सांसों का आपातकाल: हर तीन सेकेंड में 20 नई कारें व 70 दोपहिया, बने प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण

सीएसई की नई किताब सांसों का आपातकाल में छठे अध्याय में वाहनों से होने वाले प्रदूषण के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है
हर 15 सेकंड में इतने ज्यादा नए वाहन पंजीकृत हो जाते हैं कि उन्हें खड़ा करने के लिए फुटबॉल के एक मैदान जितने बड़े पार्किंग स्पेस की जरूरत पड़ती है। फोटो: विकास चौधरी
हर 15 सेकंड में इतने ज्यादा नए वाहन पंजीकृत हो जाते हैं कि उन्हें खड़ा करने के लिए फुटबॉल के एक मैदान जितने बड़े पार्किंग स्पेस की जरूरत पड़ती है। फोटो: विकास चौधरी
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सांसों का आपातकाल किताब के पांचवें अध्याय में आपने दिल्ली में वायु प्रदूषण के कारणों व समाधान पर विस्तार से पढ़ा। पिछली सभी कड़ियों को पढ़ने के लिए क्लिक करें। छठे अध्याय में आप देश में बढ़ते वाहनों की संख्या और उनसे हो रहे प्रदूषण के बारे में पढ़ेंगे। पढ़ें पहली कड़ी -

भारत में हर यात्री पहले से कहीं ज्यादा प्रदूषण फैला रहा है। किसी भारतीय को कितनी खराब हवा में सांस लेनी होगी, यह इस बात निर्भर करता है कि उसकी आवाजाही कैसी है। हर तीन सेकंड में यानी जितनी देर में आप यह वाक्य पढ़ेंगे, उतनी देर में भारत में 20 नई कारें और 70 नए दोपहिया वाहन पंजीकृत हो चुके होंगे।

ये 20 नई कारें जब तक सड़क पर चलती रहेंगी, हर किलोमीटर पर औसतन 3.15 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित करती रहेंगी (2021-22 में कारों के लिए कॉर्पोरेट औसत 157.5 ग्राम कार्बन डाइऑक्साइड प्रति किमी था)। हर 15 सेकंड में इतने ज्यादा नए वाहन पंजीकृत हो जाते हैं कि उन्हें खड़ा करने के लिए फुटबॉल के एक मैदान जितने बड़े पार्किंग स्पेस की जरूरत पड़ती है। इससे पता चलता है कि पार्किंग की कितनी बड़ी समस्या पैदा हो रही है।

शहरों में आवागमन के लिए निजी वाहनों का दबदबा बना हुआ है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में भारत में 2.55 करोड़ वाहन पंजीकृत हुए। इनमें 88 प्रतिशत से अधिक निजी वाहन थे, जिनमें मुख्य तौर पर दोपहिया और कारें शामिल थीं। शहरी क्षेत्रों में आवागमन के लिए लोग किस तरह के वाहनों का इस्तेमाल करते हैं, यह जानने के लिए वहां की गतिशीलता योजनाओं और विभिन्न शोधों से जानकारी जुटाई गई।

इन जानकारियों की समीक्षा से पता चलता है कि भारतीय शहरों में 35-45 प्रतिशत तक निजी वाहन इस्तेमाल हो रहे हैं, जबकि छोटे सार्वजनिक वाहनों (जैसे ऑटो, रिक्शा) की हिस्सेदारी सिर्फ 10 प्रतिशत और बड़ी बसों या मेट्रो जैसे सार्वजनिक परिवहन का इस्तेमाल 25 प्रतिशत ही है। 

शहरों में लोग अब ज्यादा यात्राएं कर रहे हैं और लंबी दूरी भी तय कर रहे हैं। अध्ययन बताते हैं कि बीते 10 सालों में प्रति व्यक्ति यात्रा दर औसतन 17.5 प्रतिशत और यात्रा की लंबाई यानी दूरी औसतन 28.6 प्रतिशत तक बढ़ गई है। मई-जून 2025 में डाउन टू अर्थ पत्रिका ने 50 से अधिक शहरों और कस्बों में आवागमन साधनों पर एक देशव्यापी रिपोर्ट जारी की, जिससे पता चला कि भारत में परिवहन की हालत बहुत खराब है और लोगों को मजबूरन गाड़ियां खरीदनी पड़ रही हैं। इसका सीधा नतीजा बढ़ते वायु प्रदूषण के तौर पर हमारे सामने है। 

