दलहन पर भंडारण की सीमा से लग सकता है किसानों की आय को बड़ा झटका 

वर्ष 2015 के बाद दूसरी बार दलहनों की भंडारण सीमा सरकार ने तय की है। कीमतों को स्थिर रखने वाले इस आदेश से बीते वर्ष प्याज किसानों की तरह दलहन किसानों को भी घाटा उठाना पड़ सकता है।
दलहन पर भंडारण की सीमा से लग सकता है किसानों की आय को बड़ा झटका 
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देश में दशकों से तुअर (अरहर) और उड़द पैदा करने वाले किसान उपज और कीमतों को लेकर हतोत्साहित हैं। वहीं, आवश्यक वस्तु से जुड़े कानूनों में फेरबदल और सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद केंद्र सरकार अब आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के प्रावधानों से अलग जाकर तत्काल प्रभाव वाले आदेश जारी कर रही है। सरकार का अभी ताजा आदेश दलहन की स्टॉक सीमा को लेकर है जिसका विरोध जारी है। जानकारों के मुताबिक खाद्यान्न महंगाई से अब तक बची हुई तुअर और उड़द की दाल पर इस तरह की सीमा से दलहन किसानों को बड़ा झटका लग सकता है। 
सरकार ने इस आदेश को विशिष्ट खाद्य पदार्थों पर लाइसेंसी अपेक्षाएं, स्टॉक सीमाएं और संचलन प्रतिबंध हटाना (संशोधन) आदेश, 2021 नाम दिया है।  
वर्ष 2015 दालों की ऊंची कीमतों और अंतरराष्ट्रीय स्तर की जमाखोरी के मामले में जाना जाता है। इसी वर्ष सरकार ने पहली बार दलहन की स्टॉक सीमा तय की थी। 2015, सितंबर में तुअर की कीमत 176 रुपए और उड़द की कीमत 190 रुपए तक पहुंची। 18 अक्तूबर, 2015 को आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के प्रावधानों से अलग स्टॉक सीमा तय की गई थी। 
बहरहाल केंद्र सरकार ने 2015 के बाद अब दूसरी बार आवश्यक वस्तुओं की कीमतों को नियंत्रित करने के नाम पर दाल के भंडारण के लिए थोक विक्रेताओं, खुदरा विक्रेताओं, मिल मालिकों और आयातकों की एक सीमा तय की है। 
केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने  2 जुलाई 2021 से तत्काल प्रभाव से जारी किए गए खाद्य पदार्थ (संशोधन) आदेश, 2021 में कहा है कि सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लिए मूंग को छोड़कर सभी दालों के लिए 31 अक्टूबर 2021 तक के लिए स्टॉक सीमा निर्धारित की गई है।
आदेश के तहत थोक विक्रेताओं के लिए ये स्टॉक सीमा 200 मीट्रिक टन (बशर्ते एक किस्म की दाल 100 मीट्रिक टन से ज्यादा नहीं होनी चाहिए)। खुदरा विक्रेताओं के लिए 5 मीट्रिक टन और मिल मालिकों के लिए ये सीमा उत्पादन के अंतिम 3 महीनों या वार्षिक स्थापित क्षमता का 25 प्रतिशत, जो भी ज्यादा हो, वो होगी। 
वहीं, आयातकों के लिए ये स्टॉक सीमा 15 मई 2021 से पहले रखे गए/ आयात किए गए स्टॉक के लिए किसी थोक व्यापारी के समान ही होगी और 15 मई 2021 के बाद आयात किए गए स्टॉक के लिए थोक विक्रेताओं पर लागू स्टॉक सीमा सीमा शुल्क निकासी की तारीख से 45 दिनों के बाद लागू होगी। 
आदेश में ये भी कहा गया है कि अगर संस्थाओं का स्टॉक निर्धारित सीमा से अधिक है, तो उन्हें उपभोक्ता मामलों के विभाग में इसकी जानकारी देनी होगी और इस आदेश की अधिसूचना जारी होने के 30 दिनों के अंदर निर्धारित सीमा के भीतर लाना होगा।
इस आदेश पर ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेंद्र अग्रवाल ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा कि खाद्य महंगाई दलहन में नहीं चल रही है। किसानों को अरहर और उड़द में तय न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम दाम मिल रहे हैं। ऐसे में सरकार के द्वारा दालों की भंडारण की सीमा को लेकर उठाया गया कदम उन्हें हतोत्साहित करेगा। 
पांच प्रमुख दलहन हैं जो न्यूनतम समर्थन मूल्य के दायरे में हैं। इनमें चना, अरहर, उड़द, मूंग, मसूर शामिल हैं। कीमतों को नियंत्रित करने और आयात घटाने को लेकर रबी मार्केट सीजन 2021-2022 के लिए सरकार ने  चना का एमएसपी 4,875 रुपए से बढ़ाकर 5,100 रुपए और मसूर का 4,800 रुपए से बढ़ाकर 5,100 रुपए किया है। जबकि अरहर और उड़द का एमएसपी अभी 6000 रुपये है और मूंग का एमएसपी 7196 रुपया है।
