पवन कुमार माहौर
’प्रकृति में उपस्थित वस्तुओं के क्रमबद्ध अध्ययन से ज्ञान प्राप्त करने और उस ज्ञान के आधार पर वस्तु की प्रकृति और व्यवहार जैसे गुणों का पता लगाने को ही विज्ञान कहते है।’’
परन्तु मनुष्य से स्वार्थपूर्ति के लिये विज्ञान को अपने हिसाब से परिभाषित करता रहा है। जो भी कारक एवं तत्व या पदार्थ मनुष्य के लिये हितकारी है वे ही विज्ञान के तत्व मान लिए गए है। यह हम भली भांति जानते है कि जब भी कोई नई तकनीक/जानकारी का आगमन होता है, तब पुरानी तकनीक में खामियाँ मानकर उनका गमन कर दिया जाता है। इसी प्रकार भेड़ पालन, जो कि पशु पालन का एक महत्वपूर्ण घटक है, उसमें भी यही हुआ है।
ऊन के विकल्प विज्ञान द्वारा पैदा करने के उपरान्त ऊन हेतु भेड़ों की उपयोगिता कम हो गयी है। भारत में अक्सर ये माना जाता है कि भेड़ पालन मुख्यतः कम वर्षा वाले क्षेत्रों में ही कर सकते है अथवा जहाँ माँस की अधिक आवश्यकता होती है, वहाँ ही किया जाता है तथा यह भी माना जाता है कि भेड़ पालन समाज विशेष के लोगों द्वारा ही किया जाता है।
जिस प्रकार लोगों के मन में सुअर पालन के प्रति धारणा बनी हुई है उसी प्रकार की धारणा भेड़ पालन के प्रति भी है तथा यह मान लिया जाता है कि भेड़ पालन तो भारत में निम्न आय वर्ग के लोगों की आजीविका का साधन मात्र है। भेड़ पालन भारतीय ग्रामीण जीवन का अभिन्न अंग है। लाखों परिवार अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु इनका पालन करते है।
भेड़ अपने कई गुणों के कारण कई पशुओं से उत्तम है। ये सिंचाई रहित, कम उपजाऊ, उबड़-खाबड़ भूमि वाले, नहीं के बराबर घास वाले, पानी की बहुत कमी वाले क्षेत्रों तथा शुष्क एवं अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में अपना जीवन व्यतित कर सकती है। यह पर्वतीय और अधिक ठंडे क्षेत्रों में भी आसानी से पाली जा सकती है।
भेड़ पालन प्राचीन समय से ही चलता आ रहा है। सर्वप्रथम भेड़ पालन ग्रामीणों की अपनी आवश्यकताओं के आधार पर किया जाता था जिससे वे अपनी घरेलु आवश्यकताओं एवं आजीविका को सही तरिके से चला सके। वर्तमान समय के साथ समाज में तकनीकी, सामाजिक, आर्थिक एवं शिक्षा के मुलभूत स्तरों में बदलाव आने के कारण भेड़ पालन व्यवसाय में भी बदलाव की स्थिति देखी गयी है।
ग्रामीण परिवेश में पहले भेड़ पालन जाति वर्ग विशेष होकर का होने के साथ ही निम्न आय वर्ग वाले ग्रामीणों की आजीविका का मुख्य स्त्रोत था। यह व्यवसाय अब भूमिहिन व आर्थिक रूप से कमजोर व्यक्तियों का व्यवसाय के रूप जाना जाने लगा है। लोगों का इस व्यवसाय के प्रति आर्थिक स्थिति सुदृढ़ करने में योगदान कम होने की धारणा बन गयी है।
भेड़-बकरी पालन करने वाले लोगों को शिक्षा, सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति के रूप से पिछड़े हुए समुह के रूप में मानने लगे है साथ ही उनकी प्रतिष्ठा भी कम मानी जाती है। जिसकी वजह से उनके बच्चों के शदी-विवाह में भी समस्या आने लगी है। वर्तमान समय में युवा पीढ़ी भेड़-बकरी में कम रूचि रखने लगे है। साथ ही
उनके माता-पिता भी नहीं चाहते कि उनका बच्चा भेड़-बकरी पालन करे। क्योंकि इस व्यवसाय को समाज के लोगो द्वारा एक नकारा हुआ मानते है जबकि आर्थिक दृष्टि से भेड़-बकरी पालन व्यवसाय ग्रामीण लोगों की आजीविका में महत्वपूर्ण योगदान रखना है।
भेड़ पालकों की भेड़ पालन से सम्बन्धित धारणाएं और समस्याएं इस प्रकार हैःं
1. आधुनिक कृषि - आधुनिक कृषि में पशुपालन को कम स्थान प्राप्त है। इसके द्वारा पशुपालन को अत्यधिक क्षति पहुंचाई है, खासकर भेड़ पालन को। क्योंकि जिन स्थानों पर पूर्व में चरागाह, वन क्षेत्र, जलीय स्त्रोत हुआ करते थे, उन स्थानों को भी मानव ने समतल तथा कृषि के अनुरूप बनाकर तथा आधुनिक कृषि तकनीकों को अपनाकर समाप्त कर दिया है तथा उन स्थानों पर भी खेती की जाने लगी है।
आधुनिक मेकेनिकल इंजीनियरिंग तकनीकों का विकास होने से पशुओं के लिये चराई के लिये निश्चित किये गये स्थान समाप्त होते जा रहे है। आधुनिक कृषि में पशुचारे के उत्पादन पर बहुत कम ध्यान दिया जाता है क्योंकि पशुचारे का मूल्य फसल उत्पादों की तुलना में कम होता है। खेतों की फेंसिंग जो कि ज्यादातर कंटीले तारों या पक्की दिवारो द्वारा की जाती है, इससे भी भेड़ों को चारा की प्राप्ति में बाधाएं आती है।
2. विकसित अद्योसंरचना- आधुनिक समय में हाई वे, केनॉल, रियल स्टेट का विकास, शहरीकरण आदि के लिये अधिक जमीन की आवश्यकता पड़ रही है। जिससे पूर्ति के लिये कृषि भूमि के साथ-साथ चरागाह भूमि का क्षेत्रफल भी कम किया जा रहा है।
3. चरागाह की विलुप्ति- समय के साथ-साथ धीरे-धीरे बचे हुये चरागाहो का भी विनाश होता जा रहा है क्योंकि लोगों की आवश्यकताऐं बढ़ गई है। लोगो के द्वारा चरागाह भूमि पर कब्जा, अवैध खेती, वनस्पति विनाश के कारण चरागाह धीरे-धीरे समाप्त हो रहे है।
4. लोगों के मन से परोपकार की भावना का विलोपन- वर्तमान समय में मानव के स्वार्थी होने के कारण परोपकारी भावना विलोपित होती जा रही है। भूतकाल में लोग अपना पेट भरने के साथ-साथ पशु पक्षियों के लिये भी दाना-पानी की व्यवस्था करते थे। पशुओं के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि छोड़ी जाती थी तथा पशु पेयजल के लिये भी स्थान चिन्हित किये जाते थे। अब चरागाह एवं पशु पेयजल की कमी होने के कारण भेड़ों की जीवन के संचालन के लिये परिस्थितियां बदल गई है।
5. भारतीय शिक्षा व्यवस्था- वर्तमान समय में भारतीय शिक्षा व्यवस्था ऐसी है कि स्कूली शिक्षा में आजीविका पूर्ति करने वाले व्यवसायों के बारे में कूछ भी नहीं पढ़ाया जाता है। जब तक व्यक्ति 12वीं उत्तीर्ण करता है तब तक वयस्क हो जाता है तथा उसे अपनी एवं परिवार की आजीविका की पूर्ति की जा सके, इसके लिए न तो व्यवसाय स्थापित करने का ज्ञान होता है और न ही दक्षता होती है तथा इसके साथ ही रोजगार प्रारंभ करने के लिये वित्त व्यवस्था भी नहीं होती है। इसी प्रकार पढ़े लिखे व्यक्ति को वयस्क होने तक व्यवहारिक जानकारी भी नहीं होती है।
6. भेड़ पालन से व्यक्ति की आजीविका में अपूर्ण भागीदारी- पूर्ण रूप से भेड़ पालन पर निर्भर रहने वाले व्यक्ति की आजीविका में भेड़ पालन से अपूर्ण भागीदारी होती है। क्योंकि व्यक्ति के पास यदि खेती की जमीन नहीं है तथा आजीविका का अन्य स्त्रोत जैसे मजदूरी, अन्य व्यवसाय आदि नहीं है तो केवल भेड़ पालन पर निर्भर रहकर व्यक्ति की आजीविका की पूर्ति में कठिनाई आती है।
भारत में औसतन प्रतिवर्ष एक भेड़ से लगभग 900 ग्राम ऊन प्राप्त होती थी व राजस्थान में पाली जाने वाली भेड़ों से औसतन प्रतिवर्ष लगभग 1200 ग्राम प्रतिवर्ष भेड़ ऊन प्राप्त होती थी अधिकतर भारतीय ऊन मोटे किस्म की होती है। ऊन की माँग एवं पूर्ति के आधार पर भेड़ पालकों को ऊन के उचित दाम मिलते थे साथ ही माँस, खाल एवं मिंगनी की कीमत भी अच्छी मिल जाती थी जिसकी वजह से यह व्यवसाय और अधिक प्रचलन में हो गया था।
भारत वर्ष के वर्तमान परिदृश्य में इस व्यवसाय की स्थिति भी बदलने लगी है। ऊन के कई विकल्प आने की वजह से इसके दाम काफी कम मिलने लगे या ऊन उत्पादन अब भेड़ पालकों के लिए लाभ का सौदा नहीं रहा है। गाँवों में भेड़ पालकों की स्थिति यह हो गई कि वे अपने भेड़ों की ऊन, ऊन कतरने वाले की कतरन के काम के आधार पर ही देने के लिए तैयार हो रहे हैं।
