क्या 2021 में चना, गेहूं, धान, मूंग, कच्चा पाम तेल व सरसो और सोयाबीन जैसे सात कृषि उत्पादों की बढ़ती कीमतों पर अंकुश लगाने के लिए वायदा कारोबार ( फ्यूचर डेरिवेटिव्स ट्रेडिंग) को निलंबन किया जाना सरकार का एक बेहतर निर्णय था?
इस मामले पर दो प्रमुख प्रबंधन संस्थानों के द्वारा किया गया ताजा अध्ययन यह बताता है कि सरकार का यह निर्णय न सिर्फ इन कृषि उत्पादों की कीमतों में अस्थिरता पैदा करता है बल्कि इसके चलते कृषि उत्पादों का मूल्य तय करने में कठिनाई आती है। कुल मिलाकर यह सरकार की सोच के विपरीत महंगाई की रोकथाम के बजाए उसपर उल्टा असर डाल रहा है।
यह ताजा अध्ययन बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी, नोएडा और आईआईटी बॉम्बे के शैलेश जे. मेहता स्कूल ऑफ मैनेजमेंट ने किया है।
अध्ययन में पाया गया कि कृषि उत्पादों के वायदा कारोबार यानी भविष्य अनुबंधों (फ्यूचर डेरिवेटिव्स) के निलंबन का असर यह है कि ये कृषि मूल्य व्यवस्था को पूरी तरह से गड़बड़ कर देता है, जिससे खाद्य कीमतों में अस्थिरता बढ़ती है और किसानों और कृषि मूल्य श्रृंखला के अन्य हिस्सों को भारी नुकसान होता है।
कमोडिटी डेरिवेटिव्स यानी भविष्य अनुबंध वह वित्तीय उपकरण होते हैं जिनके जरिए किसानों और व्यापारियों को कृषि उत्पादों की कीमतों में उतार-चढ़ाव से बचने का अवसर मिलता है। यह एक प्रकार का सुरक्षा कवच यानी हेज प्रदान करते हैं, जिससे वे भावी कीमतों के बारे में अनुमान लगाकर अपने निवेश की सुरक्षा कर सकते हैं। जब इन अनुबंधों को निलंबित कर दिया जाता है, तो इसका सीधा असर मूल्य निर्धारण और मूल्य स्थिरता पर पड़ता है।
बिरला इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट टेक्नोलॉजी ने 2016 से 2024 के बीच सरसों, सोयाबीन, सोयाबीन तेल और सरसों के तेल के व्यापार डेटा का विश्लेषण किया। अध्ययन से यह निष्कर्ष निकला कि जब इन कृषि उत्पादों के लिए एक्सचेंज-ट्रेडेड कमोडिटी डेरिवेटिव्स निलंबित कर दिए गए, तो मंडियों में कोई स्पष्ट संदर्भ मूल्य नहीं था। इसका नतीजा यह हुआ कि मूल्य में भारी उतार-चढ़ाव आया, जिससे किसान और उपभोक्ता दोनों को अधिक कीमतों का सामना करना पड़ा। खासकर, खाद्य तेलों की कीमतों में वृद्धि देखी गई।
साथ ही इससे स्थानीय मंडियों में मूल्य निर्धारण की कमी हुई और खुदरा और थोक स्तर पर खाद्य तेलों की कीमतों में बढ़ोतरी हुई। और निलंबन के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इन कृषि उत्पादों के हेजिंग की क्षमता पर असर पड़ा।
वहीं, आईआईटी बॉम्बे ने महाराष्ट्र, राजस्थान और मध्यप्रदेश - के किसानों और कृषि उत्पादन संगठनों (एफपीओ) के साथ गहन साक्षात्कार करके यह जाना कि भविष्य अनुबंधों के निलंबन ने मूल्य निर्धारण और जोखिम प्रबंधन पर किस तरह से असर डाला है।
आईआईटी बॉम्बे का निष्कर्ष बताता है कि कृषि उत्पादों के भविष्य अनुबंधों और स्पॉट (स्थानीय बाजार) कीमतों के बीच कोई सकारात्मक संबंध नहीं था और न ही इन अनुबंधों के कारण खाद्य कीमतों में वृद्धि होती है।
यह भी स्थापित किया गया कि बाजार में मूल्य उतार-चढ़ाव को कम करने में इन अनुबंधों का महत्वपूर्ण योगदान था।
कृषि उत्पादों के वायदा कारोबार में निलंबन के बाद उत्पादों की कीमतें उच्च बनी रही और कीमतों में अस्थिरता बनी रही, जो घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मांग-आपूर्ति कारकों द्वारा प्रभावित हुई।
यह दोनों अध्ययन इस बात की ओर इशारा करते हैं कि कृषि उत्पादों के मूल्य निर्धारण में स्थिरता और जोखिम प्रबंधन के लिए डेरिवेटिव्स अनुबंधों का निलंबन कोई स्थायी समाधान नहीं है। बल्कि, सरकार को चाहिए कि वह इन उपकरणों का सही तरीके से उपयोग करके किसानों को मूल्य जोखिम से बचाने के लिए कदम उठाए। इससे किसानों को भविष्य में अपने उत्पादों के मूल्य का अनुमान करने में मदद मिलेगी और वे बाजार में अधिक आत्मविश्वास के साथ भाग ले सकेंगे।