दिल्ली सीमा से लगभग 70 किलोमीटर दूर दिल्ली-आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश से आ रहे किसानों को रोक दिया गया। तब से ये किसान वहीं बैठे हैं। सिंघु व टीकरी बॉर्डर पर बैठे किसानों की तरह उनके पास राशन का इंतजाम है और इरादा बुलंद है कि जब तक सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस नहीं ले लेती, तब तक वे पीछे नहीं लौटेंगे।
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड से आए किसान कहते हैं कि उनके इलाकों को तिलहन और दलहन का गढ़ कहा जाता है। लगभग सभी किसान दलहन और तिलहन की खेती करते हैं। लेकिन उनके इलाके में सरकार कभी न्यूनमत समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद नहीं करती। बल्कि ज्यादातर किसान तो जानता ही नहीं कि एमएसपी क्या होता है? सरकारी मंडियां (एपीएमसी) बहुत दूर-दूर हैं। जहां तक पहुंचना छोटे किसान के लिए आसान नहीं है, इसलिए वे व्यापारियों को ही अपनी उपज बेच देते हैं।
बुंदेलखंड किसान यूनियन के संगठन मंत्री गणेश प्रसाद शर्मा कहते हैं कि जो किसान मंडियों तक पहुंच भी जाते हैं, उनसे भी सरकार उपज नहीं खरीदती। वहां भी व्यापारी एमएसपी से बहुत कम कीमत पर फसल खरीदते हैं। इसलिए हम दिल्ली जाना चाहते हैं, ताकि सरकार यह गारंटी दे दे कि एमएसपी से कम कीमत पर खरीद नहीं होगी और हमें भी पंजाब-हरियाणा की तरह मंडियां उपलब्ध कराई जाएं और उनमें खरीद सुनिश्चित की जाए।
बुंदेलखंड के बांदा जिले के तहसील बदेरू के गांव शिव से आए उमेश उर्फ साईंबाबा बताते हैं कि उनके पास लगभग 6 एकड़ जमीन है, जिस पर वे खेती करते हैं। वह चना, मसूर जैसी दालें लगाते हैं। नहर में पानी आ जाए तो कभी-कभी गेहूं भी लगाते हैं। लेकिन खेती से परिवार का गुजारा नहीं होता, इसलिए बेटे दूसरे इलाकों में मजदूरी करने जाते हैं। कभी एक बेटा जाता है तो दूसरा घर में खेती में हाथ बंटाता है, लेकिन अगर जल्द ही हालात नहीं सुधरे तो खेती छोड़नी पड़ेगी। क्योंकि खेती की लागत बढ़ रही है, लेकिन कीमत कम होती जा रही है। अब भी साल भर खेती नहीं कर पाते हैं। कई-कई महीने खेत खाली रहते हैं।
दिल्ली क्यों जा रहे हैं? के सवाल के जवाब में साईंबाबा कहते हैं कि उन्हें कृषि कानूनों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है, लेकिन वह सरकार से यह गारंटी चाहते हैं कि उनकी जो भी फसल खरीदी जाए, उसकी एक कीमत तय हो, उससे कम कीमत पर फसल नहीं खरीदी जाए। वह कहते हैं कि उनके परिवार ने आज तक कभी मंडी में एमएसपी पर फसल नहीं बेची। कई साल से मंडी भी नहीं गए। वहां पहले कागजात मांगे जाते हैं, उसके बाद फसल में कमी निकाल दी जाती है, तब उन्हें व्यापारियों को ही औने-पौने दाम पर बेचनी पड़ती है, इसलिए जब व्यापारी को ही बेचनी है तो बिना मंडी जाए भी बेच सकते हैं। अब सरकार कह रही है कि मंडी के बाहर भी बेच सकते हैं तो हम पहले से मंडी के बाहर बेच रहे हैं, लेकिन दाम की कोई गारंटी नहीं है। यही गारंटी मांगने हम सरकार के पास जा रहे हैं या सरकार हमारे यहां भी पंजाब-हरियाणा की तरह मंडियों में खरीदना शुरू कर दे तो हम लोगों को भी खेती से कुछ फायदा हो।
बांदा की तहसील अतरा के गांव महुटा से आए युवा किसान राजा मनीष तिवारी कहते हैं कि देश में तीन कृषि कानून लागू हो गए, लेकिन किसानों को बताया तक नहीं गया कि इन कानूनों में क्या है? कानून लागू होने के बाद हम जैसे पढ़े लिखे युवाओं ने इसकी बारीकियों को समझा है। कानून में कहा गया है कि किसान अदालत नहीं जा पाएगा, बल्कि एसडीएम के पास अपनी शिकायत करेगा। किसान अपने इलाके के लेखपाल तक से शिकायत नहीं कर सकता। लेखपाल जो चाहता है अपनी मर्जी से कर देता है।
वह कहते हैं कि बुंदेलखंड के किसानों की समस्याएं अलग हैं। कभी पानी की कमी तो कभी अतिवृष्टि जैसी मौसमी घटनाओं के कारण किसान साल में एक फसल ही ले पाता है। ऐसे में पिछले कई सालों से अन्ना (आवारा) जानवरों से परेशान हैं। जैसे ही फसल तैयार होती है, जानवर फसल बर्बाद कर देते हैं। सरकार ऐसी समस्याओं का समाधान करने की बजाय हम पर नए-नए कानून थोपना चाहती है।
बुंदेलखंड किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष विमल कुमार शर्मा ने कहा कि हम लोग यहां (पलवल) में 4 दिसंबर को पहुंचे थे और हमें दिल्ली से 70 किलोमीटर पहले ही रोक दिया गया है। अब हम यहां बैठे हैं और यहां से पीछे तब ही जाएंगे, जब तीन कृषि कानून हटाए नहीं जाएंगे।