मिजोरम की राजधानी आइजोल इसका सटीक उदाहरण है। हरे-भरे पहाड़ों के बीच बसा खूबसूरत आइजोल शायद ही कभी राष्ट्रीय सुर्खियों में आता हो। लेकिन, यह शहर सोशल मीडिया पर अपने कमाल के ट्रैफिक अनुशासन के लिए पूरे देश में मशहूर हो गया है। यहां शांति से बिना हॉर्न बजाए लंबी कतारों में चलते दोपहिया वाहनों के वीडियो और फोटो वायरल हो गए। न्यूज चैनलों और ट्रेवल ब्लॉगर्स ने भी इन तस्वीरों और वीडियो को खूब शेयर किया और आइजोल की पहचान भारत के इकलौते “शांत शहर” के तौर पर बन गई। लेकिन, अनुशासित यातायात की इस खूबसूरत तस्वीर के पीछे एक कड़वी सच्चाई छिपी है। यहां के लोग हर दिन लगातार लगने वाले ट्रैफिक जाम से परेशान रहते हैं।

Photo : Down to Earth
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दरअसल, आइजोल बिना किसी खास योजना के बसा शहर है और इसकी बढ़ती आबादी के लिए यहां का पहाड़ी इलाका बिल्कुल भी ठीक नहीं है। पहाड़ी पर होने के कारण घर खड़ी ढलानों पर बने हैं जिससे सड़कों के लिए बहुत कम जगह बची है। अधिकतर जगहों पर सड़कें इतनी संकरी हैं कि उन पर मुश्किल से दो गाड़ियां एक साथ चल सकती हैं। आइजोल मिजोरम का सबसे तेजी से बढ़ता शहर है।

इसके साथ ही यह राज्य का राजनीतिक, व्यापारिक, शैक्षिक, सांस्कृतिक केंद्र भी है। विधानसभा और सचिवालय जैसे कई महत्वपूर्ण सरकारी दफ्तरों के मुख्यालय भी यहीं पर स्थित हैं। यह शहर 129.91 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल के दायरे में फैला है। इसकी नगरपालिका की सीमाओं के भीतर 429 किलोमीटर सड़कें भी हैं। लेकिन, इन सड़कों में से केवल 40 प्रतिशत में ही 10 मीटर से ज्यादा चौड़ाई का “राइट ऑफ वे” (आरओवी) है। इसका मतलब है कि ज्यादातर सड़कें बहुत संकरी हैं, जिससे जाम लगना स्वाभाविक है।

आइजोल में रहने वाली लालमुआनपुई पेशे से फार्मासिस्ट हैं और आइजोल एडवेंटिस्ट हॉस्पिटल में काम करती हैं। उन्हें अपने दोपहिया वाहन से हॉस्पिटल पहुंचने में रोज 30 मिनट से ज्यादा लगते हैं। वह कहती हैं, “ट्रैफिक जाम और घुमावदार सड़कों के कारण मुझे हॉस्पिटल आने-जाने में कुल एक घंटा लग जाता है। मैं प्रदूषण से बचने के लिए अपना चेहरा ढंकने की पूरी कोशिश करती हूं। लेकिन, मुझे कभी-कभी देर रात तक चर्च से संबंधित कार्यक्रमों जैसे कि गाने के अभ्यास में भी शामिल होना पड़ता है। ऐसे में रोज की यह भागमभाग भरी यात्रा बहुत थकाऊ हो जाती है।” गूगल मैप्स के अनुसार, लालमुआनपुई रोज लगभग 9 किलोमीटर की दूरी तय करती हैं। आइजोल में ट्रैफिक को समझने के लिए इसकी तुलना बेंगलुरु से की जा सकती है। 

