क्यों हुआ 27 साल बाद यूपी-एमपी में टिड्डी दलों का हमला, जानें वजह

गुजरात, राजस्थान के बाद इस बार टिड्डी दलों ने मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश के कई इलाकों को अपना निशाना बनाया है
Photo:twitter/@sanjeevagri
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मार्च, अप्रैल और मई के पहले पखवाड़े में हुई बेमौसम बारिश के कारण जहां किसानों की खड़ी फसल को नुकसान हुआ है, वहीं राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, गुजरात और हरियाणा के कुछ हिस्सों में टिड्डियों के हमले का कारण भी यही बारिश हो सकती है।

मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में 27 साल बाद टिड्डी दलों का हमला हुआ है।

बेंगलुरु में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय बागवानी अनुसंधान संस्थान के पूर्व प्रमुख एवं  एंटोमोलॉजिस्ट एके चक्रवती बताते हैं कि बारिश के बाद गीली मिट्टी से टिड्डियां पैदा होती हैं, क्योंकि वहां उन्होंने अंडे दिए होते हैं। फिर ये टिड्डियां हरे क्षेत्र की ओर बढ़ती हैं। पिछले कुछ महीनों के दौरान हो रही निरंतर बारिश ने इन इलाकों में खेत हरे भरे हैं। संभव है कि इस वजह से इन इलाकों में टिड्डी दलों ने हमला किया है।

चूंकि इन दिनों अंफान चक्रवात की वजह से हवा एक विशिष्ट दिशा में है, तो ये टिड्डी दल उन हवाओं के साथ आगे बढ़ेंगे और उनके रास्ते में आने वाले किसी भी हरे पैच को खाएंगे। उत्तर की तेज हवाओं ने शायद उन्हें पाकिस्तान से यहां ला दिया है। पाकिस्तान इस समय टिड्डी दलों के हमले से बुरी तरह से जूझ रहा है।

हवा और बारिश ने ऐसी परिस्थिति बना दी है कि जो इन टिड्डी दलों की आवाजाही को आसान बना रही हैं। हालांकि अमूमन ऐसा नहीं होता है।

मौसम विभाग (आईएमडी) के आंकड़ों के अनुसार, 1 मार्च से 25 मई के बीच राजस्थान में 25 जिलों में सामान्य से 60 प्रतिशत से अधिक वर्षा हुई। जबकि  मध्य प्रदेश में 39 जिलों में सामान्य से 60 प्रतिशत अधिक बारिश हुई। उत्तर प्रदेश के 71 जिलों और हरियाणा के 19 जिलों में सामान्य से 60 फीसदी अधिक बारिश हुई।

चक्रवर्ती ने कहा, "वे आम तौर पर पुराने और सूखे पत्तों और पौधों की बजाय नए पत्ते पसंद करते हैं क्योंकि उनमें प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट होता है, जो आसानी से पचने योग्य होते हैं।" टिड्डियों को जहां-जहां नए पत्ते मिल रहे हैं, वे वहां-वहां जा रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने 21 मई को अपने नवीनतम बुलेटिन में कहा कि ईरान और दक्षिण-पश्चिम पाकिस्तान में टिड्डियों का वसंत प्रजनन जारी है और वे कम से कम जुलाई तक भारत-पाकिस्तान सीमा पर चले जाएंगे।

एफएओ बुलेटिन यह भी कहता है कि भारत-पाकिस्तान सीमा में जून की शुरुआत में बारिश टिड्डों के अंडे देने में मदद करेगा। दिलचस्प बात यह है कि बढ़ती गर्मी और गर्म लहरें भी टिड्डियों को प्रभावित नहीं करेंगी, क्योंकि वे गर्म और कम पानी वाले इलाकों में भी जीवित रह सकते हैं।

चक्रवती बताते हैं कि टिड्डियां ऊर्जा को लिपिड के रूप में संग्रहीत करती हैं जिसमें पानी होता है। इसलिए उन्हें पानी की ज्यादा जरूरत नहीं होती। इतना ही नहीं, उनके चयापचय की दर (जिस दर पर वे भोजन को पचाते हैं) भी बढ़ते तापमान के साथ बढ़ जाती है, जिससे वे और भी खतरनाक हो जाते हैं। इसका मतलब यह भी है कि बढ़ते तापमान और ग्लोबल वार्मिंग टिड्डों को बहुत अधिक शक्तिशाली बना सकते हैं।

डेढ़ लाख टिड्डियों का वजन लगभग एक टन हो सकता है और ये एक दिन में लगभग 10 हाथियों, 25 ऊंटों या 2,500 लोगों के लिए उतना ही खाना खा सकते हैं। एक बड़ा टिड्डा झुंड प्रति वर्ग किलोमीटर 15 करोड़ तक हो सकता है। एक वर्ग किलोमीटर का झुंड एक दिन में 7,50,000 लोगों या 3,000 हाथियों का खाना खाने में सक्षम है।

दिसंबर 2019 से फरवरी 2020 तक, टिड्डियों ने राजस्थान, गुजरात और पंजाब के कई हिस्सों पर हमला किया था, क्योंकि मुख्य रूप से अक्टूबर तक और दक्षिण-पूर्व मॉनसून का मौसम बेहद ख़राब था। मई 2019 में राजस्थान में हुई बेमौसम बारिश की यह टिड्डियां ईरान से  अफगानिस्तान और पाकिस्तान के रास्ते भारत में पहुंची थी।

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