

हिमालयी क्षेत्र कश्मीर में जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए अंतरराष्ट्रीय अर्ध-शुष्क उष्णकटिबंधीय फसल अनुसंधान संस्थान (इक्रीसेट) और शेर-ए-कश्मीर कृषि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, कश्मीर के बीच एक औपचारिक समझौता हुआ है। इसका उद्देश्य क्षेत्र की बदलती कृषि-जलवायु परिस्थितियों के अनुरूप जलवायु-सहिष्णु फसलों पर शोध को आगे बढ़ाना है।
इस साझेदारी के तहत कश्मीर घाटी के उच्च ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अरहर (तूर/पिजनपी) की नई किस्मों के परीक्षण किए जा रहे हैं। इन परीक्षणों का उद्देश्य जल्दी पकने वाली, प्रकाश-संवेदनशील, ताप-असंवेदनशील और ठंड सहन करने वाली किस्मों की अनुकूलता का आकलन करना है, वो भी ऐसे समशीतोष्ण और ठंड-प्रवण क्षेत्रों में जहां पारंपरिक रूप से अरहर की खेती नहीं होती रही है।
इक्रीसेट के महानिदेशक हिमांशु पाठक ने कहा कि जैसे-जैसे हिमालयी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन कृषि का स्वरूप बदल रहा है, राष्ट्रीय संस्थानों के साथ घनिष्ठ साझेदारी किसानों तक टिकाऊ फसल समाधान पहुंचाने के लिए बेहद जरूरी है।
हाल ही में इक्रीसेट की एक शोध टीम ने शेर-ए-कश्मीर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के साथ मिलकर सगाम स्थित माउंटेन क्रॉप रिसर्च स्टेशन में प्रायोगिक स्थलों का दौरा किया और परीक्षण में शामिल किस्मों के प्रदर्शन की समीक्षा की।
यह कार्य इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अरहर की खेती अब तक ठंड के प्रति संवेदनशीलता के कारण मुख्यतः उष्णकटिबंधीय और उप-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों तक सीमित रही है, लेकिन वर्तमान में चल रहे परीक्षण इस पारंपरिक सीमा को तोड़ते नजर आ रहे हैं। इस परीक्षण में साइटोप्लाज़्मिक मेल स्टेराइल लाइनों, मेंटेनर और रेस्टोरर लाइनों तथा उन्नत प्रजनन सामग्री का मूल्यांकन शामिल है।
इक्रीसेट के उप महानिदेशक (अनुसंधान एवं नवाचार) डॉ. स्टैनफोर्ड ब्लेड ने कहा, “इस वर्ष की शुरुआत में हमारी टीम ने कश्मीर का दौरा कर मुख्यमंत्री और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों से क्षेत्र की कृषि आत्मनिर्भरता को आगे बढ़ाने पर चर्चा की थी। उसके बाद जो प्रगति हुई है, वह सरकार और हमारे साझेदारों की मजबूत प्रतिबद्धता को दर्शाती है, जिससे घाटी के किसानों तक जलवायु-सहिष्णु नवाचार पहुंचाए जा सकें।”
इक्रीसेट में ग्लोबल सीड सिस्टम्स के प्रमुख डॉ. मंज़ूर डार ने कहा, “प्रारंभिक अवलोकनों से कई आशाजनक प्रविष्टियों में पौधों की मजबूत वृद्धि, ठंडी रातों के तापमान को सहन करने की क्षमता और स्थिर पुष्पन व्यवहार सामने आया है। यदि ये परिणाम आगे के मौसमों में भी पुष्ट होते हैं, तो इससे न केवल कश्मीर घाटी में अरहर को भविष्य की एक व्यवहार्य फसल के रूप में स्थापित करने का मार्ग खुलेगा, बल्कि फसल विविधीकरण, खाद्य और पोषण सुरक्षा तथा जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन भी बढ़ेगा। इसके साथ ही स्थानीय किसानों के लिए विशेष बाजारों में अवसर भी पैदा हो सकते हैं।”
गौरतलब है कि अरहर में सीएमएस तकनीक पर इक्रीसेट का शोध वर्ष 2008 से जारी है, जब दुनिया की पहली सीएमएस संकर अरहर किस्म (आईसीपीएच 2671) विकसित की गई थी। वर्तमान प्रगति राज्य में संकर बीज उत्पादन प्रणालियां स्थापित करने के नए अवसर खोल रही है। इसके फायदों में कीट प्रकोप में कमी, लंबी फूल अवधि और ऑफ-सीजन अरहर उत्पादन की संभावना शामिल है।