कोरोना की दूसरी लहर में बर्बाद हुए छत्तीसगढ़ के सब्जी किसान

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के चलता गांव के किसान शैलेश सिंह अपनी तरबूज की बर्बाद फसल के साथ। फोटो: अवधेश मलिक
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के चलता गांव के किसान शैलेश सिंह अपनी तरबूज की बर्बाद फसल के साथ। फोटो: अवधेश मलिक
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छत्तीसगढ़ में अब लॉकडाउन खत्म होने को है और अब जीवन सामान्य की ओर है क्योंकि कोविड संक्रमण का दर बेहद तीव्र गति से घट रहा है। जो नहीं घट रहा है वो है किसानों का दर्द। पिछले वर्ष के बाद एक बार फिर से सरकार ने जो इस बार लॉकडाउन की उसने किसानों की कमर तोड़ कर रख दी है। किसानों में सर्वाधिक प्रभावित होने वाले किसान रहे सब्जी की खेती करने वाले किसान।

प्रदेश में कुल 37.46 लाख किसान परिवार रहते हैं जिसमें से सब्जी उत्पादक किसानों की प्रदेश में कुल संख्या करीब बीस प्रतिशत है। पिछले सालों में सब्जी की खेती करने वालों किसानों में तीव्र गति से वृद्धि हुई। पहले सब्जी की व्यवसायिक खेती प्रदेश के कुछेक जिलों में ही होती थी लेकिन अब इस खेती में बस्तर से लेकर राजनांदगांव, रायपुर तक के किसान शामिल हो गए हैं। लेकिन लॉकडाउन के कारण सब्जी किसान काफी परेशान हैं।     

रायपुर के कृषि वैज्ञानिक एवं खुद खेती करने वाले संकेत ठाकुर बताते हैं कि लॉकडाउन की जब घोषणा हुई तब किसानों की फसल खेतों में तैयार हो गई थी बस वक्त था उन्हें बाजार एवं मंडियों में पहुंचने की, लेकिन लॉकडाउन और संक्रमण की आशंका से किसान बाहर नहीं निकल पाए। ना ही उन्हें गाड़ियां मिली। इस कारण फसल को खेतों में ही छोड़ना पड़ा और वे सड़ गए। संकेत आगे कहते हैं एक एकड़ में करीब 1 एक लाख से 1.5 लाख रुपये की लागत सब्जी की फसल में आती है इस लिहाज से आप जोड़ सकते हैं कि कुल नुकसान कितने का हुआ।

चांदनी डीह के प्रवीण चावडा की गिनती सब्जी उत्पादक बड़े किसानों में की जाती है। उनकी सब्जी की खेती छत्तीसगढ़, ओडिशा, झारखंड एवं एमपी तक में हैं। प्रवीण बताते हैं कि छत्तीसगढ़ में सवा सौ एकड़ में खेत में उन्होंने इस बार टमाटर लगाई थी, अन्य में मिर्ची एवं अन्य फसल। लेकिन जब फसल तैयार हुई, तब उसको लेने वाले लोग मिल नहीं रहे थे। मंडियां बंद थी, मजबूरन लोगों को निःशुल्क सब्जी देनी पड़ी, क्योंकि जो दाम लोग दे रहे थे न उसमें लागत आ रही थी न मजदूरी। काफी सब्जी फेंकनी पड़ी और बाद बाकी जो बची रह गई उसे खेत में ही जोत दिया गया।

प्रवीण बताते हैं इस बार करीब 18 करोड़ रुपये की लागत से सब्जी की थी और सबका सब नुकसान में चला गया। जब बीमा को लेकर सवाल पूछा गया तो बताते हैं बीमा क्लेम प्राकृतिक आपदा के कारण होने वाला नुकसान पर मिलता है, लॉकडाउन के चलते हुए नुकसान पर नहीं। अब कोई  क्या कर सकता है नुकसान तो सबका हुआ है और यहां जान बचाना भी जरूरी था। नुकसान की तो भरपाई हो सकती है लेकिन जान कहां से लाओगे।

करीब 50 एकड़ की भूमि पर सब्जी की खेती करने वाले कोंडागांव जिले के सिगनापुर गांव के किसान विभाष दुबे ने करीब 15 एकड़ में खरबूजे और तरबूज की खेती की थी। लॉकडाउन के चलते अपने खेतों से तोड़े हुए तरबूज और खरबूज वे बेच नहीं सके और वे खेतों में ही बरबाद हो गए। शेष में करेला, बैंगन, गोभी आदि लगाई थी लेकिन उसकी भी लागत नहीं निकल पाई। पिछले हफ्ते ताउते तूफान और उससे पहले ओलावृष्टि ने और भी स्थिति खास्ता कर दी। इस विषय पर जिला कलेक्टर पुष्पेंद्र कुमार मीणा कहते हैं सब्जी बेचने वालों के लिए छूट थी की वे अपनी ठेला पर सब्जी लेकर गली मोहल्ला में बेचें। बाजार एहतियातन बंद था। हालांकि इस प्रकार के आदेश केवल कोंडागांव ही नहीं पूरे प्रदेश में लागू की गई थी। 

इसी लॉक डॉउन के दौरान कोरबा का एक किसान इतना ज्यादा परेशान हुआ कि उसने अपने खेत से लाकर पूरी सब्जी सड़कों पर फेंक दी। जशपुर के बगीचा में नाराज किसानों ने तहसीलदार के घर के सामने सब्जी भरा ट्रक डंप कर दिया। इस प्रकार के कई घटनाएं छत्तीसगढ़ में देखने को इन दिनों मिली है।

रायपुर थोक सब्जी थोक विक्रेता महासंघ के पदाधिकारी श्रीणु बताते हैं कि सामान्य दिनों में रायपुर थोक मंडी में करीब 40 से 50 लाख रुपये की सब्जी प्रति दिन बिकती है वो अब घट के 20 लाख तक हो गई है। लॉकडाउन के दौरान हमारे पास सब्जी की कमी नहीं थी, चूंकि प्रशासन ने शुरुआत में सभी गतिविधियां बंद कर रखी थी, उसके बाद फिर रात में 10 बजे सुबह 5 बजे तक थोक व्यापार खोलने की अनुमति दी उसमें भी तमाम तरह के प्रतिबंध थे। जिसके कारण रिटेलर कम हो गए। ऑनलाइन में भी चुने हुए लोगों को ही सब्जी बेचने की अनुमति थी उसमें भी ठेलों पर ही बिकेगा। अतः रिटेलरों ने इसका फायदा उठाया। थोक में 5 रुपये किलो की सब्जी 30 रुपये किलो तक बिकी। ऐसा प्रशासनिक अदूरदर्शिता के कारण हुआ।

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