क्या है आरसीईपी और क्यों विरोध कर रहे हैं किसान?

हाल ही में कई किसान संगठनों ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) का विरोध किया है
Photo: Vikas Choudhary
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हाल ही में कई किसान संगठनों ने क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी, रीजनल कंप्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप) का विरोध किया है। इन संगठनों का कहना है कि यह व्यापार समझौता कृषि पर आधारित लोगों की आजीविका, बीजों पर उनके अधिकार के लिए खतरा बन सकता है। खासकर, इस समझौते का सबसे बुरा असर डेयरी सेक्टर पर पड़ेगा।

आइए, समझते हैं कि क्या है आरसीईपी? यह कुछ देशों को एक समूह है, जिसमें दस आसियान सदस्य (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, म्यामां, फिलिपीन, सिंगापुर, थाइलैंड और वियतनाम) और आस्ट्रेलिया, चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और न्यूजीलैंड शामिल हैं। इनके बीच में एक मुक्त व्यापार समझौता हो रहा है। जिसके बाद इन देशों के बीच बिना आयात शुल्क दिए व्यापार किया जा सकता है।

क्या कहते हैं किसान?

भारतीय किसान यूनियन के वरिष्ठ नेता युद्धवीर सिंह ने बताया कि यदि इस समझौते को पूरी तरह लागू किया गया तो देश को 60 हजार करोड़ के राजस्व का नुक़सान होगा। आरसीईपी 92 प्रतिशत व्यापारिक वस्तुओं पर शुल्क हटाने के लिए भारत को बाध्य करेगा। आसियान ब्लॉक देशों के साथ सस्ते आयात को मंजूरी देकर भारत को 2018-19 में 26 हजार करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।

युद्धवीर सिंह के मुताबिक, आरसीईपी व्यापार समझौता,  विश्व व्यापार संगठन से ज्यादा खतरनाक है। भारत आरसीईपी के अन्तर्गत व्यापार करने वाली वस्तुओं पर शुल्क को 92% से घटा कर 80% करने के लिए दवाब बना रहा है। पर भारत बाद में ड्यूटी बढ़ा नहीं सकेगा -यह एक ऐसा प्रावधान है, जिससे भारत को अपने किसानों और उनकी आजीविका के संरक्षण खासी दिक्कत होगी।

तमिलनाडु के तमिल व्यवसायी गल संगम के मुखिया सेलामैटू ने बताया कि इससे डेयरी व्यवसाय को बड़ा नुकसान होगा। भारत का अधिकांश असंगठित डेयरी सेक्टर वर्तमान में 15 करोड़ लोगों को आजीविका प्रदान करता है। आरसीईपी समझौता लागू होने के बाद न्यूजीलैंड आसानी से भारत में डेयरी उत्पाद सप्लाई करने लगेगा।

सैलामैटू के मुताबिक, न्यूजीलैंड यह आधा सच ही बता रहा है कि उसके केवल 5 प्रतिशत डेयरी उत्पाद ही भारत को निर्यात के लिए रखे जाएंगे। लेकिन ये 5 प्रतिशत ही हमारे पूरे बाजार के एक तिहाई के बराबर है। कल्पना करें कि यदि अन्य देश भी अपना डेयरी उत्पाद यहां झोकेंगे तो क्या परिणाम होगा।

युद्धवीर सिंह कहते हैं कि भारत पहले से ही डेयरी में आत्म निर्भर देश है। पर आरसीईपी के जरिए, विदेशी कम्पनियां जैसे कि फोंटरा, दानोन आदि अपने ज्यादा उत्पादों को यहां खपाने की कोशिश करेंगी। ऐसे में, हम उन चीजों का आयात क्यों करें, जिनकी हमें जरूरत नहीं है। डेयरी के अलावा, आरसीईपी विदेशी कंपनियों को महत्वपूर्ण क्षेत्रों जैसे बीज और पेटेंट में भी छूट देगा। इससे जापान और दक्षिण कोरिया से आने वाले बीजों, दवाइयों, और कृषि रसायनों का प्रभुत्व बढ़ जाएगा।

सिंह कहते हैं कि यदि जनसंख्या के आधार पर देखा जाए तो आरसीईपी अब तक का सबसे बड़ा विदेशी व्यापार समझौता होगा, जोकि दुनिया की 49 फीसदी आबादी तक पहुंचेगा और विश्व व्यापार का 40 फीसदी इसमें शामिल होगा, जो दुनिया की एक तिहाई जीडी पी के समान होगा।

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