लोकेशन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काम करने वाली बहुराष्ट्रीय डच कंपनी टॉमटॉम की एक रिपोर्ट के अनुसार, कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु दुनिया का दूसरा सबसे धीमा शहर है। यहां एक कार को 10 किमी की दूरी तय करने में 29 मिनट 10 सेकंड लग जाते हैं। आइजोल में रहने वाले एक कनाडाई नागरिक कालेब फ्रीसेन ने एक वायरल वीडियो में इन दोनों शहरों की तुलना बहुत सटीक ढंग से की है।

उन्होंने आइजोल और बेंगलुरु दोनों शहरों की व्यस्त सड़कों के वीडियो बनाए। बेंगलुरु में वाहनों से भरी सड़क पर हर तरफ हॉर्न का शोर सुनाई देता है, जबकि आइजोल की सड़कों पर गाड़ियों की भीड़ के बावजूद शांति भंग नहीं होती। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि ट्रैफिक जाम दोनों शहरों में एक जैसा ही था। उन्होंने कहा, “मुझे पता है कि आप सोच रहे होंगे कि आइजोल की आबादी काफी कम है और यहां हॉर्न बजाने की उतनी जरूरत नहीं है, जितनी भारत के दूसरे शहरों में है, जहां सड़क पर आगे निकलने की होड़ मची रहती है। लेकिन, आइजोल में ट्रैफिक वास्तव में बेंगलुरु से भी ज्यादा बदतर है।” 

2018 के चुनाव से पहले प्रचार के दौरान जोरमथंगा ने वादा किया था कि वे आइजोल को ट्रैफिक जाम से मुक्त कर देंगे। बाद में वह मिजोरम के मुख्यमंत्री भी बने। इस वादे को पूरा करने के लिए उन्होंने 6 फरवरी 2019 को “पार्किंग हाउस सपोर्ट स्कीम” (पीएएचओएसएस) की शुरुआत की। इस योजना के तहत सरकार को व्यक्तियों, गैर-सरकारी संगठनों और स्थानीय परिषदों को पार्किंग स्थल बनाने के लिए वित्तीय सहायता प्रदान करनी थी।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पीएएचओएसएस के लिए कुल 1,462 आवेदन प्राप्त हुए। मार्च 2024 में बजट सत्र के दौरान एक प्रश्न का उत्तर देते हुए एक मंत्री ने खुलासा किया कि 188 लाभार्थी अभी भी अपना पार्किंग हाउस बनाने का काम पूरा कर रहे थे, जबकि उन्हें पहली और दूसरी किस्तों के लिए कुल 952 लाख रुपए (लगभग 9.52 करोड़ रुपए) मिल चुके थे।

13 मार्च 2025 को सरकार ने इस योजना को बंद करने का ऐलान कर दिया। एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि यह योजना इसलिए फेल हुई, क्योंकि पार्किंग स्थल जिन निजी जगहों पर बनाए गए, उनके आसपास ट्रैफिक जाम की ज्यादा समस्या थी ही नहीं। ऐसे में जाम की समस्या से कोई खास राहत नहीं मिली।

अधिकारी ने कहा, “यदि यह पहल प्रभावी होती तो मौजूदा सरकार इसे जारी रखती। पार्किंग स्थलों के लिए जगह का चुनाव ठीक तरह से नहीं किया गया था और इस कारण आम आदमी की पार्किंग की जरूरतें उनसे पूरी नहीं हो पा रही थीं। हालांकि, इस योजना का मकसद सार्वजनिक पार्किंग स्थल तैयार करना था, लेकिन राजनेताओं ने अपने पसंदीदा लोगों को फायदा पहुंचाया।

अब तक जितनी भी पार्किंग बनी हैं, उनका कोई बड़ा सकारात्मक असर दिखाई नहीं दे रहा है। कुछ लोगों ने अपने घर बनवाने के लिए भी इस योजना का फायदा उठाया और घर की ऊपरी मंजिल को पार्किंग बता दिया। भले ही इस योजना से दोहरे उद्देश्यों की पूर्ति हो सकती थी, लेकिन व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं ने जनहित को दबा दिया।”

