रीजनल कॉम्प्रिहेंसिव इकोनॉमिक पार्टनरशिप (आरसीईपी) को लेकर देश में चर्चा छिड़ी हुई है। भारत यदि आरसीईपी समझौते में हस्ताक्षर कर लेता है तो उसे 16 देशों के साथ ओपन ट्रेड (मुक्त व्यापार) करना होगा, इन देशों में चीन, जापान, भारत, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के अलावा ब्रुनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमा, फिलिपिंस, सिंगापुर, थाईलैंड, वियतनाम भी शामिल हैं। किसान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं, बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) से संबंद्ध संगठन स्वदेशी जागरण मंच भी इसका विरोध कर रहा है। विरोध का कारण जानने के लिए अनिल अश्विनी शर्मा ने स्वदेशी जागरण मंच के सह संस्थापक अश्विनी महाजन से बातचीत की। प्रस्तुत हैं, बातचीत के अंश-
आप आरसीईपी का विरोध क्यों कर रहे हैं?
देखिए, इस समझौते में कई मुद्दे हैं। अब तक इसका जो स्वरूप सामने आया है, वह देशहित में नहीं है। क्योंकि हम अंतराष्ट्रीय समझौतों का विरोध नहीं करते। यह स्पष्ट हो गया है कि देश में डेयरी एक बहुत बड़ा सेक्टर है जो कि लगभग दस करोड़ लोगों को रोजगार देता है और देश के लगभग पचास करोड़ लोग किसी न किसी रूप से इस पर आश्रित हैं। आसियान और एफटीए देश डेयरी पर उत्पाद शुल्क कम करने के लिए भारत से बातचीत कर रहे हैं, क्योंकि आज की तारीख में दुनिया में डेयरी उत्पादों का सबसे बड़ा भारत ही बाजार है।
आपने वाणिज्य मंत्रालय के अधिकारियों पर आंकड़ों के हेराफेरी करने की बात क्यों कही?
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि वाणिज्य मंत्रालय के सेंटर ऑफ रीजनल ट्रेड के अधिकारी भारत के दुग्ध उत्पादन के आंकड़ों का तोड़मरोड़ करके और भारत में दूध की भारी कमी का गलत अनुमान पेश कर रहे हैं और दूध और उसके उत्पादों पर शुल्क घटाने के प्रस्ताव का समर्थन कर रहे हैं। मैं यह दावे से कह सकता हूं कि दूध उत्पादकों और प्रोसेसरों ने वाणिज्य मंत्रालय के साथ मजबूत तथ्यों को प्रस्तुत किया है, इसे मंत्रालयों के नौकरशाहों और सलाहकारों द्वारा जानबूझ कर नजरअंदाज किया जा रहा है।
इस समझौते से प्रभावित होने वाले और कौन से उद्योग हैं?
कृषि का मुद्दा भी बहुत बड़ा है। इसके अलावा जैसे रबड़, पाम आयॅल आदि। इसके कारण किसानों का बहुत ही नुकसान हो चुका है। इसके अलावा हमारी खाद्य तेल की सुरक्षा भी प्रभावित होगी। और अब तक हुई भी है और इस समझौते के कारण ज्यादा प्रभावित हो सकती है। यानी कुल मिलाकर हर उद्योग यानी ऑटो मोबाइल, टेलिकॉम, स्टील, कैमिकल आदि सभी सेक्टरों इस समझोते से प्रभावित होंगे।
आरसीईपी समझौते से चीन को कितना लाभ होगा?
जिन क्षेत्रों के लिए इस समझौते पर बात हो रही है, उस पर चीन ने इतने नॉन टैरिफ बेरियर लगा रखा है कि हम उससे पार ही नहीं पा सकते। हमारे देश के टेलिकॉम को तो वह आने ही नहीं देता और हम हैं कि उसे लगातार आने के लिए बाहें फैलाए बैठे हैं।
आप कई उद्योगों के खत्म होने की बात कह रहे हैं, क्या आप किसी एक उद्योग का एक सटीक उदाहरण दे सकते हैं?
देखिए, मैं आपको सबसे साइकिल उद्योग का उदाहरण दे रहा हूं। चीन आज की तारीख में 17 करोड़ साइकिल बेच रहा है और भारत मात्र 1.70 करोड़ साइकिल ही बेच पा रहा है। ऐसे में अगर चीन को भारत में आरईसीपी के जरिए फ्री ट्रेड की इजाजत दे दी गई तो पंजाब की साइकिल इंडस्ट्री पूरी तरह से तबाह हो जाएगी।
डेयरी उद्योग को किस प्रकार से इस समझौते के बाद नुकसान होगा?
