मौसम सूचकांक : भविष्य का दांव, किसे मिलेगा फायदा?
इलस्ट्रेशन: योगेन्द्र आनंद / सीएसई

मौसम सूचकांक : भविष्य का दांव, किसे मिलेगा फायदा?

एक दशक से भी ज्यादा वक्त से मौसम के वायदा कारोबार की बात भारत में चल रही है। इस आम बजट के बाद इस बहस को आकार मिल सकता है
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अनिश्चितता बाजार में उतार-चढ़ाव लाती है जो अच्छे कारोबार के लिए जरूरी है। मौसम से ज्यादा अनिश्चित आज के समय में कुछ नहीं है, इसलिए भविष्य के मौसम को आंककर उस पर दांव लगाना अच्छा हेजिंग टूल यानी वित्तीय जोखिम कम करने का साधन बन सकता है। इसका फायदा मौसम पर निर्भर कारोबार के साथ कृषि क्षेत्र से जुड़े संस्थानों और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से किसानों को भी होगा।

डाउन टू अर्थ से यह बात नोएडा स्थित निजी मौसम एजेंसी स्काईमेट के प्रबंध निदेशक जतिन सिंह ने साझा की। स्काईमेट भारत के शीर्ष एग्रीकल्चरल कमोडिटी एक्सचेंज नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज लिमिटेड (एनसीडीईएक्स) को मौसम सूचकांक बनाने में मदद कर रहा है। सिंह ने कहा कि इंडेक्स के लिए किस फॉर्मूले का इस्तेमाल किया गया है, यह खुलासा अभी नहीं किया जा सकता। उन्होंने आगे कहा, “करीब 100 साल का वर्षा व तापमान का आंकड़ा इसके लिए जुटाया गया है। इनमें भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के आंकड़ों को शामिल किया गया है। इन आंकड़ों के आधार पर मौसम सूचकांक (वेदर इंडेक्स) तैयार होगा। हमारी तरफ से वेदर इंडेक्स के लिए आंकड़ों का काम पूरा किया जा चुका है, हालांकि अभी इसे भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) से हरी झंडी मिलना बाकी है।”

बीते एक दशक से भी ज्यादा वक्त से मौसम के वायदा कारोबार की बात भारत में चल रही है। इस वर्ष वायदा कारोबार में मौसम सूचकांक के लिए सरकार की तरफ से तेजी दिखाई गई। 1 मार्च, 2024 को वित्त मंत्रालय के डिपार्टमेंट ऑफ इकोनॉमिक अफेयर्स ने अधिसूचना जारी करते हुए कमोडिटीज की सूची को विस्तार दिया। इसमें मौसम का वायदा कारोबार भी है। आम बजट 2024 में भी इसका जिक्र किया गया। दरअसल सेबी ने वित्त मंत्रालय को 11 अतिरिक्त वस्तुओं में वायदा कारोबार की अनुमति की सिफारिश की थी। इसमें मौसम भी शामिल था।

दरअसल, ट्रेडिंग का हर वह प्लेटफॉर्म जिस पर मौसम सूचकांक में भागीदारी की जा सकेगी, वहां कोई भी व्यक्ति भविष्य के किसी निश्चित तारीख पर वर्षा और तापमान की अधिकता, कमी या सामान्य रहने की स्थिति को आंककर दांव लगा सकता है। इसके लिए सूचकांक में अधिकता, कमी और सामान्य शब्द को परिभाषित भी किया जाएगा। दिल्ली स्थित ट्रेडर दिवाकर मिश्रा बताते हैं कि मिसाल के तौर पर फरवरी महीने में ही जून के मौसम को लेकर अनुमान लगाना शुरू हो जाएगा, इससे उस वक्त सूखा पड़ेगा या मौसम तर रहेगा, इसका साफ अंदाजा मिलेगा। यदि कोई इन स्थितियों का आकलन करता है और वह सूखे पड़ने की स्थित पर दांव लगाता है और जून में वास्तव में सूखा पड़ने से उसके खेत में फसल का नुकसान होता है तो वह अपनी नुकसान की भरपाई ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर लगाए गए दांव से कर लेगा।

