सांसों का आपातकाल: प्रवासी मजदूरों के आवागमन पर नहीं दिया जाता ध्यान

सीएसई की किताब के छठे अध्याय में पंजाब के लुधियाना का उदाहरण देते हुए यह समझाने का प्रयास किया गया है कि औद्योगिक शहरों में प्रवासी मजदूरों के आवागमन की व्यवस्था नहीं होती
फोटो: विकास चौधरी
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सांसों का आपातकाल किताब के पांचवें अध्याय में आपने दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारणों व समाधान पर विस्तार से पढ़ा। पिछली सभी कड़ियों को पढ़ने के लिए क्लिक करें। छठे अध्याय में आप देश में बढ़ते वाहनों की संख्या और उनसे हो रहे प्रदूषण के बारे में पढ़ेंगे। पढ़ें दूसरी कड़ी -

सारांश
  • लुधियाना में प्रवासी मजदूरों को ट्रैफिक जाम और प्रदूषण से जूझना पड़ता है।

  • साइकिल से काम पर जाने वाले मजदूरों के लिए कोई साइकिल ट्रैक नहीं है, जिससे उनकी यात्रा थकाऊ हो जाती है।

  • शहर में सार्वजनिक परिवहन की कमी और बढ़ते वाहनों की संख्या ने प्रदूषण को बढ़ा दिया है।

अब पंजाब के औद्योगिक शहर लुधियाना की बात करते हैं। लुधियाना में एक ऑटो पार्ट्स निर्माण इकाई में काम करने वाले प्रवासी मजदूर चंद्रमा प्रसाद पिछले 18 सालों से साइकिल से काम पर जा रहे हैं। 2007 से उन्हें इसके लिए कुछ किलोमीटर की दूरी ही तय करनी पड़ती है, जिसमें सामान्य तौर पर  20 मिनट से ज्यादा नहीं लगने चाहिए। लेकिन, ट्रैफिक की वजह चंद्रमा को रोज सुबह 40 से 45 मिनट और शाम के जाम से जूझते हुए घर लौटने में करीब एक घंटे का वक्त लग जाता है। वह कहते हैं, “लुधियाना में ट्रैफिक अकल्पनीय है। यहां साइकिल चलाने वालों के लिए कोई अलग से साइकिल ट्रैक नहीं हैं। ऐसे में खुद की सुरक्षा का ध्यान रखते हुए बड़ी गाड़ियों, दोपहिया वाहनों और जाम के बीच से आने-जाने में बहुत समय लग जाता है। ट्रैफिक की वजह से यह यात्रा और भी थकाऊ हो जाती है।”

चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (सीसीआई) के अध्यक्ष उपकार सिंह आहूजा ने कहा कि लुधियाना एक बड़ा औद्योगिक शहर है, जहां लगभग 1.2 लाख छोटे और मध्यम उद्योग हैं। इनमें लगभग 10 लाख मजदूर काम करते हैं, जिनमें से ज्यादातर प्रवासी हैं। ये मजदूर इन उद्योगों की रीढ़ हैं। सरकारी अनुमानों के अनुसार, 2011 में शहर की आबादी 16 लाख थी। वर्ल्ड पॉपुलेशन रिव्यू का अनुमान है कि अब यह आबादी बढ़कर 20 लाख से ज्यादा पहुंच गई है। 159.37 वर्ग किमी में फैला लुधियाना क्षेत्रफल और आबादी दोनों के मामले में पंजाब का सबसे बड़ा शहर है। प्रसाद की तरह ही यहां के ज्यादातर मजदूर कहीं भी आने-जाने के लिए साइकिल को ही प्राथमिकता देते हैं। ये मजदूर रोजाना करीब 300 रुपए ही कमा पाते हैं। उनके लिए सार्वजनिक परिवहन की भी कोई व्यवस्था नहीं है। ऐसे में वे ऑटो या कैब का खर्च नहीं उठा सकते। ट्रैफिक पुलिस के साथ काम करने वाले विशेषज्ञ राहुल वर्मा कहते हैं कि इन मजदूरों की आबादी शहर की जनसंख्या का करीब 50 फीसदी है। ये सड़क पर भी सबसे कम जगह घेरते हैं, लेकिन ट्रैफिक जाम से सबसे ज्यादा पीड़ित भी यही होते हैं।

