वर्ष 2017-18 का बजट पेश करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का लक्ष्य दोहराया है। पिछले दो-ढाई सालों में सरकार यह बात कई बार दोहरा चुकी है। लेकिन किसानों को मौजूदा संकट से उबारने के लिए कोई ठोस रणनीति बजट में दिखाई नहीं दी। अलबत्ता, ठेके पर खेती यानी कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को बढ़ावा देने के इरादे साफ तौर पर जाहिर हैं। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में कहा कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के बारे में एक मॉडल एक्ट तैयार कर राज्यों को भेजा जाएगा। यह घोषणा खेती को कॉरपोरेट के हाथों में सौंपने की सरकार की मंशा को जाहिर करती है।
सिर्फ एक फीसदी बढ़ा मनरेगा का बजट
कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़ी कई योजनाओं के बजट में बढ़ोतरी का दावा किया गया है। लेकिन इन घोषणाओं में कई झोल हैं। मिसाल के तौर पर, मनरेगा का बजट 38,500 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 48,000 करोड़ रुपये करते हुए इसे अब तक का सर्वाधिक आवंटन करार दिया गया है। मगर मनरेगा का संशोधित बजट 47,500 करोड़ रुपये था। यानी मुश्किल से एक फीसदी बजट बढ़ा है। जबकि मनरेगा के बकाया 3,469 करोड़ रुपये के भुगतान का बोझ भी आगामी वित्त वर्ष के बजट पर पड़ सकता है।
फसल बीमा योजना के बजट में 32 फीसदी कटाैती
यही हाल केंद्र सरकार की महत्वाकांक्षी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का है। इसका बजट 5,000 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 9,000 करोड़ रुपये किया गया है। सुनने में यह उल्लेखनीय वृद्धि लगती है, लेकिन सच्चाई यह है कि 2016-17 में योजना का बजट 5,000 करोड़ से बढ़ाकर 13,240 करोड़ रुपये किया गया था। क्योंकि पिछले साल के बीमा क्लेम निपटाने थे। इस तरह प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को पिछले साल के संशोधित बजट से 4240 करोड़ रुपये कम मिले हैं। इस योजना को लेकर किसानों की तमाम समस्याएं हैं, जिन्हें दुरुस्त करने की बजाय बजट में 32 फीसदी की कटौती की गई है।
साल 2015 में किसानों की आत्महत्याओं के मामले 42 फीसदी बढ़ चुके हैं। लगातार दो साल से सूखे की मार झेल रहे किसानों को इस साल नोटबंदी से झटका लगा है। इसलिए बजट से किसानों को कुछ सीधी राहत मिलने की आस थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उपज लागत पर 50 फीसदी मुनाफा दिलाने, सुनिश्चित आय की गारंटी या कृषि कर्ज माफी जैसी कोई बड़ी घोषणा बजट में जगह नहीं बना सकी। घाटे का सौदा बनती खेती फायदेमंद कैसे हो, इसका कोई रोडमैप बजट में नहीं है। फिर भी इसे गांव-किसान का बजट कहा जा रहा है। शायद यह किसानों के ज़्यादा जिक्र का कमाल है।
कृषि ऋण का लक्ष्य 9 लाख करोड़ से बढ़ाकर 10 लाख करोड़ रुपये किया गया है। इस ऋण का बड़ा हिस्सा महानगरों में रहने वाले व्यापारियों और बड़े किसानों के खाते में चला जाता है। यह भी स्पष्ट हो चुका है कि ज्यादा कर्ज बंटने से किसानों की हालत नहीं सुधरती है। सबसे पहले उन्हें फसल का उचित दाम चाहिए।
कृषि मंत्रालय का बजट 6 फीसदी बढ़ा
वित्त मंत्री ने कृषि व ग्रामीण विकास से जुड़े क्षेत्रों को 1.87 लाख करोड़ रुपये के रिकॉर्ड आवंटन का दावा किया है। कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के लिए कुल 51028 करोड़ रुपये के व्यय का प्रावधान है, जो 2016-17 के संशोधित अनुमानों से सिर्फ 2954 करोड़ रुपये यानी करीब छह फीसदी अधिक है। इसमें कृषि ऋणों के लिए दी जाने वाली 15,000 करोड़ रुपये की ब्याज सब्सिडी भी शामिल है।
कृषि अर्थशास्त्री टी. हक का कहना है कि बजट में कृषि व ग्रामीण क्षेत्रों से जुड़ी कई घोषणाएं की गई हैं, जो इन क्षेत्रों को लेकर सरकार की गंभीरता को दर्शाती हैं। राष्ट्रीय कृषि बाजार का 585 मंडियों तक विस्तार और डेयरी प्रोसेसिंग व माइक्रो इरीगेशन के लिए नाबार्ड में अलग फंड स्थापित होना सराहनीय पहल हैं। लेकिन यह भी सच है कि कृषि की मौजूदा चुनौतियों को देखते हुए ये कदम अपर्याप्त हैं।
जलवायु परिवर्तन की योजना को सिर्फ 50 करोड़
कृषि से जुड़ी कई योजनाओं के बजट में बढ़ोतरी की गई है। हरित क्रांति से संबंधित योजनाओं के लिए पिछले बजट में 12,559 करोड़ रुपये का प्रावधान था, जिसे बढ़ाकर 13,741 करोड़ रुपये किया गया है। इसी तरह प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना का बजट 28 फीसदी बढ़ा है।
कई योजनाएं बजट कटौती का शिकार भी हुई हैं। खेती को जलवायु परिवर्तन के खतरों से निपटने में सक्षम बनाने के लिए शुरू की गई कृषि मंत्रालय की योजना का बजट 110 करोड़ रुपये से घटाकर मात्र 50 करोड़ रुपये कर दिया गया है। समझना मुश्किल है कि इतने बड़े देश में सिर्फ 50 करोड़ रुपये से कैसे खेती को जलवायु परिवर्तन के खतरे से कैसे उबारा जाएगा?
कृषि क्षेत्र से जुड़ी बजट घोषणाएं:
- कृषि क्षेत्र में 4.1 फीसदी विकास दर का अनुमान
- किसानों की आय 2022 तक दोगुनी करने का लक्ष्य
- प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए 9,000 करोड़ रुपए का प्रावधान
- फसल बीमा योजना का दायरा 30 से बढ़ाकर 40 फीसदी करने का लक्ष्य
- नाबार्ड के जरिये पांच हजार करोड़ रुपये के सूक्ष्म सिंचाई कोष की स्थापना
- नाबार्ड के तहत 8,000 करोड़ रुपये के फंड से डेयरी प्रसंस्करण को बढ़ावा
- नाबार्ड में स्थापित दीर्घकालिक सिंचाई कोष के लिए 20 हजार करोड़ रुपये से बढ़ाकर 40 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान