिन इस साल यह अलग था।
इजरायल में रेहोवोट स्थित वाइजमान इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के री चेम्के का सुझाव है कि इस साल भारत में असामान्य हीटवेव का एक संभावित कारण हैडली सेल में व्यापारिक हवाओं का कमजोर होना हो सकता है। चेम्के, मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी, अमेरिका के जन्नी युवल के साथ उष्णकटिबंधीय महासागर के समुद्री सतह के ऊपर वायुमंडलीय दाब के डेटा का विश्लेषण किया है, जो सीधे व्यापारिक हवाओं की ताकत से जुड़ी हुई है।
चेम्के कहते हैं, “हमें हैडली सेल की ताकत के बारे में सार्थक जानकारी के लिए जहाजों से सी-लेवल प्रेशर का माप प्राप्त हुआ।” उनके निष्कर्ष अप्रैल 2023 में नेचर पत्रिका में प्रकाशित हुए थे। निष्कर्ष हैडली परिसंचरण और व्यापारिक हवाओं के कमजोर होने की पुष्टि करते हैं।
चेम्के के अनुसार, कमजोर व्यापारिक हवाएं भी अप्रैल की शुरुआत में पूर्वी और दक्षिणी भारत द्वारा अनुभव की गई आर्द्र हीटवेव का कारण हो सकती हैं। तापमान और आर्द्रता के संयुक्त प्रभाव की विशेषता वाली आर्द्र हीटवेव आमतौर पर तट के साथ-साथ उससे सटे इलाकों में अनुभव की जाती हैं। लेकिन इस अप्रैल में, तट से दूर के स्थानों ने भी इस स्थिति का अनुभव किया।
इस स्थिति का कारण बंगाल की खाड़ी और अरब सागर का सामान्य से ज्यादा गर्म रहना था। इससे समुद्रों के ऊपर भारी मात्रा में नमी आ गई, जिसे फिर तेज हवाओं द्वारा देश के भीतरी क्षेत्रों में (अंतर्देशीय) लाया गया। आईएमडी के पूर्व निदेशक और जलवायु वैज्ञानिक के रमेश बताते हैं,“अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के ऊपर दो विशाल एंटीसाइक्लोन ने ओडिशा और पश्चिम बंगाल के साथ-साथ महाराष्ट्र के कोंकण क्षेत्र में हवाओं को लाया।”
एंटीसाइक्लोन उच्च वायुमंडलीय दबाव के क्षेत्र होते हैं जहां हवाएं नीचे की ओर डूबने वाली गति में चलती हैं, संकुचित होती हैं और गर्म होती हैं। रमेश आगे कहते हैं,“इन एंटीसाइक्लोन से हवाएं समुद्र से भूमि पर नमी पंप कर रही थीं, जिससे भीतरी क्षेत्रों में भी सापेक्ष आर्द्रता का स्तर बढ़ गया।” चेम्के बताते हैं कि अगर व्यापारिक हवाएं एंटीसाइक्लोन को हटाने में सक्षम होतीं तो ऐसा नहीं होता।
व्यापारिक पवनों के कमजोर होने का कारण बताते हुए, अमेरिका के राष्ट्रीय महासागरीय और वायुमंडलीय प्रशासन (नोआ) और यूके के मेट ऑफिस ने उत्तर अटलांटिक महासागर बेसिन में एक अति सक्रिय तूफान मौसम की भविष्यवाणी की है। नोआ की वेबसाइट पर जानकारी दी गई है, “आगामी अटलांटिक तूफान मौसम में सामान्य से अधिक गतिविधि होने की उम्मीद है, जो कई कारकों के मेल की वजह से है।
इनमें अटलांटिक महासागर का तकरीबन रिकॉर्ड स्तर का गर्म समुद्री तापमान, प्रशांत महासागर में ला नीना स्थितियों का विकास, अटलांटिक व्यापारिक पवनों का कम होना और हवा की दिशा और गति में परिवर्तन में कमी आना शामिल हैं। ये सभी उष्णकटिबंधीय तूफान के निर्माण में बड़ी भूमिका निभाते हैं।”
नोआ के मौसम वैज्ञानिकों ने 17-25 उष्णकटिबंधीय तूफान की भविष्यवाणी की है जिनमें हवा की रफ्तार 63 किलोमीटर प्रति घंटे से भी ज्यादा हो सकती हैं। इनमें से 8 से 13 तूफानों में 119 किमी प्रति घंटे से ज्यादा रफ्तार से तेज हवाओं के चलने का पूर्वानुमान है। 4 से 7 तूफान बहुत ही भीषण रूप ले सकते हैं और श्रेणी 3 (हवा की रफ्तार 178-208 किमी/घंटा),4 (हवा की रफ्तार 209-251 किमी/घंटा) या 5(हवा की रफ्तार 252 किमी/घंटा से अधिक) के महातूफान में तब्दील हो सकते हैं।