मुंबई स्थित केडिया कैपिटल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक और कमोडिटी मामलों के जानकार अजय सुरेश केडिया बताते हैं, “मौसम के आंकड़ों को लेकर तैयार किया गया इंडेक्स दरअसल भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए उपयोगी हो सकता है। क्योंकि यहां कृषि और खासतौर से पर्यटन, ऊर्जा जैसे क्षेत्र मौसम पर पूरी तरह से निर्भर हैं। सरकार के द्वारा मौसम सूचकांक को लेकर लिया गया निर्णय जोखिम को कम करने के विकल्पों को बढ़ाएगा। साथ ही कृषि और मौसम से जुड़े अन्य उद्योगों को कमोडिटी मार्केट में भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करेगा।”

वहीं, मध्य भारत कंसोर्टियम ऑफ फॉर्मर प्रोड्यूसर्स कंपनी लिमिटेड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी योगेश द्विवेदी कहते हैं कि एफपीओ और किसान संगठन को जोखिम को कम करने के लिए जितने विकल्प दिए जाएं, उतना बेहतर है।

एनसीडीईएक्स की वेबसाइट के मुताबिक, मौसम सूचकांक बिल्कुल अन्य सूचकांकों की तरह ही है, हालांकि इसमें बहुत बड़ा फर्क भी है। मसलन अन्य कमोडिटी की तरह इसका फिजिकल सेटलमेंट संभव नहीं है। न इसे डिलीवर किया जा सकता है, न इसका कोई स्पॉट मार्केट प्राइस होता है और न ही इसमें मांग व आपूर्ति का नियम काम करता है। वर्षा और बर्फबारी जैसे मौसम सूचकांक पूरे वर्ष ट्रेड नहीं किए जा सकते क्योंकि यह सीजनल हैं।

एनसीडीईएक्स के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी अरुण रास्ते डाउन टू अर्थ से कहते हैं, “अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बर्फबारी सूचकांक का उपयोग उत्तरी अमेरिका और यूरोप में किया जाता है। भारत को अलग और स्वदेशी मापदंडों की आवश्यकता है। जैसे मॉनसून में बारिश या गर्मी का सूचकांक। अत्यधिक वर्षा या सूखे की स्थिति में फसल खराब होने की आशंका होती है। तापमान में अचानक वृद्धि से पैदावार पर असर पड़ता है, जैसे बीते वर्ष गेहूं की फसल के मामले में देखा गया था। वहीं, तेज हवाएं बागवानी की फसलों के लिए विनाशकारी हो सकती हैं। ऐसे में मौसम सूचकांक किसानों को अप्रत्याशित मौसम से होने वाले नुकसान से बचाव में मदद कर सकते हैं।”

जानकारों के मुताबिक, इस तरह के मौसम सूचकांक के जरिए वर्षा की कमी जैसी घटनाओं को स्वतंत्र रूप से सत्यापित किया जा सकता है और इसमें हेरफेर की संभावना बिल्कुल भी नहीं है। साथ ही बैंक और ग्रामीण वित्त संस्थान भी खराब मौसम की घटनाओं के कारण होने वाली चूक के खिलाफ अपने पोर्टफोलियो की सुरक्षा के लिए वेदर डेरिवेटिव्स का व्यापार कर सकते हैं। एक बार जब वित्तीय संस्थान मौसम डेरिवेटिव्स के साथ जोखिम की भरपाई करने में सक्षम हो जाते हैं, तो वे अच्छी शर्तों पर ऋण का विस्तार करने की बेहतर स्थिति में होते हैं। यह कई विकासशील देशों के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है क्योंकि प्रतिकूल मौसम की स्थिति से उत्पन्न होने वाले जोखिमों के कारण कृषि के लिए ऋण की उपलब्धता सीमित है। इसके अलावा यह तर्क भी दिया जा रहा है कि विकासशील देशों के लिए मौसम बाजार दो बुनियादी मुद्दों से निपटने के लिए नए अवसर पैदा करते हैं। पहला है विनाशकारी या आपदा जोखिमों से निपटने के तरीके और दूसरा है मौसम पर निर्भर क्षेत्रों, जैसे कृषि के लिए नए निजी आधारित बीमा उत्पादों को बढ़ावा देना।

