सुप्रीम कोर्ट ने 12 जनवरी 2021 को तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी। साथ ही, एक चार सदस्यीय कमेटी का गठन किया है, जो कृषि कानूनों की समीक्षा करेगी।
कमेटी में कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी के अलावा इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक (दक्षिण एशिया) प्रमोद जोशी, शेतकरी संगठन, महाराष्ट्र के अध्यक्ष अनिल धनवंत और भारतीय किसान यूनियन के भूपिंदर सिंह मान होंगे।
इससे पहले किसान यूनियनों के संयुक्त मोर्चा ने 11 जनवरी को एक बयान में कहा था कि वे सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त किसी भी कमेटी के समक्ष कार्यवाही में भाग नहीं लेंगे।
हालांकि, अदालत ने कहा कि वह "नकारात्मक इनपुट" नहीं चाहती थी और समस्या को हल करने में "रुचि रखने वाले" सभी लोगों को कमेटी के समक्ष जाना होगा।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एसए बोबड़े ने कहा,“हम एक तर्क नहीं सुनना चाहते कि किसान कमेटी में नहीं जाएंगे। हम समस्या को हल करने के लिए देख रहे हैं। यदि आप अनिश्चित काल के लिए आंदोलन करना चाहते हैं, तो आप कर सकते हैं”।
उन्होंने कहा कि कमेटी आपको दंडित नहीं करने जा रही है। आप वकील के माध्यम से समिति के पास जाएंगे।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा, “हमारे पास कानून को निलंबित करने की शक्ति है। लेकिन कानून का इस्तेमाल एक खाली उद्देश्य के लिए नहीं होना चाहिए। हम एक समिति बनाएंगे जो हमें एक रिपोर्ट सौंपेगी”।
अदालत ने यह भी कहा कि कमेटी किसानों की चिंताओं को समझने के लिए एक "मध्यस्थ" की भूमिका नहीं निभाएगी, बल्कि वह स्वतंत्र होगी।
अदालत पिछले सितंबर में लागू तीन कृषि कानूनों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इससे संबंधित एक विस्तृत आदेश 18 जनवरी को अपेक्षित है।
मुख्य न्यायधीश ने यह भी कहा कि यदि किसान संगठन, कमेटी के समक्ष भाग लेने के लिए सहमत हो गए तो अदालत कानून के क्रियान्वयन पर रोक लगाएगी और किसानों की भूमि की रक्षा करेगी।
कोर्ट ने कहा, "हम एक अंतरिम आदेश पारित करेंगे, जिसमें कहा जाएगा कि किसी भी किसान की ज़मीन को अनुबंधित खेती के लिए नहीं बेचा जा सकता है"।
जवाब में, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि किसानों के उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम की धारा 8 में प्रावधान है कि कॉन्ट्रेक्ट फार्मिंग करते समय हस्तांतरण, बिक्री, बंधक, आदि के उद्देश्य से कोई भी कृषि समझौता नहीं किया जाएगा।
इस बीच, शीर्ष अदालत ने इस पर भी केंद्र से जवाब मांगा कि क्या किसी प्रतिबंधित संगठन ने किसानों के विरोध प्रदर्शन में घुसपैठ की है।
अटॉर्नी जनरल ने दावा किया कि कुछ प्रतिबंधित संगठन किसानों के आंदोलन में शामिल हुए थे। इस बारे में वह 13 जनवरी को इंटेलिजेंस ब्यूरो के रिकॉर्ड के साथ एक हलफनामा दायर करेंगे।
इस बीच, दिल्ली पुलिस ने भी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक आवेदन दिया है, जिसमें गणतंत्र दिवस पर प्रस्तावित ट्रैक्टर / ट्रॉली / वाहन मार्च के खिलाफ निषेधाज्ञा की मांग की गई है। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों से 18 जनवरी तक जवाब दायर करने को कहा है।