गुस्से में क्यों हैं गन्ना किसान?

भारत के गन्ना किसानों के दुख अनेक हैं। कभी समय पर पैसा नहीं मिलता तो कभी खरीद मूल्य नहीं बढ़ता। एक बार फिर उत्तर प्रदेश का गन्ना किसान सड़क पर है। जानिए, क्या है वजह
Photo: Wikimedia commons
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मयंक चौधरी

उत्तर प्रदेश के गन्ना किसान एक बार फिर खुद को ठगा महसूस कर रहे हैं। प्रदेश सरकार से गन्ना मूल्य वृद्धि की आस लगाए बैठे किसानों को मायूसी ही हाथ लगी है। पिछले दो सालों से गन्ने के मूल्य में कोई इजाफा होने की वजह से किसान और किसान संगठन सड़क पर उतरने का ऐलान कर चुके हैं। किसान इस बार 400 रुपए कुंतल गन्ने के दाम की मांग कर रहा था, लेकिन गन्ने के इस सीजन में भी उसके हाथ कुछ नहीं लगा है।

वर्ष 2017 में जब राज्य में भाजपा की सरकार बनी थी, तब पेराई सत्र 2017-18 में गन्ने के राज्य परामर्शी मूल्य में दस रुपये की बढ़ोतरी की गई थी। किसानों को आस बंधी थी कि उनकी फसल का दोगुना दाम करने की घोषणा करने वाली सरकार उसकी झोली में अगले साल जरूर कुछ कुछ डालेगी, लेकिन 2018-19 और अब 2019-20 में गन्ने की फसल की कीमत जस की तस रखी गई। किसानों में नाराजगी की असल वजह यही है।

भारतीय किसान यूनियन ने उत्तर प्रदेश में 11 दिसंबर से प्रदेश सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ संघर्ष का ऐलान किया है और इस दौरान सड़क पर परेशान होने वाले लोगों से भी इस आंदोलन में किसानों का साथ देने की अपील की है। बिजनौर जिले में गन्ना तौल केंद्र पर गन्ने की होली जलाकर किसान सरकार का प्रतीकात्मक विरोध शुरू कर चुके हैं।

ये है असली वजह

पिछले दो सालों से देश अत्यधिक चीनी उत्पादन और विशाल भंडारण से परेशान चीनी उद्योग ने सरकारों पर दबाव बनाकर गन्ने का मूल्य नहीं बढ़ने दिया। बल्कि उलटे चीनी से एथेनॉल बनाने के लिए कई प्रोत्साहन भी ले लिए। लेकिन इस वर्ष स्थिति उलट गई है। इस सीजन में चीनी का कम उत्पादन होने और अंतरराष्ट्रीय बाजार में चीनी की अधिक मांग होने से चीनी उद्योग को भरपूर फायदा होता दिख रहा है फिर भी किसान की हालत जस के तस ही रहेगी। आंकड़ों पर गौर करे तो देश में वर्ष 2018-19 में आरंभिक भंडार (ओपनिंग स्टॉक) 104 लाख टन, उत्पादन 332 लाख टन, घरेलू खपत 255 लाख टन और निर्यात 38 लाख टन रहा। वर्तमान सीजन 2019-20 में चीनी का आरंभिक भंडार 143 लाख टन है। यानि सात माह की खपत के बराबर चीनी पहले ही गोदाम में रखी है और इसी स्थिति का भय दिखाकर चीनी लॉबी ने प्रदेश सरकार पर दबाव बनाया और एथेनॉल के लिए प्रोत्साहन लिया।

इस बात पर किसी ने गौर नहीं किया कि सूखे और खराब मौसम ने देश में गन्ने की फसल चौपट की है। हालांकि सभी सरकारों को इसकी जानकारी है। महाराष्ट्र में पिछले साल 107 लाख टन से घटकर 55 लाख टन और कर्नाटक में 44 से घटकर 33 लाख टन चीनी के उत्पादन का अनुमान है। इस्मा (इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन) के मुताबिक देश में चीनी का उत्पादन इस वर्ष पिछले साल के मुकाबले करीब 260 लाख टन कम रहने का अनुमान है जो 21 फीसदी  बैठता है। उत्तर प्रदेश में सीजन 2017-18 जैसा ही गन्ना उत्पादन करीब 120 लाख टन होने का अनुमान है। 

भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत का कहना है कि सरकार की नीति ही किसान विरोधी है। पिछले तीन सालों को ही लें तो बिजली, खाद, बीज और खेती में इस्तेमाल होने वाले उपकरण महंगे हो गए। इससे गन्ने की खेती और महंगी हो गई लेकिन सरकार की आस लगाए बैठे किसानों को मायूसी ही मिलती है। एक तो रेट नहीं बढ़ा रहे और गन्ने के दाम भी समय पर नहीं मिल रहे। पिछले साल किसानों ने 33000 करोड़ रुपए का गन्ना चीनी मिलों को दिया, लेकिन अभी भी करीब 3000 करोड़ रुपए  का भुगतान बकाया है। इसलिए 11 दिसंबर को प्रदेशभर का किसान सड़कों पर उतरेगा। सरकार तब भी नहीं चेती तो 21 दिसंबर से हल क्रांति करने का बिगुल बजेगा और सरकारों से आर-पार की लड़ाई होगी।

भारतीय किसान यूनियन ही नहीं, राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष सरदार वीएम सिंह भी 8 जनवरी से ग्रामीण भारत बंद आंदोलन करने की घोषणा कर चुके हैं। जाहिर है किसानों की आय पांच साल में दोगुना होने की आस में भाजपा सरकार से आस लगाए बैठे किसान मायूस है और आक्रोशित भी। केंद्र और प्रदेश सरकार ने किसानों को मनाने की कोशिश की तो विपक्ष के हाथ एक और मुद्दा आसानी से मिल जाएगा।

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