आइजोल में ट्रैफिक जाम से राहत दिलाने के लिए एक और कदम उठाया गया। 1 जून 2019 से वहां “ऑड-ईवन” नियम लागू कर दिया गया। यह नियम 25 अप्रैल को हुई “ट्रैफिक प्रबंधन पर समन्वय” बैठक के बाद पेश किया गया था। तत्कालीन गृह मंत्री लालचामलियाना ने इस निर्णय की घोषणा की थी, जो अभी तक प्रभावी है।

इस नियम मुताबिक, गाड़ी की नंबर प्लेट के आखिरी अंक के हिसाब से अलग-अलग दिन पर गाड़ी चलाने की मनाही होती है। जैसे 1 या 2 नंबर पर समाप्त होने वाले वाहन सोमवार को नहीं चलेंगे और 3 या 4 पर समाप्त होने वाले वाहनों पर मंगलवार को प्रतिबंध रहेगा। लेकिन, इस नियम की बहुत आलोचना हुई।

एक प्राइवेट स्कूल में 10 साल से काम कर रहे ड्राइवर नोएल चाविलिना जोंगटे के मुताबिक, “इस नियम से सिर्फ गाड़ी, खासकर दोपहिया वाहन बेचने वालों को फायदा पहुंचा। लोग आसानी से लोन लेकर एक और दोपहिया वाहन खरीद लेते हैं, ताकि जिस दिन उनकी मुख्य गाड़ी सड़क पर नहीं चल सकती, उस दिन वह दूसरी गाड़ी का इस्तेमाल कर सकें। कुछ परिवारों के पास तो परिवार के सदस्यों से भी ज्यादा दोपहिया वाहन हो गए हैं। इससे ट्रैफिक बिल्कुल भी कम नहीं हुआ है।”

आइजोल में ही रहने वाले एक सरकारी कर्मचारी ने नाम न छापने की शर्त पर इस नियम पर टिप्पणी करते हुए कहा, “ऑड-ईवन नियम ने शहर में वाहनों की संख्या बढ़ा दी है। इसके लागू होने के बाद ट्रैफिक जाम और बदतर हो गया है, अब लोगों के पास इस्तेमाल करने के लिए एक और वाहन है।”

2020 से 2023 के बीच मिजोरम में कुल 75,162 नए वाहन रजिस्टर हुए। इनमें से 51,569 सिर्फ आइजोल के ही थे। यानी राज्य में पंजीकृत हुए नए वाहनों का 68 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा आइजोल का था। मई 2025 तक आइजोल जिले में कुल 1,93,976 गाड़ियां पंजीकृत हो चुकी थीं। इतनी ज्यादा गाड़ियां होने और ट्रैफिक जाम के बावजूद बहुत से लोगों के लिए सार्वजनिक परिवहन एक अच्छा विकल्प नहीं है।

लालमुआनपुई को स्कूटी से आने-जाने में रोज एक घंटे से ज्यादा का वक्त लगता है, फिर भले ही बारिश हो रही हो या चटख धूप निकली हो। लेकिन, इसके बावजूद वह कहती हैं कि उनके लिए बस से आना-जाना व्यवहारिक नहीं है। उनके अनुसार, “अगर मैं बस से जाती हूं तो पहले बस के लिए इंतजार करने फिर बार-बार हर बस स्टॉप पर रुकने और बेहद व्यस्त सड़क से आने-जाने में उन्हें कम से कम दो घंटे लग जाते हैं।”

