दलहन के पारंपरिक किसानों का समर्थन करने से मिल सकती है दालों की आत्मनिर्भरता

2033 के लिए मांग और आपूर्ति अनुमानों पर नीति आयोग की रिपोर्ट में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए क्षेत्र में रबी दालों की क्षमता और उपज विस्तार का पूरी तरह से उपयोग करने सिफारिश की गई।
दलहन के पारंपरिक किसानों का समर्थन करने से मिल सकती है दालों की आत्मनिर्भरता
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दालों की जमाखोरी हमेशा महंगाई लेकर आती है। दालों की महंगाई जमाखोरी का एक संकेतक बन गई है। शायद इसी भय से बीच-बीच में कानून में फेरबदल और बदलाव होते हैं। स्वतंत्र व कानून मामलों की शोधार्थी व नीति विशेषज्ञ शालिनी भुटानी का यह आलेख इन्हीं परेशानियों की तहें खोल रहा है : 

भारत सरकार स्पष्ट रूप से जमाखोरी को लेकर चिंतित है, जो ऐसे समय में दालों की कीमतों को बढ़ा सकती है जब मुद्रास्फीति बढ़ रही है। पूर्व में भी एसेंशियल कमोडिटी एक्ट (ईसीए) के तहत निर्धारित अनाज और दालों की स्टॉकिंग सीमा ने जमाखोरी को रोकने में मदद की। यह 2 जुलाई 2021 को पारित आदेश (19 जुलाई को संशोधित आदेश) का स्पष्ट कारण प्रतीत होता है। इस आदेश के तहत स्टॉक सीमा की अवधि  31 अक्टूबर 2021 तक है । 

स्टॉक सीमा का यह आदेश यह उस अवधि से भी मेल खाता है जिसमें मई 2021 से भारत सरकार द्वारा एक ओपन जेनरल  लाइसेंस (ओजीएल) के तहत दालों के आयात की अनुमति दी गई है। इसका तात्पर्य यह है कि दालों को बिना लाइसेंस और बिना किसी प्रतिबंध के स्वतंत्र रूप से आयात किया जा सकता है। हालांकि, 2 जुलाई को दिया गया स्टॉक सीमा पर हालिया आदेश आयातकों द्वारा स्टॉक किये जा सकने वाले माल की मात्रा पर सीमा निर्धारित करता था। 

2 जुलाई, को जारी स्टॉक सीमा आदेश में आयातकों के लिए किया गया प्रावधान 

  1. 15 मई 2021 से पहले स्टॉक/आयातित राशि के लिए 200 मिलियन टन और एक किस्म के 100 मिलियन टन से अधिक नहीं।  
  1. 15 मई 2021 के बाद आयात किए गए स्टॉक के लिए, सीमा शुल्क निकासी की तारीख से 45 दिनों के बाद समान स्टॉक सीमा लागू होती है।  

(19 जुलाई को स्टॉक सीमा के संशोधित आदेश में बदलाव किया गया और आयातकों को बाहर निकाल दिया गया।)

कानून और नीतियों में ये लगातार बदलाव अनिश्चितताएं पैदा करते हैं, खासकर आयातकों के लिए। हालाँकि भारत को दालें निर्यात  करने वाले मलावी और म्यांमार जैसे देशों के साथ  सरकार ने जून 2021  में एक समझौता किया जिसके तहत भारत सरकार इन दोनों देशों से अगले पांच वर्षों तक निजी व्यापार के माध्यम से अरहर और उड़द दाल आयात करेगी।  यह महत्वपूर्ण है क्योंकि ये देश घरेलू स्तर पर दाल का उपभोग नहीं करते हैं जैसा कि भारत करता है।

लेकिन शायद सबसे अधिक आवश्यकता दालों के घरेलू उत्पादन में तेजी लाने की है। भारत दुनिया में दालों का सबसे बड़ा उपभोक्ता है। भले ही केवल 10 राज्य देश की 70 प्रतिशत दाल की खपत करते हैं। क्षेत्र विशिष्ट आवश्यकताएं होने के साथ साथ भारत में  न तो समान खाने की आदतें हैं और न ही समान कृषि पारिस्थितिक वास्तविकताएं। यह विविधता स्वयं एक अधिक गैर-केंद्रीकृत उत्पादन योजना के आयोजन का माध्यम हो सकती है। 

2033 के लिए मांग और आपूर्ति अनुमानों पर नीति आयोग की रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए क्षेत्र में रबी दालों की क्षमता और उपज विस्तार का पूरी तरह से उपयोग करने की आवश्यकता है।

दालें खाद्य और पोषण सुरक्षा के लिए भारत सरकार की रणनीति का अभिन्न अंग हैं। उपभोक्ता मामले विभाग, भारत सरकार का  उपभोक्ता मंत्रालय एवं  खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय को वितरण के लिए पर्याप्त बफर स्टॉक सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।

