क्या जायद फसलों पर भी पड़ेगा भीषण गर्मी का असर?

केंद्र सरकार का प्रयास है कि देश में दलहन-तिलहन के मामले में आत्मनिर्भर होने के लिए ग्रीष्मकालीन जायद फसलों का उत्पादन बढ़ाया जाए
Photo: Pixabay
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देश में एक और जहां जायद (ग्रीष्मकालीन) फसलों का उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है। वहीं, मार्च-अप्रैल के महीने में बढ़ती गर्मी ने इन फसलों के लिए नई चुनौती खड़ी कर दी है। विशेषज्ञों का कहना है कि इस साल यानी मार्च-अप्रैल 2022 में तापमान में हुई भारी वृदि्ध से जायद फसलों को नुकसान हो सकता है।

जायद यानी ग्रीष्मकालीन फसलों की बुआई फरवरी के अंतिम सप्ताह या मार्च के पहले सप्ताह में शुरू होती है और मई-जून तक इन फसलों की कटाई हो जाती है। इनमें दलहन, तिलहन और पोषण अनाज की बुआई की जाती है। इस साल 55.76 लाख हेक्टेयर में जायद फसल लगाई गई है, जो पिछले साल 56.47 लाख हेक्टेयर से थोड़ा कम है। जबकि 2018-19 में जायद फसलों का रकबा 33.56 लाख हेक्टेयर था।

जायद फसलों को किसानों की अतिरिक्त आमदनी का जरिया माना जाता है, क्योंकि इसे रबी और खरीफ के बीच बचे सीजन में लगाया जाता है। चूंकि जायद फसलों में दलहन-तिलहन की हिस्सेदारी प्रमुख है, इसलिए सरकार का मकसद है कि जायद फसलों को बढ़ावा देकर दलहन और तिहलन के आयात को कम किया जा सके।

लेकिन इस साल यानी 2022 के तापमान ने सरकार और किसानों की चिंता बढ़ा दी है। मार्च में रिकॉर्डतोड़ गर्मी और अप्रैल के पहले सप्ताह से देश के अधिकतर हिस्से में चल रही लू (हीटवेव) की वजह से ग्रीष्मकालीन जायद फसलों को नुकसान पहुंचने की आशंका जताई जा रही है।

विशेषज्ञों का कहना है कि ग्रीष्मकालीन जायद फसलों के लिए अधिकतम तापमान 35 डिग्री तक सही रहता है, लेकिन यदि तापमान 40 डिग्री से अधिक पहुंच जाए तो फसलों को नुकसान हो सकता है। भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान (इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पप्सेज रिसर्च) के प्रिंसिपल साइंटेस्ट आदित्य प्रताप ने डाउन टू अर्थ से कहा कि ग्रीष्मकालीन जायद फसलों में सबसे अधिक मात्रा समर मूंग और उड़द की होती है। चूंकि अप्रैल के पहले सप्ताह से तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो गया है और लगातार शुष्क बना हुआ है तो इसकी वजह से दलहन की इन फसलों के परागण में फर्क पड़ेगा। साथ ही, गर्मी की वजह से दालों की फलियां भी नहीं बनेंगी।

आदित्य प्रताप कहते हैं कि फरवरी के मध्य में जो किसान आलू निकाल लेते हैं और सरसों काट लेते हैं, उन्होंने फरवरी के अंतिम सप्ताह या मार्च के पहले सप्ताह में ग्रीष्मकालीन जायद की फसल लगाई है, उन्हें ज्यादा नुकसान नहीं होगा, लेकिन जिन किसानों ने गेहूं की फसल की कटाई के बाद मार्च के मध्य या अंतिम सप्ताह में दलहन की फसल लगाई है, उन्हें नुकसान होने की आशंका है।

खरीद की चुनौती

केंद्र सरकार जहां राज्यों से अपील कर रही है कि वे किसानों को अधिक से अधिक जायद फसलें लगाने के लिए प्रेरित करें। वहीं राज्यों का कहना है कि जायद फसलों की खरीद को लेकर केंद्र सरकार कोई ठोस पहल नहीं कर रही है। यह मुद्दा बीते जनवरी माह में कृषि मंत्रालय की ओर से आयोजित जायद ग्रीष्मकालीन अभियान 2022 के लिए राष्ट्रीय कृषि सम्मेलन में उठा।