लुधियाना नगर निगम की “समग्र गतिशीलता योजना” (कॉम्प्रिहेंसिव मोबिलिटी प्लान- सीएमपी) के अनुसार, 2009 में कराए गए मोडल स्प्लिट सर्वेक्षण से पता चला कि काम पर जाने के लिए की जाने वाली 31.5 प्रतिशत यात्राएं पैदल तय की जाती थीं। जबकि, 43.4 प्रतिशत यात्राएं दोपहिया वाहन से पूरी की जाती थीं, जबकि 21.8 प्रतिशत यात्राएं साइकिल से की जाती थीं। टायर बनाने वाली एक कंपनी में काम करने वाले एक और प्रवासी मजदूर संतोष कुमार ने बताया कि वाहनों से निकलने वाला जहरीला धुआं उनके लिए हालात को और खराब कर देता है। वह कहते हैं, “हम लोग सबसे कम वायु प्रदूषण करते हैं, लेकिन इसके संपर्क में सबसे ज्यादा भी हम ही आते हैं।” शहर में वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए शुरू हुई पहल “क्लीन एयर पंजाब” के समन्वयक आकाश गुप्ता बताते हैं कि लंबे ट्रैफिक जाम के कारण आने-जाने में उन्हें दोगुना समय लग रहा है। ईंधन की खपत भी 3 गुना बढ़ गई है। गाड़ी के रखरखाव का खर्च भी बढ़ गया है। बार-बार गियर बदलने से क्लच और ब्रेक पर दबाव पड़ता है, जिससे सर्विसिंग के खर्च में लगभग 20 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। 2014 की “समग्र गतिशीलता योजना” के मुताबिक, काम पर आने-जाने के सिलसिले में की गईं यात्राएं कुल यात्राओं का 49 फीसदी थीं। जबकि, 26 फीसदी यात्राएं पढ़ाई के लिए और 25 फीसदी यात्राएं दूसरे कामों के लिए की गई थीं। 

लुधियाना में कोई व्यवस्थित सार्वजनिक परिवहन प्रणाली नहीं है। इसलिए, लोगों के लिए आने-जाने का मुख्य साधन ऑटो-रिक्शा बन गए हैं। 46 वर्षीय गृहिणी शालिनी ढींडसा ने कहा कि स्थानीय लोग सुरक्षा चिंताओं के कारण ऑटो-रिक्शा से बचते हैं। वह बताती हैं, “ड्राइवर मनमानी करते हैं और ज्यादा किराया वसूलते हैं। इसलिए लोग निजी वाहनों या फिर ओला और उबर जैसी कैब सेवाओं को इस्तेमाल करना पसंद करते हैं। ऑटो का उपयोग आमतौर पर तभी किया जाता है, जब कोई बाहर से लौटता है।” इंटरमीडिएट पब्लिक ट्रांजिट (आईपीटी) यानी ऑटो-रिक्शा, टैक्सी और साइकिल रिक्शा अभी भी यात्रियों के लिए महत्वपूर्ण साधन बने हुए है। सीएमपी रिपोर्ट के अनुसार, आईपीटी वाहनों की संख्या हर साल धीरे-धीरे बढ़ रही है। वर्मा ने कहा कि डीजल ऑटो-रिक्शा को 2009 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर प्रतिबंधित कर दिया गया था, लेकिन इनमें से अभी भी बहुत से अवैध रूप से चल रहे हैं। उनका मानना है कि ऑटो-रिक्शा की बढ़ती और अनियंत्रित संख्या को नियंत्रित करने के लिए नियम बनाने की जरूरत है।

ऐसे हालात में लुधियाना में हाल के सालों में अपनी खुद की गाड़ी रखने वालों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है। सरकारी आंकड़ों से पता चला है कि 2021 में पंजीकृत वाहनों की संख्या 48,143 थी, जो 2022 में बढ़कर 70,486 हो गई। इस तरह, एक साल में 46 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई। 2024 में पंजीकृत वाहन बढ़कर 1,15,122 हो गए, जो 2023 में 79,144 थे। 2023 से 2024 के बीच वाहनों की संख्या में 45 प्रतिशत से अधिक बढ़ोतरी हुई। अप्रैल 2025 तक लुधियाना में कुल 16,63,071 गाड़ियां पंजीकृत हो चुकी थीं। 2014 की सीएमपी रिपोर्ट में बताया गया था कि 62 प्रतिशत परिवारों के पास कम से कम एक स्कूटर या मोटरसाइकिल थी, लगभग 35 प्रतिशत लोगों के पास एक साइकिल और केवल 8 प्रतिशत लोगों के पास कार थी।

