फाइल फोटो साभार: twitter@NavroopAgrifarm
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कृषि में विश्व स्तरीय उत्पादकता लेने वाले हरियाणा-पंजाब के किसान कर्जदार क्यों?

वर्ष 2022-23 में पंजाब के किसानों पर 73,673 और और हरियाणा के किसानों पर 76,630 करोड़ रुपए बैंक और सरकारी वित्तीय संस्थानों का कर्ज बकाया है
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भारत में हरियाणा-पंजाब वर्ष-1970 से हरित क्रान्ति के अग्रणी प्रदेश रहे हैं। यहां किसानों द्वारा गेहूं-धान की बौनी उन्नत किस्में व बाजरा, मक्का, ज्वार आदि की संकर किस्मे और उन्नत कृषि उत्पादन तकनीक अपनाने से अनाज फसलों की उत्पादकता मे 6-10 गुणा वृद्धि दर्ज हुई है। जिसकी बदौलत इन दोनों राज्यों की देश के अन्न भंडार में पिछले पांच दशकों से वार्षिक हिस्सेदारी लगभग दो तिहाई रहती है।

देश में इन दोनों राज्यों को खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का आधार क्षेत्र माना गया है, क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा समर्थन मुल्य पर अनाज की सरकारी खरीद भी सबसे ज्यादा इन्हीं राज्यों से होती है।

हरियाणा-पंजाब को देश में उन्नत कृषि अपनाने वाले माडल राज्य भी कहा जाता है, क्योंकि इन राज्यों में अपनाए गए गेहूं-धान फसल चक्र की 12 टन प्रति हेक्टेयर से ज्यादा की वार्षिक उत्पादकता दूनियाभर मे सर्वोतम मानी जाती है और कृषि मुल्य और लागत आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, किसान के लिए गन्ना फसल के बाद गेहूं-धान फसल चक्र ही सबसे ज्यादा लाभदायक है।

उसके बावजूद हरियाणा -पंजाब के किसानों पर भारी कर्ज होना न केवल दुर्भाग्यपूर्ण है बल्कि इन किसानोंं को कर्जमुक्त बनाना सरकार के लिए अहम चुनौतीपूर्ण मिशन है।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष-2024 में शंभू बार्डर पर बैठे आंदोलनकारी किसानों की समस्या पर बातचीत करने के लिए नियुक्त एक्सपर्ट कमेटी ने अपनी अन्तरिम रिपोर्ट में कहा है कि वर्ष 2022-23 मे, पंजाब और हरियाणा के किसानों पर क्रमश 73,673 और 76,630 करोड़ रुपए बैंक और सरकारी वित्तीय संस्थानों का कर्ज बकाया है।

इसके अलावा किसानों पर प्राइवेट वित्तीय संस्थानों और आढ़तियों आदि का भी लगभग 40,000 करोड़ रुपए कर्ज बकाया है। इस रिपोर्ट मे आगे बताया गया है कि देश का किसान मात्र 27 रुपए प्रतिदिन कृषि कार्यों से कमाता है।

राष्ट्रीय क्राइम ब्यूरो के रिकॉर्ड के अनुसार देश मे वर्ष- 1995 से बाद लगभग 4 लाख किसानो और कृषि मजदूरो ने आत्महत्या की। इसी तरह दूसरे सर्वे के अनुसार पंजाब राज्य मे वर्ष 2000-15 के दौरान, 16,606 किसानों ने आत्महत्या की। जो पंजाब जैसे उन्नत कृषि, सिचाई सम्पन्न और फसलों की विश्व स्तरीय उच्च उत्पादकता वाले राज्य के लिए गम्भीर चिन्ता का विषय है। जिसके कारणो पर गौर करके समुचित समाधान निकालना, सरकार के लिए एक अहम जिम्मेदारी है क्योकि यह राष्ट्रिय खाध्य सुरक्षा सुनिश्चित करने से सम्बन्धित मामला है।

भारत सरकार के प्रेस इन्फोर्मेशन ब्यूरो द्वारा जारी 3 जुलाई 2024 की सुचना के अनुसार भारतीय खाद्य निगम ने आरएमएस सीजन 2024- 25 के दौरान कुल 266 लाख मीट्रिक टन गेंहू की खरीद की और न्यूनतम समर्थन मूल्य 2275 रुपए प्रति क्विंटल के तहत की गई इस खरीद पर 61000 करोड़ रुपए किसानों के बैंक खातों मे जमा किए गए ।

इसमें से लगभग दो तिहाई खरीद यानि 121.75 लाख मीट्रिक टन पंजाब से और 71.25 लाख मीट्रिक टन हरियाणा से की गई और लगभग 44000 करोड रूपए हरियाणा -पंजाब के किसानो के बैंक खातो मे जमा हुए। इसी तरह खरीफ विपणन सीजन 2023-24 मे धान की 775 लाख मीट्रिक टन खरीद पर 1.74 लाख करोड़ रुपए किसानों के बैंक खातों मे जमा हुए।

इसमें से 30 प्रतिशत 255 लाख मीट्रिक टन खरीद धान की खरीद हरियाणा- पंजाब से की गई और लगभग 58000 करोड़ रुपए किसानों के बैंक खातों में जमा हुए, यानि वर्ष 2024 में गेहूं-धान की सरकारी खरीद पर हरियाणा-पंजाब के किसानों के बैंक खातों मे केन्द्र सरकार ने कुल 1.02 लाख करोड़ रुपए जमा किए।

हरियाणा- पंजाब के किसान गरीब और कर्जदार क्यों?