केडिया के मुताबिक, कृषि अब भी भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रमुख चालक है। ऐसे में मॉनसून को वायदा कारोबार में जोड़ने से उसमें बड़े कारोबार की उम्मीद है। खासतौर से 57 फीसदी भारतीय आबादी और 73 फीसदी रोजगार कृषि पर निर्भर है जो मौसम के जोखिमों से जुड़ा हुआ है। यदि 2 से 3.5 डिग्री सेल्सियस तापमान बढ़ता है तो 25 फीसदी तक राजस्व का खेतों में नुकसान होता है। फसल बीमा और पुराने जोखिम कम करने के तरीके अपर्याप्त हैं इसलिए मौसम का सूचकांक एक बेहतर चीज है।

नीदरलैंड्स में वागेनिंजन यूनिवर्सिटी एंड रिसर्च से “रिस्क एंड रेजिलिएंस एमंग स्मॉल होल्डर फॉर्मर्स” विषय पर पीएचडी करने वाले राघव रघुनाथन डाउन टू अर्थ से बताते हैं कि किसी भी सूचकांक में बेसिस रिस्क बहुत ही अहम होता है। बेसिस रिस्क एक तकनीकी टर्म है जिसका अर्थ है कि किसी खास स्थान और इंडेक्स के औसत में मेल न खाना। यदि बेसिस रिस्क हाई है और हमारे पास किसी भौगोलिक क्षेत्र का सूक्ष्म डेटा निम्न स्तर का है तो किसी सूचकांक को अपनाने वाले कम हो जाएंगे।

एनसीडीईएक्स के एक पूर्व सदस्य ने बेसिस रिस्क को समझाते हुए बताया कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में किसानों का मोहभंग इसीलिए हुआ क्योंकि वह उच्च प्रीमियम भी भर रहे थे और उनके यहां होने वाले नुकसान का सटीक आकलन भी नहीं हो पा रहा था। ऐसे में कितना ज्यादा क्षेत्र हम कितने उच्च स्तरीय डाटा के साथ कवर कर पा रहे हैं यह मौसम सूचकांक में बहुत निर्णायक होगा। मौसम सूचकांक को अभी कई चरणों से होकर गुजरना है। यह हाल-फिलहाल उपलब्ध नहीं होगा। हालांकि, अप्रत्याशित होते और जोखिम बढ़ाने वाले मौसम के बीच इस टूल का इंतजार है। अभी तक एनसीडीईएक्स की तरफ से मौसम डेरिवेटिव लॉन्च किए जाने के बारे में अध्ययन और मूल्यांकन किया जा रहा है। इसे अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है। एक्सचेंज का कहना है कि मूल्यांकन प्रक्रिया खत्म होने के बाद उपयोगकर्ताओं के साथ बाहरी हितधारकों से भी परामर्श लिया जाएगा, फिर कोई निर्णय होगा।

केडिया कहते हैं कि “मौसम सूचकांक जैसी चीज तभी सफल हो सकती है जब एक कड़ा रेग्युलेटरी फ्रेमवर्क व इंफ्रास्ट्रक्चर हो और सेबी लोगों को आश्वस्त करे कि इस तरह के सूचकांक में पूरी पारदर्शिता बरती जा रही है।”

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