"क्लोरोपाइरीफॉस" जैसे खतरनाक कीटनाशक पर बिना किसी छूट के वैश्विक प्रतिबंध लगाने की मांग एक बार फिर उठी है। स्टॉकहोम कन्वेंशन के तहत जिनेवा में जारी बैठक में पेस्टीसाइड एक्शन नेटवर्क (पैन) इंटरनेशनल के वैज्ञानिकों और प्रतिनिधियों ने इस रासायनिक कीटनाशक को बिना किसी छूट के "परिशिष्ट ए" में शामिल करने की सिफारिश की है।
परिशिष्ट ए स्टॉकहोम कन्वेंशन का एक आधिकारिक परिशिष्ट है, जिसमें उन खतरनाक रसायनों जैसे कीटनाशकों और औद्योगिक रसायनों की सूची होती है जिन्हें वैश्विक स्तर पर पूरी तरह से प्रतिबंधित या समाप्त किया जाना है। एनेक्स ए में बिना छूट शामिल होने वाले रसायन या कीटनाशक वैश्विक स्तर पर उत्पादन, उपयोग, आयात और निर्यात के लिए प्रतिबंधित होते हैं।
स्टॉकहोम कन्वेंशन एक अंतरराष्ट्रीय संधि है, जिसका मकसद स्थायी जैविक प्रदूषकों (पीओपी) के उत्पादन, उपयोग, आयात-निर्यात और उत्सर्जन को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करना या सख्ती से नियंत्रित करना है। यह कन्वेंशन स्विटजरलैंड के जिनेवा शहर में 28 अप्रैल से जारी है जो 9 मई, 2025 तक चलेगा।
इस समीक्षा बैठक में पैन इंटरनेशनल की वरिष्ठ वैज्ञानिक एमिली मार्केज ने कहा कि क्लोरोपाइरीफॉस अल्प मात्रा में भी बच्चों के मस्तिष्क के विकास पर गंभीर असर डाल सकता है। साथ ही इसका असर जीवन भर बना रहता है। यह कीटनाशक सिर्फ खेतों तक सीमित नहीं है बल्कि यह आर्कटिक जैसे दूरदराज क्षेत्रों में भी पाया गया है, जिससे इसके दीर्घकालिक पर्यावरणीय प्रभाव स्पष्ट होते हैं।
वहीं, संबंधित कीटनाशक को प्रतिबंधित करने के लिए यह तर्क भी दिया गया है कि स्टॉकहोम कन्वेंशन के तहत गठित स्थायी जैविक प्रदूषक समीक्षा समिति (पीओपीआरसी) ने भी यह निष्कर्ष निकाला है कि क्लोरोपाइरीफॉस वैश्विक स्तर पर चरणबद्ध प्रतिबंध के सभी मानदंड को पूरा करता है।
वहीं, इस मामले में पैन इंडिया के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एडी दिलीप कुमार ने भारत में इसके असर पर बात करते हुए बताया कि क्लोरोपाइरीफॉस के अवशेष कृषि उत्पादों, पानी, इंसानी रक्त और यहां तक कि स्तन दूध में भी पाए गए हैं। 2003 की एक भारतीय अध्ययन रिपोर्ट में इसका स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा निर्धारित सीमा से 41 गुना अधिक पाया गया था।
उन्होंने यह भी चेताया कि इस रसायन के कारण किसानों और उपभोक्ताओं दोनों की सेहत खतरे में है। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में इसके अवशेष मिलने पर भारतीय कृषि निर्यात को भी भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।
पैन एशिया पैसिफिक की परियोजना संयोजक आलिया दियाना ने विशेष रूप से विकासशील देशों की चिंता जताते हुए कहा, “इस तरह के कीटनाशकों का सबसे ज्यादा असर उन समुदायों पर पड़ता है जो पहले से ही असुरक्षित हैं। गर्भस्थ शिशुओं तक पर इसका असर देखा गया है, जिससे उनकी बुद्धि और याददाश्त पर स्थायी नुकसान होता है।”
तीनों संगठनों ने इस बात पर जोर दिया कि क्लोर्फाइरिफॉस के सभी वर्तमान उपयोगों के लिए सुरक्षित और प्रभावी वैकल्पिक समाधान मौजूद हैं, जिनमें एग्रोइकोलॉजिकल और जैविक कीट प्रबंधन तकनीकें शामिल हैं। इसलिए इसके इस्तेमाल को जारी रखने का कोई वैज्ञानिक या व्यावसायिक आधार नहीं बचा है।
वक्ताओं ने एकमत से मांग की कि क्लोरोपाइरीफॉस को स्टॉकहोम कन्वेंशन के एनेक्स ए में बिना किसी विशेष छूट के शामिल किया जाए, ताकि यह जहरीला कीटनाशक वैश्विक स्तर पर प्रतिबंधित हो सके।
स्थायी जैविक प्रदूषकों यानी वातावरण में लंबे समय तक बने रहने वाले प्रदूषकों की रोकथाम के लिए स्टॉकहोम कन्वेंशन को मई, 2001 में स्वीडन स्थित स्टॉकहोम में मंजूरी दी गई थी। यह 17 मई 2004 से प्रभावी हुआ और इस वक्त भारत समेत 180 से अधिक देश इस कन्वेंशन के हस्ताक्षरकर्ता हैं। भारत ने 2006 में इसे अनुमोदित किया था।