1) *क्योंकि सरकार 5 दशकों से सी-2 लागत की बजाए, ए-2+एफएल लागत पर समर्थन मूल्य की घोषणा करके किसानो से 40,000 करोड़ रुपए सालाना लूट रही है।

सरकार ने वर्ष 1966-67 में अनाज फसल उपज की सरकारी खरीद के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य पालिसी बनाई। केन्द्र सरकार सार्वजनिक खाध्य वितरण प्रणाली के लिए, लगभग दो-तिहाई अनाज गेहूं-धान हरियाणा- पंजाब राज्यों से घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदती है।

न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना करने के लिए, सरकार ने केंद्रीय कृषि मूल्य और लागत आयोग बनाया हुआ है। जो हर साल देश की 24 मुख्य फसलों के लिए, सी-2 लागत और ए-2 + एफएल लागत के आधार पर न्यूनतम समर्थन मूल्य की गणना करके अपनी सिफारिश केन्द्र सरकार को भेजता है।

दूनियाभर में बिकने वाली सभी वस्तुओं की कीमत सी-2 लागत के आधार पर निर्धारित की जाती है। क्योकि वैश्विक बाजार में, वस्तुओं की सी-2 लागत को ही न्यायोचित माना जाता है।

लेकिन दुर्भाग्य है कि किसान विरोधी केन्द्र सरकार पिछले 5 दशकों से न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा सी-2 लागत पर नही करके, ए-2 + एफएल लागत पर करती रही है, जिससे पिछले पांच दशक में हरियाणा-पंजाब के किसानो को लगभग 20 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।

क्योंकि वर्ष- 2024 में केन्द्र सरकार ने पंजाब से 125 लाख टन गेहूं और 185 लाख टन धान और हरियाणा से 60 लाख टन धान और 72 लाख टन गेहूं यानि दोनों राज्यों से वर्ष-2024 लगभग 442 लाख टन अनाज फसल उपज की सरकारी खरीद समर्थन मूल्य पर की।

कृषि मुल्य और लागत आयोग द्वारा की गई गणना मे सी-2 लागत और ए-2 + एफएल लागत के आधार पर विभिन्न फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य में औसतन 700 -1200 रुपए प्रति किवंटल का फर्क रहता है। जिसके अनुसार केवल एक वर्ष- 2024 में ही, अनाज फसलों की उपज की सरकारी खरीद से केन्द्र सरकार ने हरियाणा-पंजाब के किसानों का लगभग 40,000 करोड रूपए का खुलम खुला शोषण किया है।

2) न्यूनतम समर्थन मूल्य के कानूूूनन बाध्य न होने से साहूकारों व बिचौलियों ने हरियाणा- पंजाब के किसानों से लगभग 15,000 करोड़ रुपए की सालाना लूट की।

केंद्र सरकार 24 मुख्य फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्रतिवर्ष घोषणा करती है और इन मूल्यों को उचित मानकर सार्वजनिक खाद्य वितरण प्रणाली के लिए सरकारी खरीद भी करती है। जो देश में इन फसलों के कुल उत्पादन का मात्र 20-30 प्रतिशत ही होता है।

बाकि लगभग 75 प्रतिशत फसल को साहूकार बिचौलिये समर्थन मूल्य से कम पर खरीद लेते हैं। हरियाणा-पंजाब में भी गेहूं-धान आदि की सरकारी खरीद एक निश्चित समय यानि लगभग 30-40 दिन के दौरान की जाती है।

इसके बाद जो फसल या उपज बाद में मंडियों में आती है, उसे साहूकार, बिचौलिए या आढ़ती खरीदते हैं। अनुमान है कि इससे किसानों का लगभग 15,000 करोड रुपए सालाना नुकसान होता है। यही वजह है कि किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं।

3) तोल मोल में गड़बड़ी फर्जी पर्ची से किसानों को लगभग 12,000 करोड रुपए का नुकसान पहुंचाया जा रहा है।

साहूकारों से बचाने के लिए,सर छोटूराम ने वर्ष-1939 मे पंजाब कृषि उपज मार्केट एक्ट बनवाया था। जिसे माडल एक्ट मानकर आजादी के बाद भारत के लगभग सभी राज्यों ने अपनाया। लेकिन दूर्भाग्य है कि आज भी सरकारी भ्रष्ट तन्त्र और साहूकार की मिलीभगत से किसानों का शोषण जारी है।

पिछले महीने लेखक ने लेख के माध्यम से इस घोटाले के बारे में बताया था। आढती कृषि उपज की फर्जी बोली दिखाकर, किसानो को समर्थन मूल्य से 200-500 रुपए प्रति क्विंटल कम की कच्ची पर्ची (रसीद) थमा देते है, जबकि वास्तव में किसान की वह फसल उपज पहले ही सरकारी खरीद मे समर्थन मुल्य पर खरीदी जा चुकी होती है और सरकार किसान के बैंक अकाउंट मे समर्थन मुल्य के हिसाब से ही पूरी धनराशि जमा कराती है।

इसलिए किसानी एमएसपी की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं। जबकि सरकार जानबूझकर वास्तविकता को छिपाने के लिए किसानों को भ्रमित करने के लिए किसान सम्मान निधि, किसान क्रेडिट कार्ड पर कर्ज की राशि बढ़ाने, फसल विविधिकरण, सायल हेल्थ कार्ड आदि अव्यावहारिक समाधान का प्रचार लगातार कर रही है।

लेखक भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक हैं। लेख में व्यक्त उनके निजी विचार हैं

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