क्यों हार गए किसान नेता राजू शेट्टी  

आम चुनाव में किसान आंदोलन की वजह से खासे लोकप्रिय रहे राजू शेट्टी की हार चौंकाने वाली है। डाउन टू अर्थ ने उनसे वजह जानने की कोशिश की।
क्यों हार गए किसान नेता राजू शेट्टी  
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महाराष्ट्र के प्रमुख किसान नेता, स्वाभिमानी पक्ष के संयोजक राजू शेट्टी चुनाव हार गए। वे हाथकणंगले सीट से लड़ते हैं और दो बार से लगातार सांसद थे। इस बार शेट्टी दूसरे नंबर पर रहे, उन्हें शिवसेना के धरियाशील संभाजी राव ने 96039 वोटों से हराया। शेट्टी अपने क्षेत्र में बेहद लोकप्रिय हैं और लंबे समय से किसानों की लड़ाई लड़ रहे हैं। वह 2001 से चुनाव लड़ और जीत रहे हैं। उन्होंने सबसे पहले कोल्हापुर जिले में जिला परिषद का चुनाव लड़ा। उसके बाद वह 2004 में महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य चुने गए। फिर उन्होंने 2009 और 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता। किसान आंदोलनों की समझ रखने वालों के लिए राजू शेट्टी की हार बेहद चौंकाने वाली है। यही वजह है कि डाउन टू अर्थ ने शेट्टी से बातचीत की और उनसे उनकी हार का कारण जानने का प्रयास किया। प्रस्तुत है, उनसे बातचीत के अंश:

आपकी हार की वजह क्या रही?

मेरी हार की वजह इनका (भाजपा-शिवसेना) का प्रचार अभियान रहा। इन्होंने प्रचार करके लोगों को डराया कि अगर मोदी प्रधानमंत्री नहीं बना तो इमरान खान भारत पर हमला कर देगा और केवल मोदी ही पाकिस्तान में घर में घुसकर मार सकते हैं। उन्होंने लोगों को रोजमर्रा की दिक्कतों के बारे में सोचने का समय ही नहीं दिया। देश भर में जो माहौल बनाया गया था, वही माहौल मेरे क्षेत्र में भी बना दिया गया। ये लोग लहर बनाने में कामयाब रहे।

2014 के मुकाबले यह चुनाव कैसे अलग था?

2014 में जब ये लोग वोट मांगने आए तो उस समय इन लोगों ने किसानों का मुद्दा उठाया, स्वामीनाथन आयोग की बात की थी, कर्जा मुक्ति का वादा किया था, लेकिन इस बार किसानों की बात ही नहीं की। चुनाव से पहले किसानों को 6000 रुपए देने का वादा किया, लेकिन इसमें से 2000 रुपए वापस ले लिए।

क्या-क्या आपको किसानों का पूरा वोट मिला?

नहीं, मेरे क्षेत्र के किसान भी उनके झांसे में आ गए। हालांकि काफी संख्या में किसानों ने मुझे वोट दिया, लेकिन फिर भी काफी किसानों ने उन्हें वोट दिया।

इसकी क्या वजह रही?

दरअसल, मेरे क्षेत्र में ज्यादातर गन्ना किसान हैं। जिनकी लड़ाई में मैं लंबे समय से लड़ रहा हूं। मेरे पूरे क्षेत्र में गन्ना मिलों पर किसानों का कोई बकाया नहीं है, क्योंकि मैं आंदोलन कर-करके मिलों से पैसा वसूल कर दिया। दूसरे इलाकों के मुकाबले मेरे इलाके में गन्ने का रेट 600 से 700 रुपए अधिक है। किसानों को लगा कि पैसा तो मिल गया, पैसा मिलने के बाद लोग थोड़ा सा स्थापित हो जाते हैं तो बाकी बातें उनके दिमाग में आने लगती हैं। इसके अलावा मैं अल्पसंख्यक वर्ग से हूं, इसे भी मुद्दा बनाया गया।

आपके क्षेत्र में युवाओं की क्या भूमिका रही?

युवा भी इनके झांसे में आ गए। खासकर पुलवामा, बालाकोट के बाद जो स्थिति बनी, युवा उसमें बह गए। हम लोगों ने रोजगार का मुद्दा उठाया, लेकिन युवाओं को समझ नहीं आया।

अब आपकी रणनीति रहेगी?

मैंने हमेशा से किसानों की लड़ाई लड़ी है। आगे भी लडूंगा, बल्कि अब और जोर-शोर से लड़ूगा। अगले पांच साल चुप नहीं बैठेंगे। ये पांच साल देखते-देखते बीत जाएंगे। फिर से जीतूंगा।  

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