25 दिसंबर को किसानों के साथ अपनी बातचीत और संबोधन के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि खेतों को नुकसान पहुंचाने वाले जानवर हमारे लिए एक बड़ी चिंता है। लेकिन, पर्यावरणविद या पर्यावरण की वकालत करने वाले लोग ऐसे जानवरों की हत्या का विरोध करते हैं।
इस बातचीत के दौरान मध्य प्रदेश के एक किसान ने प्रधानमंत्री के समक्ष यह चिंता जताई कि ये जानवर फसलों को भारी मात्रा में नुकसान पहुंचा रहे हैं। वह चाहते थे कि मोदी इस समस्या का समाधान निकालें।
अपने जवाब में, मोदी ने कहा कि वह इस समस्या से तब से अवगत है, जब वह गुजरात के मुख्यमंत्री थे।
प्रधानमंत्री ने कहा,“लेकिन जो लोग आज किसानों के विरोध-प्रदर्शन का समर्थन कर रहे हैं, उन्होंने खेत को नुकसान पहुंचाने वाले जानवरों को मारने वाले किसानों का विरोध किया और उन किसानों को जेल भिजवाया।“
जंगली जानवरों से होने वाली फसल क्षति का आकलन राज्य स्तरों पर किया जाता है। कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग इस नुकसान का आकलन नहीं करता है।
इस वजह से फसल नुकसान का सटीक आकलन मुश्किल है और इसे ले कर आने वाले आंकड़े सन्दिग्ध हैं। हालांकि, 15 सितंबर, 2020 को लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए, केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने 10 राज्यों में इस कारण से हुई फसल हानि के मामलों और नुकसान के आंकड़े साझा किए थे।
आंध्र प्रदेश ने सबसे अधिक ऐसे मामलों की संख्या और फसल नुकसान दर्ज किया था। यहां 2017-18 में ऐसे मामलों की संख्या 1,051 थी, जो 2019-20 में बढ़कर 3,744 हो गए। इसी अवधि में फसल का नुकसान 582 एकड़ से बढ़कर 3,106 एकड़ हो गया। 2017-18 में मुआवजा 34,96,000 रुपये से बढ़ कर 2019-20 में 1,17,20,000 हो गया।
इसी साल 6 मार्च को राज्यसभा में उठाए गए एक अन्य सवाल के जवाब में, तोमर ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के तहत, जंगली जानवरों द्वारा किसानों को फसल नुकसान के लिए राज्यों द्वारा दिए गए मुआवजे के आंकड़ों को सामने रखा था। 2018-19 में, यह मुआवजा 3490 लाख रुपये था। महाराष्ट्र और कर्नाटक ने सबसे अधिक राशि, क्रमश: 1410 लाख और 1028 लाख रुपये जारी किए थे।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) के अलावा, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भी देश में वन्यजीवों और उनके निवास स्थल के प्रबन्धन के लिए केंद्र प्रायोजित योजनाओं, जैसे "इंटीग्रेटेड डेवलपमेंट ऑफ वाइल्ड लाइफ हैबिटाट, “प्रोजेक्ट टाइगर” और “प्रोजेक्ट एलीफैंट” के तहत राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है।
राज्य सरकारें समय-समय पर केंद्र से वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कुछ जंगली प्रजाति को “वर्मिन” (पौधों को नुकसान पहुंचाने वाले छोटे जंगली जीव) घोषित करने का भी अनुरोध करते हैं। अधिनियम की धारा 62 केंद्र सरकार को अधिनियम की अनुसूची I और II में उल्लिखित प्रजातियों के अलावा भी अन्य किसी प्रजाति को जंगली जानवर घोषित करने की शक्ति प्रदान करता है। जिस प्रजाति को “वर्मिन” घोषित कर दिया जाता है, उन्हें वन्यजीव संरक्षण अधिनियम की अनुसूची V में डाल दिया जाता है।
किसी प्रजाति को वर्मिन घोषित करने का मतलब है कि इन्हें सामूहिक रूप से मारा जा सकता है और इसके लिए कानून के दंडात्मक प्रावधान भी लागू नहीं होंगे। अनुसूची V में स्थायी रूप से कुछ प्रजातियां शामिल हैं। ये प्रजातियां हैं, कौवा, फ्रूट बैट (चमगादड़) और चूहे।
इन प्रजातियों के अलावा, राज्यों ने केंद्र से कहा है कि जंगली सूअरों, नीलगाय और बंदरों को भी वर्मिन घोषित किया जाए।
4 फरवरी, 2019 को राज्यसभा में दिए जवाब में, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के राज्य मंत्री, महेश शर्मा ने संसद को बताया कि बिहार में नीलगाय और जंगली सुअर को 2015 में एक वर्ष की अवधि के लिए, राज्य के दस जिलों में वर्मिन घोषित किया गया था। जंगली सुअर को पूरे उत्तराखंड में 2016 में पहली बार एक वर्ष के लिए और फिर 2018 में एक और वर्ष के लिए “वर्मिन” घोषित किया गया था। 2016 में हिमाचल के एक जिले में छह महीने के लिए बंदरों को वर्मिन घोषित किया गया था। इस घोषणा के बाद, राज्य के 12 जिलों में से 10 में एक साल के लिए बंदरों को “वर्मिन” घोषित किया गया था।
क्रम संख्या राज्य वर्ष 2017-18 2018-19 (नुकसान लाख रुपए में)
1 आन्ध्र प्रदेश 34.96 111.34
2 अरूणाचल प्रदेश 10.17 10.14
3 असम 87.49 0.00
4 बिहार 4.07 2.37
5 झारखंड 412.01 470.77
6 केरल 29.01 69.95
7 कर्नाटक 1369.16 1028.13
8 महाराष्ट्र 1306.74 1410.17
9 मेघालय 51.85 79.95
10 मिजोरम 2.33 11
11 तमिलनाडु 186.41 215.51
12 उत्तराखंड 78.75 94.34