खेती पर क्यों कब्जा जमाना चाहते हैं कारपोरेट?

भारत का किराना बाजार दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा बाजार है, अब इस पर कब्जे की होड़ है
खेती पर क्यों कब्जा जमाना चाहते हैं कारपोरेट?
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सितंबर 2020 में संसद द्वारा पास किए कृषि कानूनों को लेकर किसान गुस्से में हैं। किसान संगठनों का कहना है कि ये कानून कारपोरेट के फायदे के लिए हैं। इन कानूनों के लागू होने के बाद कारपोरेट्स न केवल आसानी से कृषि उपज खरीद सकेंगे, बल्कि जरूरत के मुताबिक ठेके पर खेती करवा सकेंगे और उपज खरीद कर अपने पास जमा कर सकेंगे। किसान संगठनों की यह आशंका काफी हद तक इसलिए सही लगती है, क्योंकि पिछले कुछ सालों के दौरान कारपोरेट समूहों ने खाद्य (फूड) एवं किराना (ग्रोसरी) बाजार में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाई है, बल्कि कई अध्ययन बताते हैं कि आने वाले सालों में इन दोनों क्षेत्रों में संगठित बाजार की हिस्सेदारी बढ़ेगी। साथ ही, इसमें ऑनलाइन मार्केट का दखल भी बढ़ेगा।

यूनाइटेड स्टेट डिपार्टमेंट ऑफ एग्रीकल्चर (यूएसएफडी) के फॉरेन एग्रीकल्चरल सर्विस ने 17 जुलाई 2019 को भारत के रिटेल फूड सेक्टर पर एक रिपोर्ट “रिटेल सेक्टर एक्सपेंशन क्रिएट न्यू अपॉर्चुनिटीज फॉर हाई वेल्यू प्रोडक्ट्स ” जारी की। यह रिपोर्ट बताती है कि भारत के विकसित होते कृषि बाजार से खाद्य प्रसंस्करण, आयातक, थोक विक्रेता, खुदरा, फूड सर्विस ऑपरेटर जुड़े हुए हैं। भारत की फूड एवं ग्रोसरी रिटेल मार्केट दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी मार्केट है, जो सालाना 500 बिलियन अमेरिकी डॉलर (लगभग 36.50 लाख करोड़ रुपए) की बिक्री करती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस रिटेल बाजार पर अभी पारंपरिक स्टोर जैसे गली-नुक्कड़ की दुकानों या किराना स्टोर का कब्जा है। इनकी हिस्सेदारी 98 फीसदी बताई गई है, जबकि सुपर मार्केट जैसे नए व आधुनिक बाजार की हिस्सेदारी 2 फीसदी है। 2019 की इस रिपोर्ट में कहा गया था कि 2020 तक आधुनिक बाजार की हिस्सेदारी दोगुनी यानी चार फीसदी हो जाएगी।

वहीं, कुछ निजी स्वतंत्र अनुमानों का हवाला देते हुए कहा गया कि 2023 तक भारत की खाद्य खुदरा बिक्री में 60 फीसदी वृद्धि होगी और यह बाजार 800 बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगा।

दरअसल, यूएस एफडीए द्वारा अक्सर दूसरे देशों के बारे में इस तरह की रिपोर्ट जारी की जाती है, ताकि अमेरिकी कारोबारी इन रिपोर्ट्स के आधार पर अपने लिए दूसरे देशों में संभावनाएं तलाश सकें। इस रिपोर्ट में भी अमेरिकी कारोबारियों को भारत में खाद्य एवं किराना क्षेत्र में अपने लिए बाजार तलाशने को कहा गया है। अमेरिका के कृषि विभाग की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत का सबसे बड़ा फूड रिटेलर रिलायंस समूह डिजिटल थोक मार्केट के माध्यम से पारंपरिक किराना बाजार में अपना दखल बढ़ाना चाहता है।

पिछले कुछ सालों के दौरान भारत में ई-कॉमर्स का चलन बढ़ा है। हालांकि शुरू में किराना बाजार में इसका चलन नहीं देखा गया, लेकिन अब इसमें लगातार वृद्धि हो रही है। खासकर कोविड-19 वैश्विक महामारी के दौरान ऑनलाइन बाजार में खासी वृद्धि हुई है। मार्केट रिसर्च एवं एडवाइजरी फर्म रेडसीर ने सितंबर 2020 में “ऑनलाइन ग्रोसरी : वाट ब्रांड नीड टु नो” रिपोर्ट जारी की, जिसमें कहा गया कि लॉकडाउन और कोविड-19 की वजह से ई-ग्रोसरी के जरिए खरीदारी में 73 फीसदी की वृद्धि हुई। ताजा सब्जी व फल की खरीद में 144 फीसदी की वृद्धि हुई, जबकि एफएमसीजी (जैसे पैकेटबंद आटा, दालें, मैगी, दूध, तेल, बिस्कुट आदि ) उत्पादों की बिक्री में 150 फीसदी की वृद्धि हुई।

