सांसों का आपातकाल: सेहत पर बट्टा लगा रही यह जानलेवा हवा

सीएसई की नई किताब "सांसों का आपातकाल" के दूसरे अध्याय में वायु प्रदूषण के विभिन्न घटकों के संपर्क में आने से बच्चों और किशोरों के जीवन पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों के लिए चेताया गया है। यह बात भी स्पष्ट हुई है कि बेहद गंभीर श्वसन संक्रमण के कारण समय से पहले होने वाली मौतों के बीच एक गहरा संबंध है
वायु प्रदूषण. Photo: iStock.
वायु प्रदूषण. Photo: iStock.
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साल 2021 में वायु प्रदूषण दुनिया में उच्च रक्तचाप के बाद दूसरा सबसे बड़ा हत्यारा साबित हुआ। इसकी वजह से कुल 81 लाख लोगों की मृत्यु हुई। इनमें से दक्षिण एशिया में ही 26 लाख मौतें दर्ज की गईं। इससे जुड़ी बीमारियां न केवल जानलेवा हैं, बल्कि लंबे समय तक जीवन की गुणवत्ता को भी प्रभावित करती हैं। एक अरब से अधिक की आबादी वाले भारत में 21 लाख लोगों की जान वायु प्रदूषण के कारण चली गई, जिनमें से 2.37 लाख मौतें ओजोन के प्रदूषण से जुड़ी थीं। लेकिन, 5 साल से कम उम्र के 7 लाख से अधिक बच्चों की मौतें झकझोर देने वाला आंकड़ा था जिसने दुनिया भर में बच्चों के लिए वायु प्रदूषण को कुपोषण के बाद दूसरा सबसे बड़ा खतरा बना दिया। इनमें से 5 लाख से अधिक बच्चों की मौतें अफ्रीका और एशिया में घर के भीतर पैदा हुए वायु प्रदूषण के कारण हुईं। इस वायु प्रदूषण की वजह खाना पकाने के लिए इस्तेमाल हुआ खराब ईंधन था। इनमें से 2,60,600 से अधिक बच्चों की मौतें सिर्फ दक्षिण एशिया में ही दर्ज की गईं। ये आंकड़े बताते हैं कि घरेलू वायु प्रदूषण इन क्षेत्रों में रहने वाले बच्चों के लिए बड़ा खतरा बना हुआ है। दक्षिण एशिया में पांच साल से कम उम्र के बच्चों में वायु प्रदूषण से जुड़ी मृत्यु दर 1,00,000 बच्चों पर 164 थी, जबकि वैश्विक औसत 108/100,000 था। मौतों के ये आंकड़े तब भी इतने ज्यादा रहे, जब खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा तक बढ़ती पहुंच, बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं, पोषण और जागरुकता के कारण साल 2000 के बाद मृत्यु दर में 53 प्रतिशत की गिरावट आ चुकी थी। प्रदूषित हवा बच्चों में निमोनिया, श्वसन संक्रमण और एलर्जिक रोगों का बड़ा कारण बन रही है।

ये भयावह आंकड़े “स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2024 (एसओजीए)” रिपोर्ट से सामने आए हैं, जिसे अमेरिका स्थित हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टीट्यूट (एचईआई) और इंस्टिट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) के ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज (जीबीडी) प्रोजेक्ट ने संयुक्त रूप से तैयार किया है। ये नतीजे करीब 200 देशों में साल 2021 के लिए अनुमानित बीमारियों के बोझ से जुड़े थे। एसओजीए रिपोर्ट का नेतृत्व करने वाली एचईआई की ग्लोबल हेल्थ प्रमुख पल्लवी पंत ने कहा, “यह नई रिपोर्ट इस बात को पूरी गंभीरता से याद दिलाती है कि वायु प्रदूषण का मानव स्वास्थ्य पर कितना गहरा असर पड़ता है और इसका अधिकतर बोझ छोटे बच्चों, बुजुर्गों और निम्न व मध्यम आय वाले देशों को उठाना पड़ता है।”

वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य पर प्रभाव का पता लगाने वाली इस सालाना रिपोर्ट का मुख्य फोकस पीएम 2.5 और ओजोन पर बना हुआ है, लेकिन इस बार पहली बार रिपोर्ट में नाइट्रोजन डाईऑक्साइड (एनओ2) को भी जोखिम मूल्यांकन में शामिल किया गया है। हालांकि, वायु प्रदूषण से पड़ने वाले बीमारियों के बोझ के 90 फीसदी से अधिक हिस्से के लिए भले ही पीएम 2.5 (घरेलू और बाह्य दोनों मिलाकर) जिम्मेदार है, लेकिन एनओ₂ और ओजोन भी अब वैश्विक स्तर पर बढ़ते जोखिम कारक बन चुके हैं। एनओ₂ के संपर्क पर नए फोकस ने इस ओर ध्यान खींचा है कि घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में वाहनों से निकलने वाले धुएं के कारण स्वास्थ्य जोखिम लगातार बढ़ रहा है। यह बचपन में ही अस्थमा हो जाने के प्रमुख कारणों में से एक है। रिपोर्ट के अनुसार, अध्ययन में शामिल 194 देशों में से 55 प्रतिशत देश अब भी विश्व स्वास्थ्य संगठन की वार्षिक वायु गुणवत्ता गाइडलाइन (10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर) को पूरा नहीं करते। इसके कारण दुनिया की 42 प्रतिशत आबादी एनओ के अस्वीकार्य स्तरों के संपर्क में है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पीएम 2.5 के विपरीत एनओ के सबसे अधिक जोखिम वाले शीर्ष 10 देशों में से 7 पश्चिम एशिया के उच्च आय वाले देश हैं, जिनमें बहरीन, कतर, कुवैत, लेबनान और संयुक्त अरब अमीरात शामिल हैं। इसके अलावा रूस और तुर्की में भी एनओ का स्तर अधिक पाया गया। सिंगापुर, जापान और कनाडा जैसे उच्च सामाजिक-विकास सूचकांक (एसडीआई) वाले देशों में भी उच्चतम स्तर का एनओ एक्सपोजर दर्ज किया गया है।