उपभोक्ता मामलों के सचिव के अनुसार: पीएमजीकेएवाई के पहले चरण में, राज्यों की प्राथमिकताएं जो भी थीं (और वे अविश्वसनीय रूप से विविध थीं ) उन सभी दालों की आपूर्ति उन  राज्य सरकारों को की गयी थी। और जुलाई से नवंबर 2020 तक चले कार्यक्रम के अगले चरण में सभी राज्यों को काला चना दिया गया था।  

भारत में शीर्ष दाल व्यापारियों की शीर्ष संस्था आईपीजीए  2011 से, कृषि के साथ-साथ उपभोक्ता मामलों के मंत्रालयों के साथ नीतियों में निम्नलिखित संशोधन करने के लिए चर्चा कर रही है:

  • सार्वजनिक वितरण प्रणाली में दालों को शामिल करना
  • खाद्य सुरक्षा अधिनियम में दालों को शामिल करना
  • सभी दालों के मुफ्त निर्यात की अनुमति
  • यह सुनिश्चित करना कि दालों की खरीद  एमएसपी पर हो; और व्यापारिक मूल्य में किसी भी गिरावट के मामले में, नेफेड जैसी सरकारी एजेंसियों को  न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर उपज खरीदना चाहिए।

कृषि मूल्य एवं लागत आयोग (सीएसीपी) द्वारा अनुशंसित और जून 2021 तक भारत सरकार द्वारा निर्धारित विभिन्न दालों के लिए रुपये प्रति कुंतल में एमएसपी इस प्रकार है:

खाद्य/ वर्ष

2020-2021

2021-2022

खरीफ फसलें

सिफारिश

तय

सिफारिश

तय

तुर (अरहर)

6000

6000

6300

6300

मूंग

7196

7196

7275

7275

उड़द

6000

6000

6300

6300

रबी फसल 

 

 

 

 

चना

5100

5100

-

-

मसूर

5100

5100

-

-

  स्रोत : सीएसीपी वेबसाइट 


हालांकि, किसानों का तर्क है कि वे हमेशा निर्धारित एमएसपी प्राप्त करने में सक्षम नहीं होते हैं और देश में विभिन्न दाल उत्पादक  राज्यों में उत्पादन की लागत अलग-अलग होती है, इसलिए एक समान मूल्य काम नहीं करता है। मार्च 2021 की सीएसीपी की अपनी रिपोर्ट में कहा गया है कि चावल की तुलना में इन फसलों में कम लाभप्रदता, उच्च जोखिम और प्रभावी खरीद प्रणाली की कमी के कारण, किसानों के पास इन फसलों को उगाने हेतु  कोई प्रोत्साहन नहीं है। सीएसीपी की सिफारिश है कि राज्यों को सही समय पर बाजार में हस्तक्षेप करने के लिए सक्रिय कदम उठाने चाहिए और मूल्य समर्थन योजना (पीएसएस) के तहत पर्याप्त रसद सहायता प्रदान करके खरीद कार्यों को मजबूत करना चाहिए।

हम जितना ध्यान दालों पर दे रहे हैं उतना ही ध्यान इन दालों को उगाने वाले किसानों पर दिये जाने की आवश्यकता है।  एफएओ के अनुसार पारिवारिक किसान दुनिया भर में 90 प्रतिशत से अधिक दलहन उगाते हैं। स्थानीय फलियों और पारंपरिक फलियों का समर्थन किसानों की कृषि को फिर से मजबूत कर सकता है। यह राष्ट्र का पोषण करने के साथ साथ  पृथ्वी के स्वास्थ्य के लिए भी आवश्यक है।  

दालों के लिए नियम-कानून ( क्रोनोलॉजी)

  • एसेंशियल कमोडिटीज़ ऐक्ट (ईसीए), 1955 
  • ईसीए, 2016  के तहत जारी किए गए विशिष्ट खाद्य पदार्थों पर लाइसेंसिंग आवश्यकताओं, स्टॉक सीमाओं और आवाजाही प्रतिबंधों को हटाने के आदेश 
  • जून 2020              ईसीए में संशोधन के लिए अध्यादेश प्रख्यापित
  • सितंबर 2020          ईसीए संशोधन भारत की संसद में पारित
  • जनवरी 2021          भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ईसीए संशोधन सहित तीन कृषि कानूनों के कार्यान्वयन पर रोक लगाई
  • नवीनतम 2 जुलाई 2021 : दालों (मूंग को छोड़कर) पर स्टॉकिंग सीमा को लागू करते हुए ईसीए के तहत जारी विशिष्ट खाद्य पदार्थों (संशोधन) आदेश, 2021 पर लाइसेंसिंग आवश्यकताओं, स्टॉक सीमा और परिवहन पर लगे  प्रतिबंधों को हटाना, जो ऊपर उल्लिखित 2016 में पारित आदेश में भी संशोधन करता है।

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