खेती की जमीन कम हुई पर बढ़ गई छोटे किसानों की संख्या

भारत के 30 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में मालिकाना हक वाली जमीन का औसत घटा है। हालांकि मिजोरम इस मामले में अपवाद है
स्रोत: 2018 में जारी कृषि जनगणना 2015-16
स्रोत: 2018 में जारी कृषि जनगणना 2015-16
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किसानों की दुर्दशा और कृषि क्षेत्र पर मंडराते संकट के लिए कई कारण जिम्मेदार है लेकिन एक महत्वपूर्ण कारण है छोटी जोत। हाल के दशकों में भले ही भू स्वामियों की संख्या बढ़ी हो लेकिन कृषि भूमि दूसरे कार्यों के लिए हस्तांतरित होने से न केवल मालिकाना हक वाली जमीन कम हुई बल्कि सीमांत किसानों की संख्या में भी बढ़ोतरी हो गई।

1970-71 में आधे किसान सीमांत थे लेकिन 2015-16 आते-आते सीमांत किसान बढ़कर 68 प्रतिशत हो गए हैं। गौरतलब है कि एक हेक्टेयर से कम जमीन के मालिक सीमांत किसान कहे जाते हैं जबकि दो हेक्टेयर तक के भू स्वामी छोटे किसानों की श्रेणी में आते हैं। दो से चार हेक्टेयर के भू स्वामी अर्द्ध मध्यम, चार से 10 हेक्टेयर के भू स्वामी मध्यम और 10 हेक्टेयर से अधिक के भू स्वामी बड़े किसानों की श्रेणी में आते हैं। पिछले दशकों में सभी श्रेणी के किसानों की औसत भूमि कम हुई है।

जैसे सीमांत किसानों की औसत भूमि 0.4 हेक्टेयर से घटकर 0.38 हेक्टेयर, छोटे किसानों की औसत भूमि 1.44 हेक्टेयर से घटकर 1.41 हेक्टेयर, अर्द्ध मध्यम किसानों की औसत भूमि 2.81 हेक्टेयर से घटकर 2.71 हेक्टेयर, मध्यम किसानों की औसत भूमि 6.08 हेक्टेयर से घटकर 5.72 हेक्टेयर और बड़े किसानों के स्वामित्व वाली औसत भूमि 18.1 हेक्टेयर से घटकर 17.1 हेक्टेयर हो गई है।

यही वजह है कि खेती के लिए औसत भूमि 2.28 हेक्टेयर से घटकर 1.08 हेक्टेयर हो गई है। यह जमीन 2010-11 में 159.59 मिलियन हेक्टेयर थी, जो 2015-16 में घटकर 157.14 मिलियन हेक्टेयर हो गई यानी 1.53 प्रतिशत खेती योग्य भूमि कम हुई। कम जोत का सीधा असर किसानों की आय पर पड़ा है। इस कारण खेती से किसानों का मोहभंग हुआ।

एक चिंताजनक पहलू यह भी है कि अभी करीब 86 प्रतिशत कृषि भूमि सीमांत और छोटे किसानों के पास है। 2030 तक 91 प्रतिशत भूमि इन किसानों के पास होगी। यानी सीमांत और छोटे किसानों की संख्या में बढ़ोतरी होगी।

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