लुधियाना में एक बड़ी दिक्कत यह है कि सड़कों की चौड़ाई आज भी पहले जितनी ही है, बहुत सी सड़कें काफी संकरी हैं। जबकि सड़कों पर आने वाली गाड़ियां, खासकर बड़ी एसयूवी ज्यादा जगह घेरती हैं। इससे ट्रैफिक जाम और बढ़ जाता है। खराब सड़कें और बढ़ती गाड़ियों की संख्या के कारण सड़क दुर्घटनाएं चिंता का सबब बनी हुई हैं। “पंजाब में सड़क दुर्घटनाएं और यातायात 2023” रिपोर्ट के अनुसार, लुधियाना में 2023 में 504 दुर्घटनाएं और 402 मौतें दर्ज की गईं। इनमें 152 लोग गंभीर रूप से घायल हुए। पीड़ितों में 47 प्रतिशत दोपहिया वाहन चालक थे, जबकि 32 प्रतिशत लोग पैदल चलने वाले थे। 34 प्रतिशत दुर्घटनाएं ट्रकों के कारण हुईं, उसके बाद कारों, टैक्सियों और हल्के मोटर वाहनों (एलएमवी) के कारण 33 प्रतिशत दुर्घटनाएं हुईं। 15 प्रतिशत हादसों की वजह दोपहिया वाहन थे। पुलिस आयुक्त के अधिकार क्षेत्र में कुल 89 ऐसी जगहों (ब्लैक स्पॉट) की पहचान की गई है, जहां सबसे ज्यादा दुर्घटनाएं होती हैं।

लुधियाना के रास्तों के पैटर्न और बहुत सारी फैक्ट्रियों (औद्योगिक इकाइयों) के कारण वायु प्रदूषण बहुत बढ़ गया है। इसी वजह से लुधियाना भारत के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से एक बन चुका है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के अनुसार, 2018 में यहां पीएम 2.5 का औसत स्तर 51 था, जो 2024 में बढ़कर 61.1 पर पहुंच गया। नगर निगम के अधिकारियों के मुताबिक, लुधियाना में लगभग 49 प्रतिशत प्रदूषण उद्योगों के कारण होता है, 30 प्रतिशत प्रदूषण सड़कों की धूल के कारण और लगभग 11 प्रतिशत प्रदूषण वाहनों से होता है। एक अधिकारी के अनुसार, हवा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हुआ है। शहर के 2 मुख्य मॉनिटरिंग स्टेशनों (पंजाब कृषि विश्वविद्यालय और वेरका मिल्क पॉइंट) पर वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) लगातार 300 रहता है। पिछले 3 साल से चल रहे फ्लाईओवर निर्माण के कारण यह स्थिति और खराब हो गई है।

औद्योगिक क्षेत्र में स्थित एक और स्टेशन में तो एक्यूआई कभी भी 400 से नीचे दर्ज ही नहीं हुआ, जबकि, पुराने शहर के बाजार में भी वायु गुणवत्ता सूचकांक 250-280 के बीच बना रहता है। वायु गुणवत्ता मानदंडों के अनुसार, 200 से ऊपर एक्यूआई स्तर सेहत के लिए खराब माना जाता है, और 300 से ऊपर की रीडिंग खतरनाक होती है, जिसके लिए तुरंत आपातकालीन स्वास्थ्य संबंधी चेतावनी जारी की जाती है। 2010 में इंडियन जर्नल ऑफ पब्लिक हेल्थ में प्रकाशित एक शोध में पाया गया कि खराब हवा के कारण आई दृश्यता में कमी और दैनिक मृत्यु दर में बढ़ोतरी के बीच सीधा संबंध है। अध्ययन में बताया गया कि अगर दोपहर में दिखाई देने वाली दूरी (दृश्यता) हर एक किलोमीटर कम होती है तो प्राकृतिक कारणों से होने वाली मौतों की संख्या में 2.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी हो जाती है। 

दस साल से भी पहले लुधियाना में यातायात की समस्याओं को दूर करने, आवागमन को बेहतर बनाने और सार्वजनिक परिवहन शुरू करने के लिए एक बड़ी महत्वाकांक्षी योजना (सीएमपी) बनाई गई थी, लेकिन इस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। इस योजना का लक्ष्य था कि 60 प्रतिशत यात्राएं सार्वजनिक परिवहन से हों और 90 प्रतिशत आबादी इसके दायरे में आए। इसमें पैदल चलने और साइकिल चलाने वालों के लिए सुविधाओं पर भी जोर था। फुटपाथों को खाली कराने और पार्किंग व्यवस्था को बेहतर बनाने की सिफारिश भी इसमें की गई थी। लेकिन, पंजाब प्रशासन और यातायात विभाग के अधिकारी खुद मानते हैं कि यह योजना की ज्यादातर सिफारिशें सिर्फ कागज तक सिमट कर रह गईं। ग्रेटर लुधियाना एरिया डेवलपमेंट अथॉरिटी (जीएलएडीए) के एक अधिकारी ने कहा, “कुछ एलिवेटेड सड़कों और फ्लाईओवर के निर्माण से यातायात व्यवस्था में थोड़ा सुधार आया है। शहर को बाईपास करने के लिए एक बाहरी रिंग रोड बनाई जा रही है।”

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