ऑनलाइन बिक्री बढ़ने से बाजार के कई बड़े खिलाड़ियों और कारपोरेट का ध्यान इस ओर गया। इसमें जियो प्लेटफॉर्म प्रमुख है। इस रिपोर्ट के मुताबिक, 2019 में भारत में ऑनलाइन ग्रोसरी का बाजार 1.98 बिलियन डॉलर का था, जो 2024 तक बढ़कर 18.2 बिलियन डॉलर का हो सकता है। रेडसीर की रिपोर्ट के मुताबिक, इसका बड़ा फायदा रिलायंस को मिलेगा, जिसने हाल ही में फेसबुक से साझेदारी की है और भारत में बिग बाजार, ईजी डे क्लब व एफबीबी रिटेल स्टोर चेन चला रही कंपनी फ्यूचर रिटेल का अधिग्रहण किया है। इसके अलावा फ्लिपकार्ट, अमेजन, स्विगी, जोमेटो, डुंजो आदि बड़ी कंपनियों को भी ऑनलाइन खरीद का फायदा मिलने वाला है।

मार्च 2018 में भी अमेरिका के कृषि विभाग ने खाद्य प्रसंस्करण उद्योग (फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री) पर एक रिपोर्ट जारी की थी, जो बताती है कि भारत के फूड प्रोसेसिंग सेक्टर में भी संगठित क्षेत्र की हिस्सेदारी बढ़ेगी। इस रिपोर्ट में एसोचेम और ग्रांट थ्रॉटन स्टडी के हवाले से बताया गया कि भारत में फूड एवं बेवरेज विनिर्माण के क्षेत्र में 2024 तक इस क्षेत्र में 33 बिलियन डॉलर का निवेश होगा। भारत में प्रमुख फूड प्रोसेसिंग कंपनियों में नेस्ले इंडिया लिमिटेड, ब्रिटेनिया इंडस्ट्रीज लिमिटेड, अमूल इंडिया, पारले एग्रो प्राइवेट लिमिटेड, हल्दीराम फूड इंटरनेशनल लिमिटेड और आईटीसी लिमिटेड शामिल हैं।

भारत में पैकेट बंद खाने के सामान का बिजनेस किस तेजी से बढ़ रहा है, अमेरिकी कृषि विभाग की इस रिपोर्ट में साफ देखा गया है। रिपोर्ट बताती है कि 2013 में जहां चावल, पास्ता और नूड्ल्स की 19.25 लाख टन की बिक्री हुई, जो 2017 में बढ़कर 31.49 लाख टन हो गई यानी 64 फीसदी वृद्धि हुई। इसी तरह ब्रेकफास्ट आहार में 89 फीसदी, तेल और वसा में 93 फीसदी, प्रोसेस्ड मीट, सी फूड में 77 फीसदी, रेडी मील्स में 74 फीसदी की वृद्धि देखी गई। ये रिपोर्ट्स बताती हैं कि भारत में कृषि उपजों से जुड़े उद्योगों में संगठित और ऑनलाइन कारोबार की संभावनाएं लगातार बढ़ रही हैं और इन संभावनाओं को और अधिक तेजी प्रदान करने में कृषि कानून मददगार साबित होने वाले हैं।

दो समूहों का बढ़ता वर्चस्व

किसानों की चिंता इस बात को लेकर है कि कृषि कानूनों के लागू होने के बाद कारपोरेट को पूरी छूट मिल जाएगी, जिसका खामियाजा आने वाले सालों में उन्हें भुगतना पड़ेगा। किसानों के निशाने पर अभी दो कॉरपोरेट समूह अडानी और रिलायंस हैं। बेशक ये दोनों समूह अलग-अलग बयानों में यह बात साफ कर चुके हैं कि उन्हें कृषि कानूनों से कोई फायदा नहीं होने वाला, लेकिन पिछले कुछ सालों में इन दोनों समूह ने जिस तरह से फूड और रिटेल क्षेत्र को लेकर अपनी तैयारियां की हैं, उससे यह स्पष्ट होता है कि आने वाले सालों में ये दो कारपोरेट समूह फूड और ग्रोसरी बाजार के प्रमुख खिलाड़ी होंगे।