यह मुद्दा मध्य प्रदेश सरकार के कृषि विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव ने उठाया। उन्होंने बताया कि 2021 के ग्रीष्मकाल में मध्य प्रदेश में ग्रीष्मकालीन मूंग की पैदावार लगभग 12 लाख टन हुई और आठ लाख हेक्टेयर में जायद फसल लगाई गई थी। लेकिन केंद्र सरकार ने केवल मूल्य स्थिरीकरण कोष (पीएसएफ) के तहत केवल 2.5 लाख टन खरीद की अनुमति दी गई। इसके चलते राज्य सरकार पर वित्तीय दबाव बढ़ गया। साथ ही, राज्य सरकार किसानों को भी प्रोत्साहित भी न कर पाई। इसके चलते उपज के निपटान पर राज्य सरकार 200 से 300 करोड़ रुपए खर्च करना पड़ा। लेकिन अगले सीजन में यदि केंद्र की ओर से सहायता नहीं मिली तो राज्य जायद फसल के अपने लक्ष्य को हासिल नहीं करेंगे।

हालांकि सचिव ने उन्हें आश्वास्त किया कि जायद फसलों के कुल उत्पादन के 25 प्रतिशत फसल की खरीद की जाएगी। लेकिन इसके लिए इस साल से राज्य सरकारों को जायद फसलों के कुल बुआई क्षेत्र में वृद्धि की जानकारी समय पर देनी होगी, ताकि खरीद की अनुमति एडवांस में दी जा सके। कृषि मंत्रालय के अधीन चल चल रहे आर्थिक एवं सांख्यिकी निदेशालय (डीईएस) को भी समय रहते आंकड़ों पर नजर रखने को कहा गया।

राज्यों ने बढ़ाया जायद फसलों का उत्पादन

सम्मेलन के दौरान बिहार के अधिकारियों ने बताया कि बिहार में 11 लाख हेक्टेयर में जायद फसलों की बुआई की गई है, इसमें दलहन और तिलहन की हिस्सेदारी लगभग 8 लाख हेक्टेयर थी, जिसमें 5.29 लाख हेक्टेयर में दलहन की बुआई की गई, जो केवल एक साल पहले तक केवल 40 हजार हेक्टेयर थी।

बिहार ने कहा है कि वह जायद फसलों की बुआई का क्षेत्रफल बढ़ाया और इसमें सूरजमुखी, उड़द, मूंग, हाइब्रिड मक्का और ग्रीष्मकालीन चावल शामिल होंगे। झारखंड भी लगभग 80 हजार हेक्टेयर में जायद फसलों की बुआई करेगा। इनमें खासकर समर राइस और समर मूंग प्रमुख होंगे।

ओडिशा ने कहा है कि वह साल 2022 में 6.15 लाख हेक्टेयर में जायद फसलों की बुआई करेगा, जबकि 2019 में 5.90 लाख हेक्टेयर का लक्ष्य हासिल किया था। ओडिशा ने कहा कि जायद फसलों को लेकर वैसे तो उसे कोई शिकायत नहीं है, लेकिन उसने मांग की कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में जंगली जानवरों से होने वाले नुकसान को भी कवर किया जाए।

ओडिशा ने भी कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के तहत केंद्र सरकार की ओर से राज्य को कोई सहायता नहीं दी ज रही है। हरियाणा ने भरोसा दिलाया कि समर मूंग में 3 गुणा वृद्धि की जाएगी और सूरजमुखी की फसल में 25 प्रतिशत की वृद्धि की जाएगी।

महाराष्ट्र ने 2020-21 में लगभग एक लाख हेक्टेयर में जायद फसलों की बुआई की थी। लेकिन महाराष्ट्र की ओर से शिकायत की गई कि खरीफ सीजन के दौरान राज्य के किसानों को खाद की कमी का सामना करना पड़ा।

आंध्रप्रदेश ने कहा कि सर्दियों में हुई बारिश के कारण मिट्टी में नमी होने से राज्य में ग्रीष्मकालीन फसलों के उत्पादन की अच्छी संभावना है। यही वजह है कि राज्य ने काला चना, हरा चना और मूंगफली की बुआई के लिए एक खास रणनीति तैयार की है।

कर्नाटक ने भी 5 लाख हेक्टेयर में गीष्मकालीन/जायद फसलों की बुआई का लक्ष्य रखा। केरल ने कहा कि गर्मी के मौसम में प्रदेश में धान की बुआई की जाती है, हालांकि राज्य सरकार का प्रयास है कि फसल विविधीकरण योजना के तहत बाजरे की बुआई की जाए।

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