फसलों को चट करने के लिए खुद को ढाल रही हैं टिड्डियां, वैज्ञानिकों ने चेताया

शोध का उद्देश्य टिड्डियों के रहस्यों को उजागर करना, जो एक वैश्विक खतरा है, इसके कारण धरती पर दस में से एक व्यक्ति प्रभावित होता है।
एफएओ का अनुमान है कि एक अरब टिड्डियों का झुंड एक दिन में लगभग 1,500 टन भोजन चट कर जाता है, जो 2,500 लोगों की रोजमर्रा के भोजन के बराबर है।
एफएओ का अनुमान है कि एक अरब टिड्डियों का झुंड एक दिन में लगभग 1,500 टन भोजन चट कर जाता है, जो 2,500 लोगों की रोजमर्रा के भोजन के बराबर है। फोटो साभार: आईस्टॉक

टिड्डियां गंध की मदद से फसलों को पहले से बेहतर तरीके से पहचान रही हैं तथा उनके अनुसार अपने आपको ढाल रही हैं। इस काम को वे अरबों से ज्यादा जीवों के झुंड में आसानी से कर सकती हैं। इस चिंताजनक बात का खुलासा यूनिवर्सिटी ऑफ कोंस्टांज के क्लस्टर ऑफ एक्सीलेंस कलेक्टिव बिहेवियर के शोधकर्ताओं द्वारा किया गया है।

शोध के मुताबिक, चार साल पहले जब केन्या में टिड्डियों का प्रकोप फैला था, टिड्डियों ने कुछ इलाकों में फसल को पूरी तरह से नष्ट कर दिया था। टिड्डियों के वहां से चले जाने के बाद केवल जहरीले पौधे ही बच पाए थे।

शोधकर्ताओं ने इस प्रकोप के दौरान क्षेत्र से आंकड़े एकत्र किए और उनके आधार पर प्रयोगों और मॉडलों की योजना बनाई। उनका उद्देश्य टिड्डियों के रहस्यों को उजागर करना था, जो एक वैश्विक खतरा है, इसके कारण धरती पर 10 में से एक व्यक्ति प्रभावित होता है।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का अनुमान है कि एक अरब टिड्डियों का झुंड एक दिन में लगभग 1,500 टन भोजन चट कर जाता है, जो 2,500 लोगों की रोजमर्रा के भोजन के बराबर है। ये चौंका देने वाले आंकड़े उनके शोध की तात्कालिकता और महत्व को उजागर करते हैं।

अकेले और झुंड में रहने वाले जानवरों के बीच काफी अंतर

टिड्डे हमेशा झुंड में नहीं रहते हैं। टिड्डे, टिड्डे होते हैं जो कुछ ही घंटों में अकेले रहने के बावजूद भी झुंड में बदल सकते हैं। अवस्था के इस परिवर्तन का व्यवहार, विकास, शरीर क्रिया विज्ञान और प्रजनन पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ता है। तंत्रिका तंत्र और शरीर के रंग में भी बदलाव दिखाई देते हैं, जो छलावरण वाले हरे रंग से बदलकर एक आकर्षक पीले-काले रंग में बदल जाता है।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से जीवन शैली में यह अत्यधिक परिवर्तन जानवरों के भोजन की खोज करने के तरीके को प्रभावित करता है, साथ ही भोजन की तलाश करते समय जानवरों के पास उपलब्ध जानकारी की उपलब्धता को भी प्रभावित करता है। इसलिए, उन्होंने प्रयोगशाला में अकेले रहने वाले और मिलनसार जानवरों के भोजन की तलाश के निर्णयों की निगरानी के लिए व्यावहारिक प्रयोग किए।

भोजन के विकल्पों को दृष्टि से या घ्राण द्वारा या संयोजन में देखा जा सकता है। यहां बताते चले की 'घ्राण पिण्ड' सूंघने की क्षमता के लिए जाना जाता है।

न्यूरोबायोलॉजिस्ट कहते हैं, व्यवहारिक प्रयोगों और निर्णय लेने के मॉडल के आधार पर, हमने पाया कि भोजन की खोज करते समय झुंड में रहने वाले जानवरों में गंध की भावना बेहद महत्वपूर्ण होती है।

जानवरों की घ्राण प्रणाली अहम

इसलिए, शोध दल को पता था कि घ्राण प्रणाली अहम है। नतीजतन, उन्होंने इन विवो कैल्शियम इमेजिंग तकनीक का उपयोग करके गंध प्रसंस्करण के लिए जिम्मेदार मस्तिष्क के क्षेत्र पर करीब से नजर डाली। यह प्रक्रिया मस्तिष्क के पूरे क्षेत्रों में सूचना प्रसंस्करण को दर्शाती है।

शोध के मुताबिक परिणाम स्पष्ट थे, यदि भोजन और टिड्डे की गंध को जोड़ा जाय तो ये मस्तिष्क की गतिविधि से जुड़कर अपेक्षा से कहीं अधिक तेज होती है। शोधकर्ताओं ने शोध में बताया कि यह प्रभाव केवल झुंड में रहने वाले टिड्डे में पाया गया।

इसका मतलब यह है कि टिड्डे झुंड में रहने वाली जीवन शैली अपनाने पर अपनी गंध की भावना को ढाल लेते हैं। अब उनकी घ्राण प्रणाली झुंड की मिश्रित गंध में भोजन की गंध को बेहतर ढंग से पहचान सकते हैं। यही कारण है कि टिड्डे अभी भी झुंड में भोजन को आसानी से समझ सकते हैं।

शोधकर्ताओं के मुताबिक, वे कैल्शियम इमेजिंग प्रयोगों और कम्प्यूटेशनल विश्लेषणों को मिलाकर इस बात को बेहतर ढंग से समझने में सफल रहे हैं कि टिड्डे नई पर्यावरणीय परिस्थितियों के साथ कैसे तालमेल बिठाते हैं।

शोधकर्ताओं ने कहा उन्हें विश्वास है कि भावी शोध और विकास से भविष्य में होने वाले प्रकोपों ​​को समझने, उनका पूर्वानुमान लगाने और उनका प्रबंधन करने की हमारी क्षमता में वृद्धि होगी। शोध के परिणाम नेचर कम्युनिकेशंस नामक पत्रिका में प्रकाशित किए गए है।

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