भारत में पैकेटबंद खाद्य तेलों का कारोबार बहुत तेजी से बढ़ा है और इस बिजनेस में अडानी विल्मर लिमिटेड की हिस्सेदारी लगभग 20 फीसदी है। इस कंपनी में भारत के अडानी समूह और सिंगापुर की विल्मर इंटरनेशनल लिमिटेड की 50:50 की हिस्सेदारी है। इस कंपनी ने खाद्य तेल से अपनी शुरुआत की और फॉर्च्यून सोयाबीन, फॉर्च्यून सनफ्लावर, फॉर्च्यून कॉटनसीड तेल बेच रही है। इसके अलावा अडानी विल्मर ने बेसन, बासमती चावल, गेहूं का आटा और सीधे पकने के लिए तैयार (रेडी-टू-कुक) सुपर फूड खिचड़ी के अलावा दालें, शक्कर, सोया चंक्स का कारोबार शुरू किया। इसके अलावा अडानी समूह हिमाचल में किसानों से सेब खरीद कर बेचने का भी कारोबार करता है।

वहीं, रिलायंस इंडस्ट्रीज भी लंबे समय से कृषि उत्पादों को बेचने का काम करती है। रिलायंस रिटेल के नाम से कंपनी 2006 से काम कर रही है। रिलायंस फ्रेश के नाम से कंपनी के 797 से अधिक स्टोर हैं। कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक, इन स्टोर में रोजाना 200 टन फल और 300 टन ताजा सब्जियां बेची जाती हैं। रिलायंस रिटेल द्वारा खेतों से सीधे घर तक खाने का सामान पहुंचाने वाले ‘फार्म-टु-फॉर्क’ मॉडल के तहत किसानों और छोटे वेंडर्स से खरीदारी की जाती है। रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड की 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक कंपनी जियो मार्ट ऑनलाइन पोर्टल में सामान के साथ-साथ ग्रोसरी का सामान की बिक्री बढ़ाएगी। कंपनी की योजना जियो कृषि ऐप भी लॉन्च करने की है। इस ऐप के जरिए किसानों को रिलायंस रिटेल से जोड़ा जाएगा।

किसे फायदा, किसे नुकसान?

किसानों की बड़ी चिंता कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग (अनुबंध खेती) को लेकर है। इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट (आईआईएम) अहमदाबाद के सेंटर फॉर मैनेजमेंट इन एग्रीकल्चर के चेयरमैन एवं प्रोफेसर सुखपाल सिंह कहते हैं कि भारत में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग पिछले 30 वर्षों से हो रही है। पंजाब और हरियाणा के कई किसानों को इसका फायदा भी हुआ। इससे सभी किसानों को फायदा होगा, ऐसा पुख्ता तौर पर नहीं कहा जा सकता है।

कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की पहली जरूरत होती है बड़ा भू-भाग, कम से कम 5 एकड़ और वह भी पूरी तरीके से सिंचित, जो सभी किसानों के पास नहीं होता। दूसरी बात, यह कि किसान और कॉन्ट्रैक्टर के बीच लिखित समझौता होता है। दुःखद पहलू यह है कि सभी किसान पढ़े-लिखे नहीं हैं। इसलिए किसान गुमराह हो सकते हैं।

लेकिन एक बात बहुत साफ है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का लाभ छोटे किसानों को नहीं होगा। अलाभकारी खेती के कारण वे एक न एक दिन अपनी जमीन बेच देंगे। यही किसान की सबसे बड़ी चिंता है।

कारपोरेट्स की योजना

केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के अधीन काम कर रहा इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन उद्योगों की व्यवसायिक गतिविधियों पर नजर रखता है। इसके अनुसार,

  • ई-कॉमर्स कंपनी एमेजन ने फूड रिटेल सेक्टर में अगले पांच साल के दौरान 515 मिलियन डॉलर निवेश की घोषणा की है
  • पारले एग्रो प्राइवेट लिमिटेड ने अपना सालाना राजस्व 2,800 करोड़ रुपए से बढ़ा कर 5,000 करोड़ रुपए का लक्ष्य रखा है
  • अमेरिका की फूड कंपनी कारगिल इंक ने 8 लाख रिटेल आउटलेट तक अपनी पहुंच बनाने और अपने तेल ब्रांड सनफ्लावर को देश के तीन प्रमुख ब्रांडों में शामिल करने का लक्ष्य रखा है।
  • नेस्ले इंडिया ने 700 करोड़ रुपए की लागत से गुजरात में अपनी फैक्ट्री लगाने की घोषणा की है
  • नवंबर 2019 में हल्दीराम ने अमेजन के साथ करार किया है
  • कोका कोला ने हाल ही में फ्रूट जूस लॉन्च किया है
  • नवंबर 2020 में भारत की सबसे बड़ी एफएमसीजी कंपनी हिंदुस्तान यूनिलीवर ने नेचर प्रोटेक्ट नाम से एक प्रोडक्ट लॉन्च किया है
  • सितंबर 2020 में अमेरिका की प्राइवेट इक्विटी फर्म सिल्वर लेक ने रिलायंस रिटेल में 7,500 करोड़ रुपए के निवेश की घोषणा की है। इससे पहले सिल्वर लेक ने लगभग 12 हजार करोड़ डॉलर का निवेश जियो प्लेटफॉर्म में किया था।

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