आर्थिक सर्वे : किसानों ने कम किया उपभोग तो नीचे बैठ गई विकास दर

सस्ते अनाज ने किसानों को कम पैदावार के लिए मजबूर किया जिसके कारण उपभोग पर भी खर्च कम हुआ।
Photo: Agnimirh Basu
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आर्थिक सर्वे 2018-19 के मुताबिक बीते पांच वर्षों में आर्थिक विकास दर औसत 7.5 फीसदी तक बनी रही लेकिन वित्त वर्ष 2018-19 में यह बीते पांच वर्षों में 6.8 फीसदी आंकड़े के साथ सबसे निचले स्तर पर पहुंच गई है। विकास की इस गिरावट ने अन्य क्षेत्रों के मुकाबले कृषि क्षेत्र के विकास को भी मंथर कर दिया। लेकिन सर्वे कहता है कि सस्ते अनाज के चलते किसानों ने न सिर्फ कम पैदावार की बल्कि उपभोग के लिए कम खर्च भी किया। इसके चलते आर्थिक गतिविधियों में भी गिरावट आई।

2018-19 में रबी की फसल में बीते वित्त वर्ष के मुकाबले बहुत कम गिरावट है। हालांकि, इसके चलते कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन खराब हुआ है। सर्वेक्षण में कहा गया है कि खाद्य कीमतों में संकुचन ने किसानों को कम उत्पादन के लिए प्रेरित करने में योगदान दिया है। 2018-19 की अंतिम तिमाही में, कृषि और संबद्ध क्षेत्र ने -0.3 प्रतिशत की नकारात्मक वृद्धि दर्ज की है। सभी क्षेत्रों में खपत में गिरावट आई है। लेकिन निजी उपभोग में गिरावट के क्या कारण हैं? जो कि अर्थव्यवस्था की जीडीपी में 60 फीसदी की हिस्सेदारी करता है। जीडीपी में गिरावट के पीछे की वजह वित्त वर्ष की बीती दो तिमाही में कम निजी उपभोग भी है।

सर्वे में कहा गया है कि सस्ते अनाज के चलते ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि से होने वाली भी कम हुई। इसने गैर वित्तीय बैंकिंग संस्थानों के जरिए कर्ज को भी प्रभावित किया। वित्त वर्ष 2018-19 में शून्य उपभोक्ता खाद्यान्न उत्पादन दर्ज किया गया। लगातार पांच महीनों तक अनाज की महंगाई नकारात्मक दर्ज की गई। यह प्रदर्शित करता है कि कृषि में सकल मूल्य वर्धित में नाममात्र की विकास दर 2017-18 में 7.0 फीसदी से 2018-19 में 4.0 फीसदी हो गई। सर्वे में कहा गया है कि कुल जीवीए में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी लगातार गिर रही है और अब 2018-19 में 16.1 प्रतिशत है।

कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, 2018-19 में खाद्यान्न उत्पादन 28.34 करोड़ टन रहा , जबकि 2017-18 में यह 28.5 करोड़ टन था। कृषि क्षेत्र के भीतर, खाद्यान्न घटक ने जीवीए में अपनी हिस्सेदारी कम की है। 2013-14 में इसका हिस्सा 12.1 फीसदी से घटकर 2017-18 में 10.0 फीसदी हो गया है। जबकि, पशुधन घटक ने अपना हिस्सा 4.1 प्रतिशत से बढ़ाकर 4.9 प्रतिशत (वर्तमान कीमतों पर) किया है।

हाल ही में हुए आम चुनावों के प्रचार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने महंगाई नियंत्रण को एक उपलब्धि के रूप में दिखाया था। अब आर्थिक सर्वेक्षण, आर्थिक विकास की पूर्व शर्त के रूप में, कहते हैं, “अर्थव्यवस्था के विकास के मार्ग को तय करने में उपभोग का प्रदर्शन बेहद महत्वपूर्ण होगा। खाद्य कीमतों में बढ़ोतरी से ही ग्रामीण आय बढ़ाने और खर्च करने की क्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी और इससे ग्रामीण उपभोग की मांग भी बढ़ेगी।”

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