जब मुफ्त मिलती थी दाल

साठ और सत्तर के दशक में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार में होटल वाले दाल के नहीं लेते थे पैसे
Photo: flickr
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पिछले कुछ सालों के दौरान जहां देश में दालों का उत्पादन घटा है, वहीं दालों की खपत ज्यादा हुई है। साथ ही, दालें महंगी भी हो रही हैं। इस मुद्दे पर हम कई स्टोरीज कर चुके हैं। पढ़ने के लिए क्लिक करें 

मौजूदा वक्त में दालें भले ही थाली से गायब हो रही हों लेकिन एक वक्त ऐसा भी था जब दालें मुफ्त में परोसी जाती थीं। साठ के दशक से लेकर सत्तर के मध्य तक देश के होटल वाले दाल मुफ्त में देते थे। आखिर इसकी वजह क्या थी? इस संबंध में डाउन टू अर्थ की पड़ताल बताती है कि मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार में यह परिपाटी देखी गई थी।

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में पाठा गांधी के नाम से मशहूर 78 वर्षीय गोपाल भाई से जब इस संबंध में पूछा तो उन्होंने ठेठ अंदाज में बताया, “मैंने 60-61 से लेकर 74-75 तक देखा है कि होटलों में रोटी खरीदने पर दाल मुफ्त में दी जाती थी।” उन्होंने कहा कि मैंने खुद मुफ्त में मिलने वाली दाल खाई है। उन्होंने बताया कि होटल वाले सरकार के कहने पर दाल मुफ्त में नहीं देते थे बल्कि यह एक परंपरा थी। यह परंपरा सत्तर के मध्य तक चली। गोपाल भाई के अनुसार, “असल में उस समय हमारे समाज में आज जितनी अराजकता या गलाकाट प्रतिस्पर्धा नहीं थी। जैसा समाज था, वैसा ही व्यापारी भी था। दालों का मुफ्त वितरण इसी भलाई का नतीजा था।”

मध्य प्रदेश सरकार में कार्यरत वरिष्ठ अधिकारी स्वर्गीय एके शर्मा की पत्नी सुमित्रा शर्मा भी कहतीं हैं, “यह सही है कि 60-70 के दशक में जब मैं किसी मांगने वाले को पैसे देती थी तो वह कहता था, माई बस दो आने रोटी का पैसा दे दो, दाल तो होटल वाला दे देगा।” उन्होंने बताया कि मैं भी कई बार होटल में खाना खाने गई तो होटल वाले बिल में दाल का पैसा नहीं जोड़ते थे। इसकी पुष्टि उत्तर प्रदेश के इटावा की बुजुर्ग गिरिजा देवी ने भी की।

बिहार के भागलपुर निवासी बलीराम सिंह ने बताया कि देखिए परंपरा का दबाव इतना अधिक होता है कि समाज में रहने वाले हर शख्स को उसे अपनाना ही पड़ता है। वह कहते हैं कि आज से 40 साल पहले पानी का पैसा लेना पाप माना जाता था। वह कहते हैं कि यह सही है कि होटलों में दाल में मुफ्त में दी जाती थी। इसकी शुरुआत के संबंध में वह बताते हैं कि हमारे पिताजी स्वतंत्रता की लड़ाई में कई बार जेल गए थे। उनका कहना था कि पचास के दशक में जब पहली बार होटल छोटे-छोटे कस्बों या नगरों में खुले तो वे अपनी बिक्री बढ़ाने या कहें कि ग्राहकों को लुभाने के लिए शुरुआत में रोटी के साथ दाल मुफ्त में देने लगे। बाद में इसने परंपरा का रूप धारण कर लिया।

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