कीटनाशकों के कारण पंजाब के खेतिहर मजदूरों में कोशकीय बदलाव का प्रबल जोखिम

कीटनाशक छिड़काव के दौरान पीपीई का अनिवार्य तौर पर इस्तेमाल किया जाए तो यह खेतिहर मजदूरों और सामान्य लोगों को कीटनाशकों के दुष्प्रभावों से बचाया जा सकता है।
कीटनाशकों के कारण पंजाब के खेतिहर मजदूरों में कोशकीय बदलाव का प्रबल जोखिम
Published on

देश में तीसरे सबसे बड़े कीटनाशक उपभोक्ता पंजाब के किसानों की सेहत दांव पर है। राज्य के 83 फीसदी भू-भाग पर फैली हुई खेती में काम करने वाले खेतिहर मजदूर सबसे ज्यादा जोखिम में हैं। खेतों ंमें काम करने वाले कृषि मजदूरों को जीनोटॉक्सिसिटी यानी कीटनाशकों के कारण उनकी कोशिकाओं के भीतर ऐसे स्थायी परिवर्तन हो सकते हैं जो कैंसर जैसी गंभीर बीमारी पैदा कर सकते हैं। वहीं, पीपीई किट पहनकर खेतों में कीटनाशकों का छिड़काव करने वाले ऐसे दुष्प्रभाव से थोड़े सुरक्षित पाए गए हैं।

पंजाब के अमृतसर स्थित गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी के शोध में यह बात कही गई है। इस शोध में कुल 248 लोगों को चुना गया। इनमें 148 खेतिहर मजदूर थे और जिनका 10 वर्षों का खेती का अनुभव रहा है और ग्रामीण परिवेश में रहते थे। वहीं, अन्य 148 लोग ऐसे थे जिनका खेती से कोई ताल्लुक नहीं था और यह लोग ग्रामीण परिवेश में नहीं थे । इसके अलावा कीटनाशक छिड़काव के सीजन और गैर सीजन का ध्यान रखा गया । कोशिकाओं के भीतर हो रहे बदलावों की सूक्ष्म जांच के लिए सभी के ब्लड सैंपल लिए गए। इन्हें छह घंटे बाद जांचा गया। परीक्षण के लिए कॉमेट एसे तकनीक का इस्तेमाल किया गया। यह तकनीक कोशिकाओं के भीतर होने वाले म्यूटेशन यानी स्थायी बदलावों के बारे में स्पष्ट परिणाम बताती है।  

शोध के निष्कर्ष में कहा गया है कि पंजाब के खेतिहर मजदूर विभिन्न तरह के मिश्रित कीटनाशकों के इस्तेमाल करने और उनके जद में रहने के कारण जीनोटॉक्सिसिटी के जोखिम में हैं। कीटनाशकों के कारण उनकी कोशिकानुवंशकी प्रभावित हो रही है। यदि पीपीई को अनिवार्य तौर पर कीटनाशक छिड़काव के दौरान इस्तेमाल किया जाए तो यह खेतिहर मजदूरों और सामान्य लोगों को उनके दुष्प्रभावों से बचा सकती है। 

शोध में शामिल किए गए 148 खेतिहर मजदूरों में 93 फीसदी जो कीटनाशक की जद में आए उनकी कोशिकानुवंशिकी में स्थायी बदलावों (म्यूटेशन) के जोखिम ज्यादा पाए गए जबकि 26 फीसदी में ऐसी स्वास्थ्य समस्याएं पैदा तब हुईं जब वे कीटनाशकों का इस्तेमाल कर रहे थे। वहीं, कीटनाशकों के जद में रहने वालों के सैंपल में पाया गया कि कीटनाशकों से बाहर रहने वालों की तुलना में उनके मेटाफेज में काफी बढ़ोत्तरी थी। 

 इस शोध में किसी खास कीटनाशक का नाम नहीं लिया गया है और आबादी की विशेषताओं को शामिल नहीं किया गया है। शोध में कहा गया है कि ऑर्गेनिक फॉर्मिंग और जैविक कीटनाशकों का इस्तेमाल बढ़ाने से इस जोखिम को कम किया जा सकता है। 

Related Stories

No stories found.
Down to Earth- Hindi
hindi.downtoearth.org.in