सरकार के चौथे अग्रिम अनुमान (2019-2020) के मुताबिक दलहनों का उत्पादन लक्ष्य 260 लाख टन के विरुद्ध 230 लाख टन ही रहा। यानी कुल उत्पादन में 11 फीसदी की कमी आई, जबकि सरकार के प्रथम अग्रिम अनुमान (2020-21) के मुताबिक दलहनों में अरहर महज 40 लाख टन ही पैदा हुई जबकि लक्ष्य 48 लाख टन का था। दलहनों में चने के बाद सबसे ज्यादा हिस्सेदारी करने वाले अरहर (तूर) के उत्पादन में करीब 16 फीसदी की गिरावट आई है।
केंद्रीय उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय का कहना है "मार्च-अप्रैल माह में दालों के दामों में लगातार बढ़ोतरी हुई थी। बाजार को सही संदेश देने के लिए तत्काल नीतिगत निर्णय लेने की जरूरत महसूस की गई। जमाखोरी की अवांछनीय प्रथा, जिसकी वजह से बनावटी कमी की परिस्थिति पैदा होती है और मूल्यों में वृद्धि होती है, पर रोक लगाने के लिए पूरे देश में दालों के वास्तविक स्टॉक की घोषणा करने के लिए पहली बार यह प्रक्रिया अपनाई गई।" 
किसान संगठन भी कृषि बिल के साथ भंडारण सीमा को लेकर इस तरह के कदम का लगातार विरोध कर रहे हैं। 
किरण कुमार विस्सा बताते हैं कि आवश्यक वस्तु अधिनियम ,1955 की वजह से ही कोरोना की पहली लहर के दौरान लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन के दौरान खाद्य महंगाई पर खास फर्क नहीं पड़ा था। सरकार बेहतर तरीके से जानती है कि यह अधिनियम इस मामले में काफी उपयोगी है। हालांकि, सरकार ने जून, 2020 में तीन कृषि बिलों के बाद इस अधिनियम को संशोधित किया था, जिसका किसान संगठन विरोध कर रहे हैं। 
बिस्सा ने कहा कि आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 में किया गया संशोधन केंद्र सरकार को यह शक्ति देता है कि वह आवश्यक वस्तुओं पर तत्काल प्रभाव से भंडारण सीमा (स्टॉक लिमिट) को तय कर सके। दरअसल यह शक्ति कृषि व्यवसाय से जुड़े कारोबारियों को फायदा दिलाने के लिए है। अभी जब 2 जुलाई को केंद्र सरकार ने दालों की स्टॉक लिमिट तय की है तो इसके बाद हमारे तर्क को और पुष्टि मिल गई है कि वह बड़े कारोबारियों को ही फायदा दिलाना चाहती है। किसानों की आय को इससे कोई फायदा नहीं होने वाला। 
वहीं, दाल भंडारण को लेकर अचानक जारी होने वाली इस अधिसूचना से पहले वर्ष 2020 में सरकार आवश्यक वस्तु अधिनियम, 1955 के संशोधन में कहा था कि आवश्यक वस्तु अधिनियम या स्टॉक सीमा तभी लागू होगी जब दालों की कीमत या तो एमएसपी से 50 फीसदी अधिक होगी या देश में कोई आपातकालीन स्थिति होगी।
अखिल भारतीय खाद्य तेल व्यापार महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष शंकर ठक्कर ने डाउन टू अर्थ से कहा कि 2017 में एक अधिसूचना के माध्यम से सरकार ने यह अनिवार्य कर दिया था कि सरकार के पोर्टल पर 6 प्रकार की दालों, मसूर, चना, तूर, उड़द, मूंग और काबली चना की स्टॉक सीमा अपलोड की जाएगी, जिसका व्यापारियों द्वारा विधिवत पालन किया जा रहा है।
दालें मूल रूप से 8 प्रकार की होती हैं और इन 8 प्रकार की दालों को मिलाने और संसाधित करने के बाद 30 से अधिक प्रकार की दालों में परिवर्तित किया जाता है। यह कल्पना से परे है कि थोक विक्रेता कैसे सिर्फ 100 टन में 30 से अधिक प्रकार की दालों को स्टॉक कर सकते है।
कन्फ्रेडेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स एसोसिएशन के रमणीक छेड़ा ने डाउन टू अर्थ से कहा स्टॉक सीमा निर्धारित करने वाली अधिसूचना को तत्काल प्रभाव से वापस ले लिया जाए क्योंकि 200 टन की स्टॉक सीमा 1955 में तय की गई थी जब देश की जनसंख्या केवल 25 करोड़ थी। वर्तमान आबादी के लिए यह सीमा काफी तर्कहीन और अनुचित है। यदि सरकार को लगता है कि स्टॉक की सीमा लागू करना आवश्यक है, तो देश की मौजूदा आबादी के अनुपात में 2000 टन की स्टॉक सीमा वो भी किसी विशेष दाल के लिए कोई स्टॉक सीमा निर्दिष्ट किए बिना थोक व्यापारियों के लिए निर्धारित की जा सकती है। 
देश में बुनियादी खाद्य जरूरतों का उत्पादन, आपूर्ति और वितरण के बीच कीमतों पर नियंत्रण रखने के लिए 1 अप्रैल, 1955 को आवश्यक वस्तु अधिनियम लाया गया था।  दलहन से पहले प्याज की कीमतों को नियंत्रित करन के लिए सरकार ने स्टॉक सीमा 2020 में लगाई थी। इसकी वजह से कई किसानों का प्याज खराब हुआ था। अब दालों के मामले में किसानों पर इसकी गाज गिर सकती है। 

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