अमेरिका के लिए विनाशकारी भविष्यवाणी है, जो इस साल एक अत्यंत व्यस्त तूफान और बवंडर के मौसम का सामना कर रहा है। बवंडर एक संकीर्ण, बहुत ही तेजी से घूमने वाला हवा का स्तंभ है जो आसमान में काफी ऊंचाई से लेकर साथ जमीन तक फैला हुआ होता है। 100-320 किमी प्रति घंटे की रेंज में हवा की गति के साथ, यह घरों को तोड़ सकता है, पुलों को तबाह कर सकता है, वाहनों को उड़ा सकता है और जान ले सकता है।
नोआ के तूफान पूर्वानुमान केंद्र के अनुसार, अकेले मई 2024 में 570 शुरुआती बवंडरों की सूचना मिली थी। ये आंकड़ा कितना बड़ा है, इसे इससे समझ सकते हैं कि ये 1991 से 2020 के बीच मई महीने में आए अबतक के बवंडरों के औसत के दोगुने से भी ज्यादा है। अप्रैल में 384 बवंडर देखा गया, जो दूसरा सबसे बड़ा आंकड़ा है।
वैज्ञानिक अभी तक इस साल के बवंडर के प्रकोप के पीछे के कारणों की पहचान कर रहे हैं। वे लंबे समय से जानते हैं कि जेट स्ट्रीम की ताकत बवंडर निर्माण के कारकों में बहुत ही महत्वपूर्ण कारक है। और अब सबूत है कि सबसे तेज जेट स्ट्रीम हवाएं या जेट स्ट्रीक बहुत तेज हो रही हैं।
अमेरिका के राष्ट्रीय वायुमंडलीय अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिक ओसायु मियावाकी ने दिसंबर 2023 में शिकागो यूनिवर्सिटी अमेरिका में भूभौतिकीय विज्ञान के प्रोफेसर टिफनी शॉ के साथ नेचर क्लाइमेट चेंज में एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया था। उसमें कहा गया है कि वैश्विक तापमान में 1° डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने पर सबसे तेज जेट स्ट्रीक 2 प्रतिशत तेज हो जाएगी। मियावाकी ने निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए पृथ्वी के जलवायु मॉडलों के साथ टेस्ट भी कई।
वह कहते हैं, “जेट स्ट्रीक तेज हो रही है, इस बारे में पहले भी रिपोर्ट किया गया है, लेकिन हमने जो पाया है वह यह है कि यह परिवर्तन बहुत तेजी से हो रहा है, कई गुना तेज।” मियावाकी बताते हैं कि जेट स्ट्रीम भूमध्य रेखा और ध्रुवीय क्षेत्रों के बीच तापमान और आर्द्रता के अंतर से अपनी ताकत प्राप्त करते हैं। ग्रीनहाउस वार्मिंग क्षोभ मंडल की ऊपरी परत में इस अंतर को बढ़ा रहा है जहां जेट स्ट्रीम प्रबल होती है।
इसका मतलब है कि वातावरण के सबसे ऊंचे स्तर पर उष्णकटिबंधीय क्षेत्र ध्रुवीय क्षेत्रों की तुलना में बहुत तेजी से गर्म हो रहे हैं। इसके अलावा, वैश्विक तापमान में हर एक डिग्री की वृद्धि के साथ नमी की मात्रा में 7 प्रतिशत का इजाफा हो जाता है, जिससे संबंध गुणात्मक हो जाता है। वह यह भी बताते हैं कि ध्रुवीय पूर्वी हवाओं की ताकत भी कम हो रही है क्योंकि भूमध्य रेखा के ऊपर क्षोभमंडल की निचली परत और ध्रुवीय क्षेत्रों के बीच अंतर कम हो रहा है।
शॉ समझाते हैं, “जैसे-जैसे भूमध्य रेखा और ध्रुवीय क्षेत्रों के तापमान का अंतर बढ़ता है, वायुमंडल के उन हिस्सों में भी तापमान और आर्द्रता का अंतर बढ़ता है जहां जेट स्ट्रीम बहती है। इससे स्थानीयकृत जेट स्ट्रीम हवाएं या जेट स्ट्रीक तेज हो जाती हैं।” वह यह भी कहते हैं कि सबसे तेज जेट स्ट्रीम हवाएं आमतौर पर उत्तरी गोलार्द्ध में सर्दियों के मौसम के दौरान होती हैं। क्या यह तब अमेरिका में बवंडर की बढ़ती आवृत्ति का कारण हो सकता है?