फसल, पशुधन, मत्स्य पालन और कृषि आगतों के लिए मांग एवं आपूर्ति के अनुमानों पर नीति आयोग के कार्यकारी समूह की रिपोर्ट (फरवरी, 2018) के अनुसार आगामी 2033 में दूध की मांग 292 मिलियन मिट्रिक टन होगी, जबकि भारत में तब 330 मिलियन मिट्रिक टन दूध का उत्पादन होगा। इस प्रकार भारत दूध उत्पादों का अधिशेष होगा और ऐसे हालात में आयात का सवाल ही नहीं उठता। वहीं नीति आयोग की रिपोर्ट आगे बहुत अच्छे कृषि उत्पादन का सुझाव देती है जो 2033 मे दुधारु मवेशियों के लिए चारे उपलब्धता भी सुनिश्चित करेगा।
एफटीए (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) के देशों में से एक न्यूजीलैंड किस प्रकार से भारत को नुकसान पहुंचाएगा?
देखिए, मात्र 48 लाख की आबादी वाला यह देश 10,000 किसानों को रोजगार देकर 10 मिलियन मीट्रिक टन (एमएमटी) दूध का उत्पादन करते हैं और वे अपने कुल उत्पादन का 93 प्रतिशत निर्यात करते हैं। दूसरी ओर, भारत में 10 करोड़ परिवार अपनी आजीविका के लिए डेयरी उद्योग पर निर्भर हैं। यहां तक कि न्यूजीलैंड यदि अपने दूध उत्पाद का मात्र पांच प्रतिशत भी निर्यात करता है तो यह भारत के प्रमुख डेयरी उत्पादों जैसे दूध पाउडर, मक्खन, पनीर आदि के उत्पादन के 30 प्रतिशत के बराबर होगा। इसी प्रकार से आस्ट्रेलिया में भी जहां 6000 हजार से भी कम किसान 10 एमएमटी दूध का उत्पादन करते हैं। और इसमें से 60 प्रतिशत से अधिक निर्यात करते हैं। फिर भारत को आरसीईपी में डेयरी उत्पाद क्यों शामिल करना चाहिए और कम शुल्क पर आयात की अनुमति क्यों देनी चाहिए? यहां एक बड़ा सवाल है कि क्या इससे आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड के किसानों की दोहरी आय सुनिश्चित करने के लिए है या भारतीय किसानों की?
आरसीईपी का असर भारत के दुग्ध उपभोक्ताओं और किसानों पर किस प्रकार से पड़ेगा?
भारतीय उपभोक्ताओं को विश्व स्तर पर सबसे सस्ती दर पर दूध मिल रहा है और दूध उत्पादों को उपभोक्ता कीमत (80 प्रतिशत से अधिक) का उच्चतम हिस्सा मिल रहा है। हमारे किसान को उनके दूध की सबसे अधिक कीमत मिल रही है। लेकिन इस समझौते पर हस्ताक्षर के बाद न्यूजीलैंड से सस्ते आयातित दूध पाउडर के कारण किसानों से दूध की खरीद मूल्य में कमी आएगी। आज किसान को सहकारी और यहां तक कि अन्य निजी प्रोसेसरों से भी लगभग 28 से 30 रुपए प्रति लीटर दूध का भाव मिलता है। और ऐसे में यदि आइसीईपी के माध्यम से दूध के आयात की अनुमति दी जाती है तो किसानों के लिए खरीद मूल्य में भारी कमी आएगी। इससे लगभग पांच करोड़ ग्रामीण लोगों को अपनी आजीविका खोनी पड़ सकती है। क्योंकि वे आकस्मिक ही डेयरी व्यावसाय छोड़ने के लिए मजबूर होंगे।
क्या डेयरी उद्योग के खतरे में पड़ने से अन्य सेक्टरों पर भी असर होगा?
यदि भारत इस समझौते पर हस्ताक्षर करता है तो स्वतंत्रता के बाद यह उसका सबसे बड़ा आत्मघाती कदम होगा। यह समझने वाली बात है यदि डेयरी उद्योग खतरे में आता है तो इससे हमारी खाद्य सुरक्षा भी खतरे में पड़ जाएगी। हम खाद्य तेलों की तरह डेयरी उत्पादों के आयातों पर निर्भर हो जाएंगे।
क्या इस समझौते से महिला सशक्तिकरण पर भी किसी प्रकार असर होगा?
जी हां, आपको मालूम होना चाहिए डेयरी उद्योग अधिकांशत: महिलाओं द्वारा ही संचालित किया जाता है। डेयरी पर कुप्रभाव महिलाओं के सशक्तिकराण के सपने को भी चकनाचूर कर देगा।
इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं करने पर भविष्य में डेयरी उद्योग और तेजी से बढ़ेगा?
इस समय में भारत में डेयरी उद्योग 100 अरब अमेरिका डॉलर का है। और यदि सरकार की नीति ग्रामीण दूध उत्पादकों के प्रति सहयोगात्मक बनी रही तो अगले दशक में इस आकार को दोगुना करने का लक्ष्य है। वास्तव में दूध, किसानों की सबसे बड़ी (150 मिलियन मीट्रिक टन) कृषि उपज है।
क्या इस समझौते के बाद देश के ग्रामीण इलाकों में किसी प्रकार की अशांति फैल सकती है?
जी हां, इस पर हस्ताक्षर के बाद ग्रामीण इलाकों में चूंकि आजीविका प्रभावित होगी, ऐसे में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है।