
वह एक पूस की रात थी। शीतलहर का प्रकोप पूरे दम पर था। लोग अपने-अपने घरों में दुबके हुए थे। मुंशी जी अपनी नई कहानी पर व्यस्त थे कि अचानक उनको लगा कि किसी ने उनके दरवाजे पर दस्तक दी।
उन्होंने दरवाजा खोला तो यकायक अपनी आंखों पर उन्हें यकीन नहीं हुआ। उनके सामने पछाई जाति के सुंदर और ऊंची ढील वाले दो बैल खड़े थे जो ठंड से बुरी तरह कांप रहे थे। मुंशी जी को उन बैलों पर दया आ गई। उन्होंने घर में रात की कुछ बची रोटियां, थोड़े से गुड़ के साथ उन्हें खाने को दिया।
एक बैल की आंखों में आंसू आ गए थे। वह बोला,“आपने शायद हमें पहचाना नहीं, मैं हीरा हूं और यह है मोती। हम झूरी काछी के बैल हैं।”
“झूरी काछी!” मुंशी जी ने आश्चर्य से कहा, “यानि मेरी ‘दो बैलों की कहानी’ के हीरा-मोती! पर आप यहां क्या कर रहे हो?”
इसपर दूसरे ने कहा,“आपकी कहानी अधूरी रह गयी है, हम चाहते हैं कि आप उसे पूरी कर दो।”
“मगर मेरी कहानी तो पूरी है। तुम्हारा मालिक झूरी काछी कैसा है और झूरी का साला गया की क्या खबर है? अब तो वह तुम्हें परेशान तो नहीं करता न?” मुंशी जी ने मुस्कुराते हुए कहा।
“गया तो कबका शहर में चला गया”, हीरा ने कहा, “उसकी जमीन सरकार ने एसईजेड के नाम पर छीन ली।
अब वह एक झुग्गी में रहता है और शहर में दिहाड़ी मजूरी कर अपना और अपने परिवार का पेट भरता है।” “मुझे तो अपने कानों पर भरोसा नहीं हो रहा है हीरा। झूरी काछी कैसा है?” मुंशी जी ने चौंक कर पूछा।
“मालिक नहीं रहे मुंशी जी”, यह मोती की आवाज थी, “बीटी फसल के सरकारी झांसे में आकर वह साहूकार के कर्जे में इतना दबे कि एक दिन उन्होंने कीटनाशक पीकर...
इससे आगे मोती से कहा नहीं गया। उसका गला भर आया था।
“और तुम दोनों अब क्या कर रहे हो?” अपने को किसी तरह संभाल कर मुंशी जी ने पूछा।
“मालिक के जाने के बाद सब तहस-नहस हो गया। जब इंसानों के लिए घर पर खाने को कुछ नहीं था, तब हम ढोर-पशुओं की कौन पूछता है। एक दिन मालकिन ने रो-रो कर हमें उस दढ़ियल कसाई को बेच दिया। इस जिंदगी से तो मौत अच्छी थी। यह संतोष था कि अपने हाड़-मांस के बदले हमारी मालकिन को कुछ पैसे तो मिलेंगे” हीरा बोला।
“पर एक दिन उस कसाई ने भी हमें छोड़ दिया”, मोती ने कहा,“पता चला कि नई सरकार ने गोमांस पर रोक लगा दी थी। अब कब तक दढ़ियल कसाई हमें बैठा कर खिलाता। बस, तब से हम शहर के कूड़ेदानों से प्लास्टिक की पन्नियों में लिपटे सड़े-गले खाने को आवारा कुत्तों से छीन झपट कर खाकर जीवन निर्वाह कर रहे हैं।”
हीरा बोल उठा,“ एक बार सोचा मुंबई के शेयर बाजार में चले जाएं। सुना है शेयर बाजार में बैलों की बड़ी पूछ होती है। पर जब से जलिकट्टू के बारे में सुना, यह मोती तो बस तमिलनाडु में जाने की रट लगाए है। आज ही कूड़ेदान में अखबार में लिपटे बासी खाने को खाते समय हमें पता चला कि वहां के लोगों ने सुप्रीम कोर्ट के जलिकट्टू को बैन करने के फैसले को नकार दिया है।”
मुंशी जी के नेत्रों से अश्रु बह निकले। उनको समझ में नहीं आ रहा था वह क्या कहें। उन्होंने पुछा,“ मैं तुम्हारी किस तरह मदद कर सकता हूं?”
मोती ने कहा, “मुंशी जी एक उपकार हम पर कर दें। हम पर लिखी अधूरी कहानी को पूरा कर दें।” मुंशी जी ने पूछा, “भला वह कैसे?”
मोती बोला,“आप लिखें कि किस तरह झूरी काछी व गया लोग आज तिल-तिल कर मर रहे हैं, अपनी जमीन से उजाड़े जा रहे हैं। लिखें कि कैसे वह लोग दिन-रात जीतोड़ मेहनत के बाद भी साहूकारों की देनदारी में फंसे हैं।”
हीरा बोल उठा, “मुंशी जी कुछ भी करके झूरी काछी लोगों को बचाओ, गया लोगों को बचाओ। झूरी काछी लोग बचेंगे तो हम भी बचेंगे।”
मुंशी जी एकटक हीरा-मोती की ओर देखते रहे।