तीन दशक में सूरजमुखी की खेती में 90 प्रतिशत की गिरावट, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद हरकत में आई सरकार

भारत रूस-यूक्रेन से लगभग 90 प्रतिशत सूरजमुखी का तेल आयात करता है, लेकिन युद्ध के बाद बिगड़े हालात ने केंद्र सरकार हरकत में आ गई है
तीन दशक में सूरजमुखी की खेती में 90 प्रतिशत की गिरावट, रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद हरकत में आई सरकार
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देश में पिछले तीन दशक के दौरान सूरजमुखी की खेती में बहुत तेजी से गिरावट हुई है। 1992-93 में देश में 26.68 लाख हेक्टेयर में सूरजमुखी की खेती होती थी, जो 2020-21 में घटकर 2.26 लाख (लगभग 8.47 प्रतिशत) हेक्टेयर रह गई है।

सूरजमुखी की खेती में आई इस बड़ी गिरावट को लेकर केंद्र सरकार अब हरकत में आ गई है। इसकी वजह रूस-यूक्रेन युद्ध बताया जा रहा है।

भारत अन्य खाद्य तेलों की तरह सूरजमुखी के तेल के लिए आयात पर निर्भर रहता है। कृषि विभाग के आंकड़े बताते हैं कि आयात किए जा रहे कुल खाद्य तेलों में सूरजमुखी के तेल का हिस्सा लगभग 16 प्रतिशत है। भारत लगभग दो लाख टन सूरजमुखी तेल हर महीने आयात करता है। इसमें 70 फीसदी सूरजमुखी तेल यूक्रेन और 20 फीसदी रूस से आयात करता था, लेकिन रूस-यूक्रेन के बीच युद्ध छिड़ने के बाद आयात पर गंभीर असर पड़ा है।

खाद्य तेलों के आयात को कम करने के लिए तो सरकार ने पहले ही प्रयास शुरू कर दिए थे, लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद सरकार ने प्रयास तेज कर दिए हैं।

चूंकि तिलहन की अन्य फसलों के मु्काबले देश में सूरजमुखी की फसल का उत्पादन बहुत कम है, इसलिए सरकार ने अब इस फसल का रकबा बढ़ाने की दिशा में काम शुरू किया है। इसके चलते अकेले अप्रैल 2022 माह में कृषि एवं कृषक कल्याण विभाग की तीन बैठकें हो चुकी हैं, जिसमें सूरजमुखी की फसल का उत्पादन बढ़ाने पर भी विचार किया गया और राज्यों से पूछा गया कि पिछले तीन दशक के दौरान सूरजमुखी की खेती और उत्पादन में इतनी अधिक गिरावट क्यों आई?

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के आंकड़े बताते हैं कि 1993-94 में 26.68 लाख हेक्टेयर में सूरजमुखी की खेती की जाती थी, लेकिन 2020-21 में यह घटकर 2.26 लाख हेक्टेयर रह गई। उत्पादन की अगर बात करें तो 1993-94 में 13.48 लाख टन सूरजमुखी का उत्पादन होता था, लेकिन 2020-21 में यह घटकर 2.28 लाख टन रह गया। हालांकि प्रति हेक्टेयर उत्पादन में वृद्धि जरूर हुई है। पहले 505 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है, जो अब बढ़ कर लगभग दोगुना यानी 1011 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर हो गया है।

राज्यवार आंकड़ों के बारे में बताया गया कि 1993-94 में सबसे अधिक कर्नाटक में 14.69 लाख हेक्टेयर में 4.75 लाख टन उत्पादन होता था, जो घटकर अब 1.2 लाख हेक्टेयर में 1.08 लाख टन रह गया है। इसके अलावा आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश में सूरजमुखी का उत्पादन होता है, लेकिन हरियाणा को छोड़ कर सभी राज्यों में सूरजमुखी का उत्पादन कम होता जा रहा है।

महाराष्ट्र में 5.72 लाख हेक्टयर में सूरजमुखी की खेती होती थी। 2020-21 में यह घट कर केवल 26 हजार हेक्टेयर ही रह गई है। आंध्र प्रदेश में भी 3.9 लाख हेक्टेयर से घटकर 12 हजार हेक्टेयर ही रह गई है।

क्या है वजह 

कृषि एवं किसान कल्याण विभाग की ओर से बुलाई बैठकों में सूरजमुखी की खेती के घटने के कारणों की पड़ताल की गई। राज्यों ने सूरजमुखी की खेती कम होने के अलग-अलग कारण बताए। सबसे अधिक खेती करने वाले कर्नाटक के कृषि आयुक्त ने बताया कि अच्छी क्वालिटी के बीज उपलब्ध न होने और बारिश पर निर्भर रहने वाले इलाकों में सिंचाई के इंतजाम बढ़ना दो मुख्य वजह हैं, जिनके चलते सूरजमुखी की खेती में बहुत कमी आई है। उन्होंने सुझाव दिया कि सूरजमुखी की खेती करने वाले किसानों को कम से कम दस साल के लिए सब्सिडी या इंसेंटिव देने की जरूरत है।

इसके साथ-साथ उन्होंने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में बढ़ोतरी और अच्छी गुणवत्ता वाले बीज किसानों को उपलब्ध कराने पर भी जोर दिया।

उत्तर प्रदेश के कृषि अधिकारी ने बताया कि जंगली/छुट्टा मवेशियों द्वारा फसलों को नुकसान पहुंचाने, फसल की सही व सुनिश्चित कीमत न मिलने, कीमतों में अनियमितता, अच्छी गुणवत्ता के बीज न मिलने के कारण राज्य में सूरजमुखी की खेती कम हुई है। उन्होंने सूरजमुखी की खेती बढ़ाने के लिए किसानों को सब्सिडी देने की सलाह दी।

महाराष्ट्र सरकार के कृषि निदेशक ने बताया कि सूरजमुखी लगाने वाले किसानों ने सोयाबीन लगाना शुरू कर दिया, क्योंकि उन्हें अच्छे बीज नहीं मिल रहे थे और सूरजमुखी पर वेल्यू एडिशन भी काफी कम था। उन्होंने कहा कि परिगलन (नेक्रोसिस) बीमारी के कारण भी सूरजमुखी का उत्पादन घटा और किसानों ने खेती छोड़ दी। नेक्रोसिस बीमारी की वजह से फसल गल जाती है।

उन्होंने सुझाव दिया कि सूरजमुखी का बुआई क्षेत्र बढ़ाने के लिए सोयाबीन, मूंगफल जैसी फसलों के इंटरक्रॉपिंग करनी होगी।

फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया की प्रतिनिधि ने कहा कि नेक्रोसिस बीमारी की वजह से सूरजमुखी की खेती में कमी आई है। उन्होंने सुझाव दिया कि खारी मिट्टी में सूरजमुखी की खेती की जाए। साथ ही, गेहूं-धान की वजह से बंजर हो चुकी जमीन पर सूरजमुखी की फसल उगाई जानी चाहिए। उन्होंने किसानों को एमएसपी देने की सलाह दी।

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