नीमच के किसान भारत राठौर अपनी सोयाबीन की फसल को खराब होता देख चिंतित हैं। उन्होंने फसल लगाने के लिए तीन लाख रुपए का लोन लिया था और फसल काटने पर इसे चुकाने वाले थे। मगर फसल की स्थिति देख उन्हें यह अब संभव नहीं लग रहा है। इनको यह परेशानी हाल के दिनों में हुआ अतिवृष्टि से हो रही है।
"सोयाबीन में कीड़े लग गए हैं और खड़ी फसल अंकुरित हो गई। बारिश रुकने का नाम ही नहीं ले रही है। पहले अच्छी बारिश न होने से इस बार मक्के और सोयाबीन में अफलन हो गया था और अब अतिवृष्टि से कीड़े भी लग गए हैं। ऐसे में जो रही-बची फलियां हैं उनकी भी बारिश के कारण कटाई नहीं हो पा रही है। मिट्टी इतनी गीली है कि मजदूर और मशीन खेत तक नहीं जा सकते,” राठौर ने बताया।
भोपाल के किसान मिश्रीलाल राजपूत की गोभी, टमाटर और अन्य सब्जियों की पैदावार बारिश में खराब हो गई।
मध्य प्रदेश में अनियमित बारिश के कारण किसानों को भारी नुकसान हुआ है। जून के पहले सप्ताह में जब प्री-मानसून की बारिश हुई तो उत्साह में किसानों ने रोपाई कर दी। और जब फसल को सबसे अधिक पानी की जरूरत थी तो ड्राइ स्पेल आ गया, यानी बारिश का नामोनिशान नहीं।
कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक मध्य प्रदेश में इस वर्ष 55.840 लाख हेक्टेयर में सोयाबीन, 34.07 लाख हेक्टेयर में धान, 15.150 लाख हेक्टेयर में में मक्का और 3.820 लाख हेक्टेयर में में मूंगफली की फसल लगी है।
पहले दो बड़े ड्राइ स्पेल और अब अतिवृष्टि
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय, जबलपुर के प्रधान वैज्ञानिक मेवा लाल केवट ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा कि इस वर्ष मानसून अनियमित रहा और बारिश रुक-रुक कर होने से बीच में जो सूखा पड़ा है उस से फसलें ज़्यादा प्रभावित हुई हैं।
केवट ने कहा कि मानसून जो मध्य प्रदेश में 10 -15 जून के बीच शुरू होता है, वह इस बार 18 दिन कि देरी से आया जिस से कई दलहन वाली फसलें जैसे उरद, मूंग और सोयाबीन आदि पर असर हुआ। लगभग 17 दिन के इस ड्राई स्पेल से तापमान और आद्रता बढ़ी, जिस से फसलों में शुरुआत से ही बीमारियां लगने लगीं और बीज का अंकुरण प्रभावित हुआ।
केवट ने फसलों पर हुए प्रभाव को समझाते हुए कहा,"इस साल प्रदेश में 18 जुलाई से सात अगस्त के बीच अच्छी बारिश हुई, पर फिर आठ अगस्त से 28 अगस्त सूखा पड़ा। इस से सोयाबीन, मक्के, और धान में अच्छा फलन न होने से इस साल उत्पादन में दस से 15 प्रतिशत की गिरावट आ सकती है। अभी बीते एक महीने से खासी बारिश हो रही है जिससे फसलों को फायदा होने के बजाए नुकसान ही हुआ है।
अनुमान के मुताबिक आने वाले दस दिन भी बारिश वाले ही रहेंगे। सोयाबीन, उरद और मूंग की खड़ी फसल में अंकुरण होने का खतरा है।"
वे आगे बताते हैं कि बारिश की अनियमितता से जब फसलों को पानी की आवश्यकता थी तब उन्हें पानी नहीं मिला, और जब जरूरत नहीं है तो ज़्यादा पानी मिल रहा है। इस वजह से दोनों ही कारणों से फसलों को नुक्सान हुआ है।
उन्होंने बताया, "बारिश के बाद जब ड्राई-स्पेल आता है तो सनशाइन-आवर्स यानी धूप की अवधि बढ़ जाती है, जिस से तापमान और हवा में नमी बढ़ जाती है। इस से फसलों में कीड़े लग जाते हैं। इस बार सोयाबीन में लीफ-फोल्डर और कम्बल कीट लग गए। बारिश न होने से फसल की टिलरिंग यानी बढ़वार नहीं हो पाई,”।
मध्य प्रदेश में औसतन 882.6 मिमी वर्षा होती है, पर इस वर्ष अभी तक यहां 836 मिमी ही वर्षा हुई है, जो की औसत से पांच फीसदी कम है।
मध्य प्रदेश के गुना, शिवपुरी, श्योपुर में इस मानसून अतिवृष्टि (लार्ज एक्सेस) और अगर-मालवा, अशोकनगर, भिंड, नीमच, राजगढ़, विदिशा और सिंगरौली में औसत से अधिक बारिश (एक्सेस) बारिश हुई है।
उत्पादन में 15 फीसदी कमी की आशंका
ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष इंदौर के सुरेश अग्रवाल ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में बताया कि मौसम का साथ न मिलने की वजह से मूंग और उरद दाल के उत्पादन में 15 प्रतिशत की कमी हो सकती है। उनके मुताबिक सितंबर में हुई बारिश ने सोयाबीन की फसल को काफी नुकसान पहुंचाया है। हालांकि, नुकसान का आंकलन तब हो सकेगा जब किसान फसल काटेंगे। खेतों में पानी भरने के कारण सोयाबीन के उत्पादन में भी 12-15 % की गिरावट आ सकती है।