किसानों के विवेक पर छोड़ी जानी चाहिए साठा धान की बुआई: एनजीटी

अदालत का कहना है कि किसी विशेष फसल पर प्रतिबंध लगाना या नहीं यह एनजीटी के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता
प्रतीकात्मक तस्वीर: आई स्टॉक
प्रतीकात्मक तस्वीर: आई स्टॉक

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की जस्टिस सुधीर अग्रवाल की बेंच ने साठा धान की बुआई पर रोक लगाने को लेकर दायर याचिका को खारिज कर दिया है। गौरतलब है कि इस धान की खेती में बहुत ज्यादा भूजल का उपयोग किया जाता है।

अदालत ने अपने आदेश में कहा है कि यह सच है कि साठा धान के लिए बहुत ज्यादा भूजल की आवश्यकता होती है, लेकिन अकेले यही कारण साठा धान की बुआई पर रोक लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है। अदालत ने आगे कहा है कि किसी विशेष फसल पर प्रतिबंध लगाना या नहीं यह एनजीटी के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। यह मुद्दा एनजीटी अधिनियम, 2010 की अनुसूची I में सूचीबद्ध नियमों के तहत पर्यावरण से सम्बंधित किसी भी प्रश्न को जन्म नहीं देता है।

गौरतलब है कि यह आवेदन भारतीय किसान यूनियन चढूनी के प्रदेश महासचिव अमनदीप सिंह संधू द्वारा तीन मार्च 2022 को भेजी पत्र याचिका के आधार पर उठाया गया था। इस याचिका में कहा है कि साठा धान की फसल में भूजल का बेहद ज्यादा उपयोग होता है। इस फसल की बुआई मार्च से मई के बीच की जाती है, यह वो समय है जब बारिश नहीं होती, ऐसे में किसान फसल की देखभाल के लिए बहुत ज्यादा भूजल का इस्तेमाल करते हैं।

सरकार इस धान को नहीं खरीदती और न ही बीज और खाद के लिए पैसे देती है। चावल मिल मालिक इसे औने-पौने दामों पर खरीदते हैं, जिससे किसानों को नुकसान होता है। इसलिए साठा फसल की बुवाई पर रोक लगाने की मांग की गई है।

इस मामले में अदालत ने कई आदेश जारी किए हैं और यह तय करने के लिए समिति भी बनाई कि क्या साठा धान की खेती पर इस तरह के प्रतिबंध उचित होंगे या नहीं। ट्रिब्यूनल के समक्ष इस बारे में 26 जून, 2024 को एक अनुपालन रिपोर्ट दायर की गई। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि साठा धान सहित किसी भी फसल के लिए किसानों पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया गया है और यह उचित भी नहीं होगा।

इसके बजाय, मामले को किसानों के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए। यह अलग बात है कि किसानों को सीमित तरीके से साठा फसल उगाने और अन्य प्रकार के धानों को अपनाने के लिए शिक्षित किया जा सकता है।

चार मई, 2024 को टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जिलों में कृषि अधिकारियों ने किसानों को जल स्तर में महत्वपूर्ण गिरावट को रोकने के लिए प्री-मानसून धान, जिसे साठा धान के रूप में जाना जाता है, की खेती न करने की सलाह दी है।

टेढ़ी नदी पर हो रहा अवैध निर्माण, आरोपों की जांच के लिए एनजीटी ने गठित की संयुक्त समिति

नेशनल ग्रीन  ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने टेढ़ी नदी पर अवैध निर्माण की शिकायतों की जांच के लिए एक संयुक्त समिति गठित करने का निर्देश दिया है। दो जुलाई 2024 को दिया यह निर्देश उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले से जुड़ा है। कोर्ट के निर्देशानुसार इस समिति में गोंडा के जिला मजिस्ट्रेट, उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूपीपीसीबी) और गोंडा में सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता शामिल होंगे। वहीं जांच में समन्वय के लिए गोंडा के जिला मजिस्ट्रेट को नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया है।

अदालत ने समिति को साईट का दौरा करने के साथ प्रासंगिक जानकारी एकत्र करने और अगले एक महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपने को कहा है। इस मामले में अगली सुनवाई 13 अगस्त, 2024 को होगी।

गौरतलब है कि यह मामला घिर्राउ लाल मिश्रा सहित नौ शिकायतकर्ताओं द्वारा दायर आवेदन के आधार पर शुरू किया गया था, जिसे एक पत्र याचिका के रूप में अक्टूबर 2023 को कोर्ट के सामने पेश किया गया था। आवेदन में कहा गया है कि टेढ़ी नदी गोंडा शहर से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर बहती है। इस नदी पर एक स्थाई पुल बना है, जिसे कटहा घाट के नाम से जाना जाता है। यह नदी बहराइच के चित्तौड़ ताल से निकलती है और सरयू नदी में मिल जाती है।

आरोप है कि कुछ बिल्डर अवैध रूप से बाढ़ के मैदान और नदी के किनारे पर अतिक्रमण कर रहे हैं, जिससे नदी का प्रवाह बाधित हो रहा है। इस शिकायत में उनके नाम भी बताए गए हैं।

गाजियाबाद में सीवर की निकासी पर ध्यान न देने पर एनजीटी ने जताई नाराजगी

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने गाजियाबाद के शहरी इलाकों में अधिकारियों द्वारा सीवर की निकासी पर सही तरीके से ध्यान ने देने पर नाराजगी व्यक्त की है।

मामला उत्तरप्रदेश में गाजियाबाद के लोनी का है। लोनी नगर पालिका परिषद द्वारा 25 जून, 2024 और गाजियाबाद के जिला मजिस्ट्रेट द्वारा एक जुलाई 2024 को दायर हालिया रिपोर्टों से पता चला है कि इस मामले में अधिकारियों के बीच केवल पत्रों का आदान-प्रदान हुआ है और कार्य के लिए डीपीआर को अब तक अंतिम रूप नहीं दिया गया है।

इसके साथ ही अधिकारियों द्वारा दी गई रिपोर्ट "पूरी तरह से असंतोषजनक" है। आदेश में कहा गया है कि पूरा रिकॉर्ड दर्शाता है कि पिछले दो वर्षों में कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई और अधिकारी लगातार जल (प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 की धारा 24 का उल्लंघन कर रहे हैं।

इसके अलावा एनजीटी ने लोनी नगर पालिका के अधिशासी अधिकारी, गाजियाबाद के जिला मजिस्ट्रेट और यूपी जल निगम के प्रबंध निदेशक से 12 जुलाई, 2024 को न्यायाधिकरण के समक्ष पेश होने का आदेश दिया है।

गौरतलब है कि इस मामले पर अंतिम बार 11 मार्च, 2022 को सुनवाई हुई थी।

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