मिजोरम विश्वविद्यालय (आइजोल स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय, जो शहर के केंद्र से लगभग 10 किमी दूर है) के जनसंचार विभाग में प्रोफेसर रत्नमाला बताती हैं, “विश्वविद्यालय से शहर जाने के सार्वजनिक परिवहन की कोई व्यवस्था नहीं है। इस वजह से मैं बहुत असहाय महसूस करती हूं, जैसे मैं कहीं आ-जा ही नहीं सकती। अगर मुझे किसी कार्यक्रम या इवेंट के लिए शहर जाना होता है तो दूसरों से मदद मांगनी पड़ती है। इस वजह से मुझे बुक टॉक, कॉन्सर्ट जैसे कई कार्यक्रम छोड़ने पड़े, जिनमें मैं शामिल होना चाहती थी। मेरे पास उन्हें छोड़ने के अलावा कोई विकल्प ही नहीं था।”

रत्नमाला कहती हैं कि वह ज्यादा से ज्यादा अपने पति से मदद मांग सकती थीं कि वह अपनी गाड़ी से उन्हें शहर पहुंचा दें, लेकिन वहां पार्किंग की एक बड़ी समस्या है। या फिर अगर किसी छात्र से लिफ्ट मांगनी पड़ती, जिसके लिए उस छात्र के पेट्रोल और खाने का खर्चा देना पड़ता। यहां तक कि उन्हें पास के किसी सार्वजनिक परिवहन साधन (जैसे बस या टैक्सी) तक पहुंचने के लिए भी स्कूटर से पांच मिनट दूर किसी और इलाके तक जाना पड़ता है।

ट्रैफिक जाम और खराब सार्वजनिक परिवहन के बावजूद आइजोल में कुछ लोग साइकिल चलाने और पैदल चलने को प्राथमिकता देते हैं और अभी भी उम्मीद से भरे हैं। माउंटेन बाइकर और वकील मिलर बी. रेंथलेई ऐसे ही लोगों में से एक हैं। जब भी मौसम अच्छा होता है और काम कम होता है, अपनी साइकिल से ऑफिस जाते हैं।

वह कहते हैं, “यह परिवहन का व्यावहारिक साधन भी है और तनाव कम करने का बेहतर तरीका भी। कभी-कभी तो घर जाते समय मैं सिर्फ साइकिल चलाने का मजा लेने के लिए लंबा रास्ता भी ले लेता हूं।” मिलर कहते हैं कि हालांकि वह भीड़भाड़ वाले समय में साइकिल चलाने से बचते हैं, लेकिन आइजोल में साइकिल चलाना आसान और सुरक्षित है। यहां के लोगों में अनुशासन की भावना बहुत मजबूत है और वे नियमों का पालन करते हैं। मेट्रो शहरों में ऐसा नहीं होता, जहां लोग अक्सर ट्रैफिक नियमों को तोड़ते हैं। आइजोल में साइकिल चलाने वालों को ऐसा लगता है, जैसे उनके लिए खासतौर पर अलग साइकिल ट्रैक बना हो।

आइजोल भारत के उन चुनिंदा शहरों में से एक है, जहां की हवा सबसे साफ है। इसलिए यहां पैदल चलना पसंद करने वालों की संख्या भी बढ़ रही है। शहर में रहने वाले लेखक और पत्रकार लालहरुईतलुंगा छंगटे को “वॉकिंग सिटीजन” के नाम से जाना जाता है, क्योंकि वह सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही गाड़ी का इस्तेमाल करते हैं, बाकी हर जगह पैदल ही जाते हैं।

वह कहते हैं, “मुझे बचपन से ही पैदल चलना पसंद है। इससे मुझे अपने आसपास की दुनिया को देखने-समझने का मौका मिलता है। टहलते हुए अपने दोस्तों से बात करने का मौका भी मिल जाता है। हम अक्सर मजबूरी जताते हैं कि हमारे पास अपने परिवार के लिए समय नहीं है, लेकिन यह सिर्फ भौतिकतावाद है। भौतिकवाद ही हमें यह यकीन दिलाता है कि जरा सी दूर जाने के लिए भी हमें गाड़ी की जरूरत है। लेकिन, जब हम पैदल चलते हैं, तो दोस्तों से मुलाकात हो जाती है। पड़ोसियों को अभिवादन कर पाते हैं, लोगों को उनके कपड़े सुखाते देखते हैं और उनके संग थोड़ी सी गपशप भी कर लेते हैं।”

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