किसान सस्ते और उपभोक्ता महंगे दामों से परेशान, कैसे बढ़ रहे दाम?

खेत में टमाटर की तुड़वाई भी महंगी पड़ रही और शहरों की दुकानों पर चालीस रुपए किलो में बिक रहा है, यही हाल अन्य सब्जियों का भी है
भैंरोपुर गांव के किसान हरिओम मीणा को सड़क पर ही टमाटर फेंकने पड़े। फोटो: रोकश मालवीय
भैंरोपुर गांव के किसान हरिओम मीणा को सड़क पर ही टमाटर फेंकने पड़े। फोटो: रोकश मालवीय
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हरिओम मीणा मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से 13 किमी दूर भैरोंपुर गांव के किसान हैं। उन्होंने तीन एकड़ खेत में टमाटर, ककड़ी और मिर्ची लगाई है। फसल अच्छी लगी है, लेकिन समस्या यह है कि वह उसे बेच नहीं पा रहे हैं। कोविड लॉकडाउन के कारण मंडी बंद हैं। हालत यह है कि टमाटर खेत में ही खराब हो रहा है, दूसरी ओर भोपाल के बाजार में वही टमाटर तीस से चालीस रुपए किलो के भाव में बिक रहा है, दूसरी सब्जियां का भी यही हाल है। 

कोविड19 के दौर में जब सरकार महामारी से निपटने के लिए बेहतर पोषण स्तर बनाए रखने का संदेश दे रही है, लेकिन इस बेहतर पोषण के लिए सब्जी को किसानों के खेत से लोगों की थाली तक पहुंचाने का सिस्टम गायब है।

भोपाल से सटे गोलखेड़ी गांव के किसान श्याम सिंह कुशवाहा बताते हैं कि उनकी सब्जियों की लागत तक नहीं निकल रही है। भोपाल सीमा पर हर दिन सुबह सूखी सेवनिया के पास पुलिस खड़ी हो जाती है, और किसानों को रोक देती है। अब किसानों ने शहर आना ही बंद कर दिया है। उनका कहना है कि किसानों को सब्जी पहुंचाने के लिए एक निश्चित टाइम की रियायत दे दी जाए तो इसमें न तो किसानों का नुकसान होगा और न ही आम लोगों को महंगी दामों में सब्जी लेनी पड़ेगी।

भोपाल के आसपास के किसान ट्रेक्टर—ट्राली में सब्जियां भरकर शहर में फुटकर बाजार में भी सब्जियां बेच लेते हैं। हरिओम मीणा बताते हैं कि पिछले साल लॉकडाउन के दौरान उन्हें दो एकड़ सब्जी की खेती पर एक लाख बीस हजार रुपए का नुकसान हुआ था, इस साल किसी तरह हिम्मत करके फिर उन्होंने सब्जी लगाई थी। उसमें भी नुकसान उठाना पड़ा।

शहर से दूर के गांवों में भी यही हाल है। मध्यप्रदेश के कृषि मंत्री कमल पटेल के गृह जिले हरदा के मगरधा गांव के किसान आदेश गौर तीन एकड़ में कई प्रकार की सब्जी की खेती कर रहे हैं। कोविड की दूसरी लहर में उनकी सब्जियां में खासा घाटा हुआ।

आदेश बताते हैं कि जनवरी महीने में उनको सब्जियों का ठीक भाव मिल रहा था, लेकिन उसके बाद लगातार भाव कम होते गए ओर अप्रैल के महीने में जब सख्त लॉकडाउन लगा तो उन्हें बुरी तरह घाटा झेलना पड़ा। उन्होंने बताया कि टमाटर के भाव जब एक रुपए किलो तक आ पहुंचे तो उन्होंने अपने खेत से टमाटर तुड़वाए ही नहीं, क्योंकि इसको तुड़वाना ही महंगा पड़ रहा था।

उनका कहना है कि वैसे तो हर साल ही ऐसे मौके जरूर आते हैं जब किसान की फसल आते ही दाम नीचे गिर जाते है, पर इस साल मुश्किलें ज्यादा हैं, लागत निकालना भी कठिन हो रहा है,  आदेश का कहना है कि सब्जियों का भी एक न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करके किसानों को सीधी राहत देनी चाहिए।

कितना मिल रहा है किसान रेल का फायदा

सरकार ने सब्जियों को दूर—दूर तक पहुंचाने के लिए किसान रेल चलाई है। इसमें वातानुकूलित डिब्बों में सब्जियां भरकर देश में कहीं भी सब्जियां बेचकर फायदा कमाने का विकल्प दिया है, लेकिन इससे छोटे किसानों को कोई फायदा नहीं है, क्यों​कि इसके लिए बड़ी मात्रा में सब्जियां चाहिए होती हैं।

इटारसी मध्यप्रदेश का सबसे बड़ा रेल जंक्शन है। हेमंत चौरे इटारसी से सटे पथरौटा गांव के किसान हैं, उन्होंने आधा एकड़ जमीन पर टमाटर, गिलकी, लौकी, भिंडी और अन्य सब्जियां लगाई हैं। हेमंत की चिंता है कि यदि लॉकडाउन नहीं खुला तो कैसे वह अपनी सब्जियों को बेच पाएंगे?

हेमंत बताते हैं कि कोविड के कारण लॉकडाउन में मजदूर मिलना मुश्किल हो गए। उन्हें खुद ही परिवार के साथ सब्जियां लगाने के लिए मेहनत करनी पड़ी। 

होशंगाबाद जिले के रोहना गांव के रुपसिंह राजपूत जैविक तरीके से खेती करते हैं। हर सप्ताह लगने वाला जैविक हाट कोरोना काल में बंद होने से उन्हें दिक्कत तो हो रही है, लेकिन एक जैविक खेती के व्हाट्सऐप ग्रुप के माध्यम से सौ उपभोक्ता जुड़े हुए हैं। इससे जैविक सब्जियों का एक अलग बाजार विकसित हुआ है, इस ग्रुप के माध्यम से वह अपनी सब्जियों की होम डिलीवरी कर रहे हैं।

भोपाल में सब्जियों के थोक व्यापारी राजा खान बताते हैं कि किसानों के पास से माल आने के बाद बहुत दिक्कत हो रही है। 21 मई के बाद पुलिस ने बहुत सख्ती कर दी है, इससे हमें माल नहीं मिल रहा है और रेट अचानक तेजी से बढ़ गए हैं।

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