मियावाकी कहते हैं कि इस संभावना को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जेट स्ट्रीम के व्यवहार में ये परिवर्तन भी पश्चिमी विक्षोभ के पैटर्न में बदलाव के पीछे का कारण हो सकता है। पश्चिमी विक्षोभ अति-उष्णकटिबंधीय तूफान हैं जो उपोष्णकटिबंधीय जेट के साथ यात्रा करते हैं। इससे सर्दियों के महीनों में हिंदू कुश, कराकोरम और पश्चिमी हिमालय में बारिश और बर्फबारी लाते हैं। ये नमी से लदे तूफान क्षेत्र की जल सुरक्षा और कृषि के लिए महत्वपूर्ण हैं। हालांकि, पश्चिमी विक्षोभ अब गर्मियों के दौरान पहले की तुलना में अधिक बार दिखाई देते हैं।
ब्रिटेन की रीडिंग यूनिवर्सिटी में नेशनल सेंटर फॉर एटमॉस्फरिक साइंसेज के मौसम वैज्ञानिक किरण एम आर हंट के एक विश्लेषण से पता चलता है कि पिछले 70 वर्षों में पश्चिमी और मध्य हिमालय के साथ-साथ हिंदू कुश में शीतकालीन पश्चिमी विक्षोभ काफी बढ़ गए हैं। वे मई, जून और जुलाई जैसे महीनों में भी बहुत अधिक आम हो रहे हैं, जबकि इन महीनों में वे पहले दुर्लभ थे। उदाहरण के लिए, पिछले 20 वर्षों में जून में पश्चिमी विक्षोभ पिछले 50 वर्षों की तुलना में दोगुना आम हो गए हैं। हंट ने इसे उपोष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम के मजबूत होने और इसके उत्तर की ओर पीछे हटने में देरी का श्रेय दिया, जो ऐतिहासिक रूप से ग्रीष्मकालीन मानसून की शुरुआत से पहले होता था। उपोष्णकटिबंधीय जेट स्ट्रीम के इस बदले हुए व्यवहार के नतीजे अच्छे नहीं हैं। पश्चिमी विक्षोभ-प्रेरित वर्षा का भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून के साथ अंतःक्रिया ने 2013 के उत्तराखंड बाढ़ जैसी विनाशकारी घटनाओं और 2023 में हिमाचल प्रदेश में बाढ़ जैसी घटनाओं को जन्म दिया। पिछले साल हिमाचल प्रदेश में आई बाढ़ में 100 से ज्यादा लोग मारे गए थे।
वैश्विक वायुमंडलीय परिसंचरण में एक स्पष्ट परिवर्तन मध्य अक्षांशों में मौसम प्रणालियों को कंट्रोल करने वाली फेरेल सेल में पश्चिमी हवाओं के स्थानांतरण के रूप में देखा जा सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि पिछले 50 वर्षों में, पश्चिमी हवाएं कमजोर हुई हैं और ध्रुव की ओर स्थानांतरित हो गई हैं। अमेरिका की लीहाई यूनिवर्सिटी में पेलियोक्लाइमेट साइंटिस्ट जॉर्डन टी अबेल बताते हैं, “महासागर के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में गर्मी, पोषक तत्वों और ऑक्सीजन को उप-उष्णकटिबंधीय महासागरीय चक्र में ले जाते हैं। ये बड़े महासागर परिसंचरण हैं। अब इनका विस्तार हो रहा है, जो दोनों गोलार्द्धों में पश्चिमी हवाओं के ध्रुवों की ओर मूवमेंट के कारण हो सकता है।”अबेल ये जांच कर रहे हैं कि क्या यह ध्रुवीय मूवमेंट वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की बढ़ती सांद्रता की प्रतिक्रिया में हो रहा है।
इसके लिए अबेल और अन्य शोधकर्ताओं ने महासागरों के तल से ड्रिल किए गए डस्ट कोर का विश्लेषण किया है और पाया है कि पश्चिमी हवाएं कमजोर थीं और गर्म प्लियोसीन काल (हिम युग जो 53.3 लाख से 25.8 लाख वर्ष पूर्व तक फैला हुआ है) की तुलना में ध्रुवीय क्षेत्रों की ओर अधिक स्थित थीं
