फसलों में रोग बढ़ा रही हैं कुछ पक्षियों की प्रजातियां, खाद्य सुरक्षा पर बढ़ सकता है संकट

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जंगली पक्षी के मल के 11,000 से अधिक बैक्टीरिया परीक्षण किए और 8 प्रतिशत नमूनों में कैम्पिलोबैक्टर नामक रोग का पता चला।
फसलों में रोग बढ़ा रही हैं कुछ पक्षियों की प्रजातियां, खाद्य सुरक्षा पर बढ़ सकता है संकट
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अक्सर यह मान लिया जाता है कि पक्षी विभिन्न फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं, लेकिन पक्षियों की सभी प्रजातियां ऐसा नहीं करती हैं। कीट प्रबंधन में पक्षियों का बहुत बड़ा योगदान है। एक अध्ययन के मुताबिक भारत में पक्षियों की 1300 प्रजातियां दर्ज हैं।

अब एक नए अध्ययन के मुताबिक पक्षियों से खाद्य जनित खतरों के बारे में चिंता इतनी गंभीर नहीं होनी चाहिए, जितनी कि किसानों द्वारा अक्सर सोची जाती हैं। खाद्य फसलों में पक्षियों द्वारा ई. कोलाई और साल्मोनेला जैसे बैक्टीरिया फैलाने के बहुत कम उदाहरण पाए गए है। यह अध्ययन डेविस के कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय द्वारा किया गया है।

अध्ययन में पाया गया कि खतरा अक्सर पक्षियों की प्रजातियों के आधार पर अलग-अलग होता है। खाद्य सुरक्षा का खतरा और पक्षी रोगजनकों के अध्ययन के अनुसार, बड़ी संख्या में झुंड में रहने वाले पक्षियों और मवेशियों के पास जमीन पर चारा खाने वाले पक्षियों के लेट्यूस, पालक और ब्रोकोली जैसी फसलों में रोगजनक बैक्टीरिया के फैलाने के अधिक आसार होते हैं। इसके विपरीत, कीट खाने वाली प्रजातियों में रोग फैलाने वाले बैक्टीरिया को ले जाने की संभावना बहुत कम पाई गई है।   

अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि खेतों के आसपास पक्षियों के आवासों को हटाने की वर्तमान प्रथा ठीक नहीं है। यह इसलिए चिंताजनक माना जाता है कि जानवर खेतों से खाद्य जनित रोगजनकों को फैला सकते हैं, जबकि समस्या का समाधान हो सकता है।

यूसी डेविस डिपार्टमेंट ऑफ वाइल्डलाइफ, फिश एंड कंजर्वेशन बायोलॉजी में सहायक प्रोफेसर डैनियल कार्प ने कहा पक्षियों के फसलों में खाद्य जनित रोग फैलाने को लेकर किसान बहुत अधिक चिंतित हैं। फिर भी सभी पक्षी प्रजातियां समान रूप से खतरनाक नहीं हैं।

अध्ययन के मुताबिक उपज में केवल एक खाद्य जनित रोग का प्रकोप पक्षियों द्वारा फैलाया गया है जो कि अलास्का के मटर की फसल में कैम्पिलोबैक्टर नाम का प्रकोप है। जबकि बैक्टीरिया मनुष्यों में दस्त और अन्य खाद्य जनित बीमारियां फैला सकते हैं, यह ई-कोलाई और साल्मोनेला की तुलना में उत्पादकों के लिए कम चिंता का विषय है, जो पूरी दुनिया में कई प्रकोपों के लिए जिम्मेदार हैं।

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने जंगली पक्षी के मल के 11,000 से अधिक बैक्टीरिया परीक्षण किए और 8 प्रतिशत नमूनों में कैम्पिलोबैक्टर का पता चला। लेकिन रोग फैलाने वाले ई-कोलाई और साल्मोनेला केवल बहुत ही दुर्लभ मामलों यानी 0.5 प्रतिशत से कम में पाए गए।

बैक्टीरिया परीक्षणों के अलावा, शोधकर्ताओं ने पश्चिमी राज्यों में 350 ताजा उपज क्षेत्रों में लगभग 1,500 पक्षियों के सर्वेक्षण किए और खेतों से 1,200 से अधिक मल के नमूने एकत्र किए। इसके बाद उन्होंने खतरे का पता लगाने के लिए मल में रोगजनकों की व्यापकता, फसलों के परस्पर प्रभाव, विभिन्न पक्षियों की प्रजातियों के फसलों पर शौच करने की संभावना का मॉडल तैयार किया।  

कीट पतंगे खाने वाले पक्षियों से खतरा कम होता है

आंकड़ों के आधार पर, कीट खाने वाले पक्षी कम खतरे पैदा करते हैं, जबकि पक्षी जो पशुओं के पास झुंड में आते हैं, जैसे कि ब्लैकबर्ड और स्टारलिंग, इनके रोगजनकों को फैलाने की अधिक आशंका बनी रहती है।

आंकड़े कृषि उद्योग पर होने वाले खतरों को निर्धारित करने और कार्रवाई करने में मदद कर सकते हैं, जैसे फसलों की उपज को पशु भूमि से अलग करना आदि।  

किसानों को सभी प्रकार के पक्षियों को लेकर चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है। आंकड़े बताते हैं कि कुछ कीट खाने वाले पक्षी जो वास्तव में फसल उत्पादन को लाभ पहुंचा सकते हैं, खाद्य सुरक्षा के दृष्टिकोण से इतने खतरनाक नहीं हो सकते हैं।

पक्षियों के आवास को हटाना उल्टा पड़ सकता है

इस अध्ययन से पता चलता है कि खेतों के आसपास के आवास को हटाने से वास्तव में उन प्रजातियों को लाभ हो सकता है जो अधिक खतरा पैदा करती हैं। लाभकारी, कीट खाने वालों को नुकसान पहुंचाती हैं जो खाद्य सुरक्षा के लिए कम खतरे वाले हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि कई उपजाऊ कीट-भक्षी फसल के खेतों में कीटों को खाने के लिए जा सकते हैं, लेकिन उनके जीवित रहने के लिए आस-पास के प्राकृतिक आवासों की आवश्यकता होती है।

इसके विपरीत, पक्षियों की कई प्रजातियां जो आमतौर पर खाद्य जनित रोगजनकों को ले जाती हैं, दोनों पशु फार्मों पर आसानी से पनपती हैं और आस-पास के प्राकृतिक आवास के बिना खेतों में उत्पादन को बढ़ाने में मदद करती हैं।

कीटों को खाने वाले पक्षी जो पेड़ की आड़ में कीटों का शिकार करते हैं, वे कम से कम खतरा पैदा करते हैं। क्योंकि उनमें खाद्य जनित रोगजनकों को ले जाने और उपज के सीधे संपर्क में आने की संभावना कम होती है। वे पारिस्थितिकी तंत्र के मूल्यवान हिस्से भी हो सकते हैं, खासकर अगर वे कीटों को खाते हैं जो फसलों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। पक्षियों के लिए बक्से लगाने से कीट खाने वालों को आकर्षित किया जा सकता है, साथ ही संरक्षण के प्रयासों में भी मदद मिल सकती है।

मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता ओलिविया स्मिथ ने कहा हम मूल रूप से नहीं जानते थे कि कौन से पक्षी समस्याग्रस्त थे। यह अध्ययन इकोलॉजिकल एप्लिकेशन जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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