जिन परिवारों की मुखिया महिलाएं होती हैं, जलवायु में आ रहे बदलावों की वजह से उनकी कृषि आय को अधिक नुकसान हो रहा है, क्योंकि पुरुषों के मुकाबले महिलाएं बेमौसमी घटनाओं से निपटने का इंतजाम करने में पूरी तरह सक्षम नहीं होती हैं। यह बात संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) की एक ताजा रिपोर्ट में कही गई है।
रिपोर्ट में भारत सहित निम्न और मध्यम आय वाले देशों (एलएमआईसी) में हर साल जलवायु संकट के कारण कृषि आय के नुकसान का आकलन किया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पुरुष प्रधान परिवारों की तुलना में महिला प्रधान घरों में भीषण गर्मी के कारण 8 प्रतिशत और बाढ़ के कारण 3 प्रतिशत अधिक नुकसान होता है।
इसी तरह, जिन परिवारों का नेतृत्व युवा लोग (35 वर्ष से कम) कर रहे थे, उनमें चरम मौसम की घटनाओं के कारण वृद्ध लोगों के नेतृत्व वाले परिवारों की तुलना में कृषि आय खोने की अधिक संभावना पाई गई।
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चरम मौसम की घटनाओं पर प्रतिक्रिया करने और अनुकूलन करने की उनकी क्षमता में अंतर होता है। शोध पत्र में पहली बार, 24 देशों से उनके धन की स्थिति, लिंग और उम्र के कारण सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर स्थिति वाले ग्रामीण लोगों के लिए जलवायु संकट से उत्पन्न चुनौती की भयावहता पर ठोस जानकारी दी गई है।
अनजस्ट क्लाइमेट रिपोर्ट के मुताबिक महिला प्रधान परिवारों को गर्मी के कारण प्रति व्यक्ति 83 डॉलर और बाढ़ के कारण 35 डॉलर आमदनी का नुकसान हुआ। जो कुल कुल मिलाकर क्रमशः 37 बिलियन डॉलर और 16 बिलियन डॉलर था।
यदि औसत तापमान में केवल 1 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, तो इन महिलाओं को पुरुषों की तुलना में उनकी कुल आय में 34 प्रतिशत अधिक नुकसान का सामना करना पड़ेगा। महिलाओं और पुरुषों के बीच कृषि उत्पादकता और मजदूरी में महत्वपूर्ण मौजूदा अंतर को ध्यान में रखते हुए, अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि यदि इस ओर ध्यान नहीं दिया गया तो जलवायु परिवर्तन आने वाले वर्षों में इन अंतरों को काफी बढ़ा देगा।
महिलाओं को देखभाल और घरेलू जिम्मेदारियों जैसे कई भेदभावपूर्ण मानदंडों का सामना करना पड़ता है और ये उन पर असंगत बोझ डालते हैं। भूमि पर उनके अधिकारों को सीमित करते हैं। मौसम की चरम घटनाएं पुरुष प्रधान परिवारों की तुलना में महिला प्रधान परिवारों की आय को कम कर देती हैं।
एफएओ ने निम्न एवं मध्यम आय वाले 24 देशों (जिनकी आबादी 95 करोड़ से अधिक है) के 100,000 से अधिक ग्रामीण परिवारों के सामाजिक आर्थिक डेटा का विश्लेषण किया। इन देशों में भारत, पाकिस्तान, नेपाल, वियतनाम, मंगोलिया, इराक, आर्मेनिया, जॉर्जिया, मलावी, रवांडा, युगांडा, तंजानिया, इथियोपिया, माली, नाइजर, नाइजीरिया, घाना, सेनेगल, सिएरा लियोन, कैमरून, बुर्किना फासो, बांग्लादेश, इक्वेडोर और पेरू आदि शामिल हैं।