आखिरकार झारखंड ने 17 जिलों को किया सूखा घोषित

राज्य के गठन से अब तक के 23 सालो में 10 बार राज्य सूखा ग्रस्त घोषित किया जा चुका है।
आखिरकार झारखंड ने 17 जिलों को किया सूखा घोषित
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आखिरकार झारखंड राज्य सरकार ने राज्य के 17 जिलों के 158 ब्लॉकों को सूखा ग्रस्त घोषित कर ही दिया है। इससे इन जिलों के 15 लाख किसान प्रभावित हैं। इन जिलों के सूखा घोषित करने की संभावना इस वर्ष मानसून में हुई कम बारिश के चलते पूर्व में ही बन चुकी थी। क्योंकि राज्य में 2023 के मानसून में भी किसानों को किसी प्रकार की राहत नहीं मिली थी। राज्य के सिर्फ 4 जिलों में सामान्य बारिश दर्ज की गई थी। जबकि 19 जिलों में सामान्य से कम बारिश दर्ज की गई थी। इस बार राज्य में मानसून के दौरान औसत से 38 प्रतिशत बारिश कम दर्ज की गई। ध्यान रहे कि बीते मानसून में सामान्य से करीब आधी ही खेती हो पाई थी।

खरीफ की फसल में सरकार का लक्ष्य 16.13 लाख हेक्टेयर में धान लगाने का था लेकिन 2.82 लाख हेक्टेयर में धान की बुआई हो पाई। पहले राज्य में जहां तीन और चार वर्षो के अंतराल में सूखा आता था, वहीं अब यह लगातार दूसरा वर्ष है सूखे का। 2022 में भी राज्य के 22 जिलों के 260 ब्लॉकों में से 226 को सूखा प्रभावित घोषित किया था।  

इस संबंध में नीति आयोग एक बैठक में झारखंड सरकार ने सूखे की स्थिति से निपटने और सिंचाई सुविधा विकसित करने के लिए विशेष पैकेज की मांग की थी और बताया था कि प्रदेश में महज 20 प्रतिशत खेती योग्य जमीन पर ही सिंचाई सुविधा उपलब्ध है।

ध्यान रहे कि राज्य में करीब पांच लाख हेक्टेयर जमीन पर सिर्फ बारिश के पानी से ही खेती की जाती है। राज्य सरकार का कहना था कि इस जमीन पर सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करा कर फसलों के विविधिकरण के तहत बाद के दिनों में भी अन्न उपजाना संभव हो सकता है।

यहां तक कि 2021-22 के आर्थिक सर्वेक्षण में भी बताता गया है कि बेहतर सिंचाई सुविधाओं और जल व भूमि प्रबंधन का विवेकपूर्ण इस्तेमाल से राज्य में कृषि उत्पादकता में सुधार कर सकता है। ध्यान रहे कि झारखंड में सूखे का सबसे ज्यादा दंश झेल रहे हैं राज्य के संथाल परगना और पलामू में पड़ने वाले जिले क्योंकि यहां के किसान केवल काश्तकारी पर ही पूरी तरह से निर्भर हैं। हालांकि कृषि क्षेत्र के कुछ कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि अगर धान को बचाए रखना संभव नहीं हो पा रहा है तो झारखंड को दलहन-तिलहन जैसे फसलों की खेती की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। राज्य में इसकी अपार संभावना है।

अलग राज्य बनने से अब तक झारखंड दस बार सूखे की मार झेल चुका है। इन 23 वर्षों में सूखे से निपटने और जल प्रबंधन की दिशा में ना तो कोई कारगर कदम उठाया गया और ना ही सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था हो सकी। झारखंड के लगभग 32,500 गांवों में रहने वाली राज्य की 80 प्रतिशत आबादी आजीविका के लिए खेती या इससे जुड़ी गतिविधियों पर पूरी तरह से आश्रित है।

इस राज्य में कृषि अर्थव्यवस्था का आधार धान की खेती है जो बारिश पर निर्भर है। सिंचाई का मुख्य स्त्रोत कुआं, तालाब और नहरें हैं। राज्य में लगातार सूखे की स्थिति को देखते हुए राज्य सरकार ने 2022 में राज्यभर में एक लाख कुओं व एक लाख तालाबों के निर्माण का भी निर्णय किया गया और इसके अलावा युद्धस्तर पर चापाकलों (हैंडपंप) तथा चेक डैम को दुरुस्त करने को कहा गया है। राज्य सरकार ने मनरेगा के तहत कच्चे कार्यों पर लगी रोक हटाने का भी निर्देश दिया है, ताकि ग्रामीण इलाकों में तालाबों और जलकुंडों का निर्माण और मरम्मत कर अधिक से अधिक सिंचाई की व्यवस्था की जा सके।

संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन टू कॉम्बैट डेजर्टिफिकेशन (यूएनसीसीडी) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार सदी की शुरुआत के बाद से दुनियाभर में सूखे की आवृत्ति और अवधि खतरनाक रूप से बढ़ गई है। प्राकृतिक आपदाओं में 15 प्रतिशत योगदान सूखे का ही है।

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