। वैज्ञानिकों के मुताबिक,आज कॉर्बन डॉईऑक्साइड जिस तरह से अधिक है, इससे पहले वह प्लियोसीन काल में आखिरी बार ऐसा था। पश्चिमी हवाओं में परिवर्तन दक्षिणी गोलार्द्ध में कार्बन चक्र को प्रभावित कर सकता है क्योंकि वे दक्षिणी महासागर में अपवेलिंग का कारण बनते हैं। अपवेलिंग यानी हवा के असर से समुद्र के गहरे पानी जो आमतौर पर काफी पोषणवाला होता है, को सतह पर लाना। गहरे पानी में कॉर्बन डाईऑक्साइड के साथ-साथ बहुत सारे पोषक तत्व होते हैं। इसलिए यदि पश्चिमी हवाएं कमजोर हो जाती हैं और ध्रुवों की ओर बढ़ती हैं, तो यह दक्षिणी महासागरों में कार्बन युक्त गहरे पानी के अपवेलिंग को बढ़ा सकता है, जिससे अधिक कार्बन डाईऑक्साइड वायुमंडल में आ सकता है। इस तरह ये ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाता है। जनवरी 2021 में नेचर में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर में ये बात कही गई है।
जून 2022 में एटमॉस्फरिक रिसर्च में प्रकाशित एक अन्य अध्ययन में, चीन और स्वीडन के रिसर्चर लिखते हैं कि आर्द्रता ले जाने वाली दक्षिणी गोलार्द्ध पश्चिमी हवाओं के ध्रुव की तरफ जाने से दक्षिण-पूर्व ऑस्ट्रेलिया में कम वर्षा और लगातार सूखा, न्यूजीलैंड में तेज हवाएं, तस्मान सागर में गर्म और उच्च समुद्र का स्तर, पेटागोनिया में तेजी से बर्फ का पिघलना, उप-अंटार्कटिक ग्लेशियरों के विनाश और हिंद महासागर से दक्षिण अटलांटिक तक गर्म और खारे पानी के परिवहन में बढ़ोतरी हो सकती है।
उत्तरी गोलार्द्ध में, पश्चिमी हवाओं की ताकत और स्थान में परिवर्तन अटलांटिक मेरिडियनल ओवरटर्निंग परिसंचरण (एमोक) को प्रभावित कर सकता है, जो अटलांटिक महासागर के भीतर अपने लंबे उत्तर-दक्षिण चक्र के दौरान भूमध्य रेखा और आर्कटिक क्षेत्रों के बीच गर्मी का परिवहन करता है, और इस तरह मौसम और जलवायु दोनों को प्रभावित करता है। गर्मी के इस अदला-बदली के बिना, अमेरिका जैसे क्षेत्रों में अत्यंत ठंडी सर्दी असमान रूप से तेज हो जाएगी। वास्तव में एमोक पहले से ही धीमा हो रहा है। 25 जुलाई 2023 को नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित एक रिसर्च पेपर के मुताबिक, यह 2025 और 2095 के बीच ध्वस्त हो सकता है। रिसर्च पेपर के मुताबिक, उत्सर्जन की वर्तमान दर के आधार पर एमोक का पतन 2050 के दशक में होने की आशंका है। यदि यह भविष्यवाणी सच होती है, तो एमोक 16 क्लाइमेट टिपिंग एलिमेंट (अर्थ सिस्टम के संवेदनशील और नाजुक तत्व जिनके क्लाइमेट चेंज से विनष्ट होने की आशंका है) में से पहला होगा जो ध्वस्त हो जाएगा। अगर ऐसा हुआ तो ये एक छोटे से परिवर्तन के साथ बड़े, दीर्घकालिक अपरिवर्तनीय परिणाम दे सकता है। वैज्ञानिक इस ओर ध्यान दिलाते हैं कि अटलांटिक महासागर में अधिक ताजा पानी का जुड़ना, वर्षा में वृद्धि और ग्रीनलैंड आइस शीट का तेजी से पिघलना एमोक के धीमा होने के कारण हैं। हालांकि, महासागर की सतह पर हवाओं का धीमा होना भी इसका एक कारण हो सकता है। महासागर की सतह की हवा ही एमोक को चलाती है, वह धीमी हुई तो एमोक धीमा पड़ सकता है। लेकिन अभी इस फैक्टर पर बहुत कम अध्ययन हुआ है।
पश्चिमी हवाओं की ताकत और उनके ज्यादा लहरदार होने की वजह से निचले अक्षांशों में हवा ठंडी हो सकती है और गर्म हवा ध्रुवों तक पहुंच सकती है, जिससे बर्फ पिघलने की घटनाएं देखने को मिल सकती हैं। चूंकि पश्चिमी हवाओं में निहित कम दबाव प्रणालियां मध्य अक्षांशों में वर्षण (वातावरण में जल वाष्प के संघनन से बारिश, बर्फ, ओले आदि का गुरुत्वाकर्षण की वजह से बादलों से गिरना) का प्रमुख स्रोत हैं। यही वजह है कि इसके ध्रुव-की ओर स्थानांतरण का उन हिस्सों पर प्रभाव पड़ेगा जो दुनिया में सबसे ज्यादा कृषि क्षमता के लिए जाने जाते हैं। मियावाकी कहते हैं कि पोलर सेल में हवाएं, जिन्हें ध्रुवीय पूर्वी हवा के रूप में जाना जाता है, भी कमजोर हो रही हैं क्योंकि भूमध्य रेखा के ऊपर क्षोभ मंडल की निचली परत और ध्रुवीय क्षेत्रों के बीच अंतर कम हो रहा है।