विश्व कपास दिवस: कपास से दुनिया भर में 10 करोड़ से अधिक परिवारों को होता है फायदा

आज पहला आधिकारिक विश्व कपास दिवस (7 अक्टूबर) है, जिसका उद्देश्य कपास क्षेत्र को बढ़ावा देना, आर्थिक विकास, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और गरीबी उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाना है।
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स और संयुक्त राष्ट्र
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हम अधिकतर कपास से बनाए जाने वाले कपड़ों को पहनते हैं। यह आरामदायक, सांस लेने योग्य और टिकाऊ होते है। कपास सिर्फ एक वस्तु ही नहीं है उससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। यह प्राकृतिक रूप से बनाया जाने वाला कपड़ा दुनिया भर में लोगों के जीवन बदलने वाला उत्पाद है। दुनिया भर में कपास को 286.7 लाख से अधिक किसान उगाते हैं। यह 5 महाद्वीपों के 75 देशों में 10 करोड़ से अधिक परिवारों को फायदा पहुंचाता है।

इसका मतलब है कि किसी भी सूती कपड़े और उसकी व्यापार श्रृंखला के पीछे एक कहानी छिपी हुई है। यह सच है कि विकसित अर्थव्यवस्थाओं के लिए कपास वास्तव में महत्वपूर्ण है, लेकिन कम विकसित और विकासशील देशों के लिए, यह एक सुरक्षा जाल की तरह काम करता है। विशेष रूप से सौंदर्य प्रसाधन, वस्त्रों के रूप में जो शरीर में एलर्जी फैलाएं बिना तन को ढकते हैं।

कपास दुनिया के कुछ सबसे गरीब ग्रामीण क्षेत्रों को रोजगार और आय प्रदान करने वाली महिलाओं सहित कई ग्रामीण छोटे किसानों और मजदूरों के लिए आजीविका और आय का एक प्रमुख स्रोत है।

यह पहला आधिकारिक संयुक्त राष्ट्र विश्व कपास दिवस आज यानी 7 अक्टूबर है जहां संयुक्त राष्ट्र कपास क्षेत्र को बढ़ावा देने और आर्थिक विकास, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और गरीबी उन्मूलन में महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में जागरूकता बढ़ाना चाहता है। यह दिवस एसडीजी 8 को भी बढ़ावा देता है इसका उद्देश्य सभी के लिए निरंतर, समावेशी और सतत आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोजगार और अच्छे काम के महत्व को उजागर करना है।

क्या आप जानते हैं?

अक्सर कुछ सबसे गरीब क्षेत्रों में एक टन कपास औसतन 5 लोगों के लिए साल भर का रोजगार प्रदान करता है।

कपास आधारित रेशा या फिलामेंट 3डी प्रिंटर के लिए बहुत अच्छे हैं क्योंकि वे गर्मी को अच्छी तरह से संचालित करते हैं। गीला होने पर मजबूत बनें रहते हैं और लकड़ी जैसी सामग्री की तुलना में अधिक मापनीय हैं।

कपड़ा और परिधान में इस्तेमाल होने वाले इसके रेशों या फाइबर के अलावा, कपास से खाद्य उत्पादों को भी प्राप्त किया जा सकता है, जैसे कि खाद्य तेल और बीज, पशु चारा आदि।

एक जलवायु के अनुकूल और बहुउद्देशीय उत्पाद

कपास के पौधों के बीजों के सफेद रेशों से टिकाऊ और प्राकृतिक रूप से जैविक कपड़ा बनाया जाता है। जलवायु परिवर्तन के लिए प्रतिरोधी फसल के रूप में, इसे शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। कपास का दुनिया की कृषि योग्य भूमि का सिर्फ 2.1 फीसदी हिस्सा है, फिर भी यह दुनिया की 27 फीसदी कपड़े की जरूरतों को पूरा करता है। कपास से लगभग कुछ भी बर्बाद नहीं होता है। इसका उपयोग कपड़ा, पशु चारा, खाद्य तेल, सौंदर्य प्रसाधन या ईंधन, अन्य उपयोगों में किया जाता है।

भारत में कपास

भारत को कपास की खेती के तहत सबसे बड़ा क्षेत्र होने का गौरव प्राप्त है। भारतीय कपास निगम लिमिटेड के मुताबिक भारत में कपास की खेती के तहत 125 लाख हेक्टेयर से 135 लाख हेक्टेयर के बीच है जो विश्व क्षेत्र का लगभग 42 फीसदी है।

वहीं भारत विश्व में कपास के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है, जो विश्व कपास उत्पादन का लगभग 26 फीसदी है। प्रति किलोग्राम उपज जो वर्तमान में 459 किलोग्राम/हेक्टेयर है, दुनिया की औसत उपज लगभग 757 किलोग्राम किलोग्राम/हेक्टेयर की तुलना में अभी भी कम है।

घरेलू कपड़ा उद्योग देश के सबसे बड़े उद्योग में से एक है और पिछले दो दशकों में स्थापित स्पिंडलेज और यार्न उत्पादन के मामले में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई है। इस वृद्धि की महत्वपूर्ण विशेषताओं में ओपन-एंड रोटार की स्थापना और निर्यात-उन्मुख इकाइयों की स्थापना शामिल है। तकनीकी के लिहाज से, भारतीय कताई उद्योग अंतरराष्ट्रीय प्रौद्योगिकी प्रवृत्तियों के साथ तालमेल बिठाने में सक्षम रहा है। भारत कपास का सबसे बड़ा उपभोक्ता बन गया है, जो विश्व कपास की खपत का लगभग 20 फीसदी है।

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