2021 में एनओ2 के संपर्क में आने से बच्चों और किशोरों के जीवन के 1,77,000 स्वस्थ वर्ष नष्ट हो गए। रिपोर्ट में यह चेतावनी भी दी गई कि लंबे समय तक वाहन जनित वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने और हृदय रोग, फेफड़ों के कैंसर, बच्चों और वयस्कों में अस्थमा और बच्चों में बेहद गंभीर श्वसन संक्रमण के कारण समय से पहले होने वाली मौतों के बीच गहरा संबंध है। एनओ ओजोन बनने में उत्प्रेरक की भूमिका निभाता है। यह वायुमंडल में दूसरे केमिकल्स के साथ मिलकर पार्टिकुलेट मैटर और ओजोन दोनों बनाता है। एसओजीए की रिपोर्ट के अनुसार, करीब 4.9 लाख लोगों की जान ओजोन की वजह से गई। इनमें पश्चिम एशिया (कतर, बहरीन, कुवैत, सऊदी अरब, इराक), दक्षिण एशिया (नेपाल, भारत, बांग्लादेश, पाकिस्तान) और पूर्व एशिया (दक्षिण कोरिया) के देशों में 2020 में सबसे अधिक ओजोन एक्सपोजर दर्ज किया गया।

दक्षिण एशिया में भी ओजोन का स्तर बढ़ा है। 2021 में दुनिया भर में ओजोन की वजह से हुई मौतों में से 56 फीसदी जानें इसी क्षेत्र में हुई थीं। रिपोर्ट में बताया गया है कि अमेरिका में आंशिक तौर पर इसकी बड़ी आबादी, फैला हुआ ओजोन का प्रदूषण और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) की उच्च दर के कारण 2021 में 14,000 मौतें हुईं, जो किसी भी अन्य उच्च आय वाले देश की तुलना में सबसे अधिक है। 2010 से अब तक ओजोन से जुड़ी सीओपीडी मौतों की संख्या में 20 फीसदी तक बढ़ोतरी हुई है। आने वाले वर्षों में जैसे-जैसे लोगों की उम्र बढ़ेगी, इन मौतों में और बढ़ोतरी की आशंका है।

दक्षिण एशिया, विशेषकर भारत अब भी कणीय प्रदूषण (पीएम) जनित स्वास्थ्य संकट का सबसे बड़ा भार झेल रहा है। लेकिन अब ओजोन प्रदूषण के उच्च स्तर का सामना करने वाली आबादी की संख्या भी भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान और ब्राजील में बढ़ रही है। इन देशों में पिछले दशक में बाह्य ओजोन एक्सपोजर में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। एक तरफ भारत समेत दक्षिण एशिया पार्टिकुलेट मैटर के प्रदूषण से जुड़े स्वास्थ्य संकट का सबसे बड़ा खामियाजा झेल रहा है, तो दूसरी तरफ भारत, नाइजीरिया, पाकिस्तान और ब्राजील में ओजोन के उच्च स्तर प्रदूषण का सामना करने वाली आबादी की संख्या भी बढ़ रही है। इन देशों में पिछले एक दशक में बाहरी वातावरण में उच्च स्तर के ओजोन एक्सपोजर में 10 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है। एक-एक अरब से अधिक की आबादी वाले देशों भारत और चीन में क्रमश: 21 लाख और 23 लाख मौतें दर्ज की गईं। दुनिया भर में पार्टिकुलेट मैटर की वजह से होने वाली बीमारियों के बोझ 55 फीसदी हिस्सा इन दोनों देशों को उठाना पड़ा। 2021 में दुनिया भर में ओजोन से संबंधित कुल सीओपीडी मौतों में से करीब 50 फीसदी भारत में हुई थीं, इसके बाद चीन और बांग्लादेश का स्थान था।

एसओजीए रिपोर्ट में “जलवायु दंड” शब्द का खासतौर पर उल्लेख किया गया है। इसमें बताया गया है कि खासतौर पर हीटवेव के दौरान जब हवा गर्म होती है, तब ओजोन बनाने वाली रासायनिक प्रतिक्रियाएं बढ़ जाती हैं। साक्ष्यों से पता चला है कि चीन और यूरोप में हीटवेव के दौरान ओजोन के स्तर में तेज बढ़ोतरी दर्ज की गई। गौरतलब है कि ओजोन एक ग्रीनहाउस गैस भी है और इसके संपर्क में आने से सीओपीडी जैसे गंभीर और दीर्घकालिक श्वसन रोगों का खतरा बढ़ जाता है। यही नहीं, ओजोन का असर फसलों, वनस्पतियों और जैव विविधता पर भी पड़ता है। इसकी वजह से फसलों की पैदावार में कमी आ सकती है, जैव विविधता को नुकसान पहुंच सकता है, खाद्य सुरक्षा और पोषण  पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हीटवेव के दौरान जलवायु परिवर्तन दिल और फेफड़ों की बीमारियों सहित गैर-संचारी रोगों के बोझ को बढ़ा सकता है।

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