7. भारतीय जनसंख्या का शाकाहारी होना- अधिकतर भारतीय लोगो के खोने की प्रवृत्ति शाकाहारी भोजन की ओर आकृष्ट होती है क्योंकि उनके धार्मिक कारण तथा पशु के प्रति दया भाव उन्हें ऐसा करने को प्रेरित करते है तथा भेड़ माँस के प्रति तो कम हीे लोग आकर्षित हो पाते है।
8. पशु पेयजल के स्रोतो पर मानवीय कब्जा - ऐसा होने से जल स्त्रोतो को हानि पहुँच रही है तथा जल स्त्रोतो के आस-पास उगने वाली वनस्पति भी नष्ट होने लगी है। जल स्त्रोतो पर कब्जा होने से पशु असमय काल के ग्रास बन जाते है।
9. भेड़़ पालन के प्रति जानकारी का अभाव - वर्तमान से पहले भेड़ पालन की जानकारी जो आधारीय होती है वह एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुँचायी जाती थी। किन्तु वर्तमान पीढ़ी में भेड़ पालन के जानकारी से वंचित हो रही है तथा वह जानकारी ग्रहण करने में कम रूचि ले रही है तथा शासन स्तर पर संचालित विभिन्न स्तर के संस्थापनों व युवा पीढ़ी के मध्य समन्वय का अभाव है। युवा पीढ़ी यह भी नहीं जानती है कि भेड़ पालन भी एक अच्छा व्यवसाय हो सकता है।
10. भेड़ पालन को क्षेत्र विशेष का मान लेना- भारत में भेड़ पालन वाले राज्यों में तमिलनाडू, राजस्थान, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, हिमाचल प्रदेश समेत कम ही राज्य आते है। अतः यह मान लिया गया है कि भेड़ पालन क्षेत्र विशेष में ही होता है तथा भेड़ पालन क्षेत्र विस्तार एवं प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। भारत के अन्य राज्यों में भी भेड़ पालन की अत्यधिक संभावनाऐं है। क्योंकि अधिकतर राज्यों में पर्याप्त चराई के स्थान, पानी के स्त्रोत उपलब्ध है। यदि समुचित प्रचार-प्रसार हो तो भेड़ पालन क्षेत्र में वृद्धि सम्भव है।
11. भेड़ मांस के प्रति घृणा का भाव - भारतीय जनमानस में यह धारणा है कि भेड़ का माँस अपोषकीय एवं अरूचिकर होता है। इस प्रकार की धारणा के कारण भेड़ माँस विक्रय में कठिनाईयां आती है।
12. आधुनिक वस्त्र उत्पादक सामग्री व तकनीक का विकास- ऐसा होने से भेड़ ऊन की माँग में कमी आई है। जिससे भेड़ पालन पर भी असर पड़ा है। सिंथेटिक वूलन कारीगर भेड़ ऊन के विकल्प बनते जा रहे है।
13. बड़े दुग्ध उत्पादक पशुओं कोे पालन की ओर आकर्षण- गांवों में विकास की लहर जैसे-जैसे बढ़ने लगी और लोगो की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होने व अन्य संसाधनों की उपलब्धता के कारण अधितर किसान भेड़ पालन व्यवसाय को छोड़कर गाय एवं भैंस पालन की ओर अग्रसर होते जा रहे हैं। किसानों का मानना है कि भैंस एवं गाय पालन व्यवसाय से नित्य व अधिक आमदनी प्राप्त होती है जिससे रोजमर्रा की आवश्यकताओं की पूर्ति कर सकते है और यही मुख्य कारण है जिसके कारण भारत में दुग्ध उत्पादन बढ़ता जा रहा है और विश्व में भारत का दुग्ध उत्पादन में प्रथम स्थान है। किसानों की आर्थिक स्थिति मजबुत होने से उनमें जोखिम बढ़ाने की क्षमता भी बढ़ जाती है।
14. पूंजीपतियों की भेड़ पालन के प्रति उदासीनता
15. मौसमी बीमारियों एवं महामारी का प्रकोप
16. चिकित्सा व्यवस्था का अभाव
17. भारत में रेचिंग प्रणाली का अभाव
18. चरागाह स्थलों पर वाटर शेड क्रियाओं का अभाव
19. वनों का विनाश
20. ग्लोबल वार्मिंग
21. भू समतलीकरण
22. जल धाराओं का अवरोधन
23. भारतीय कृषि फार्मिंग सिस्टम की अनदेखी
24. चरागाह एवं वनों की अनियमित चराई/कटाई
25. भेड़ पालकों में निष्क्रमण/घुमंतु प्रथा का समाप्त होना
26. भारतीय परिवारों में सामंजस्य का अभाव
27. सामाजिक पृष्ठभूमि में बदलाव
28. विपणन में मध्यस्थों की अधिकता
29. भेड़ पालकों में संघटन का अभाव
30. भेड़ मांस उत्पादों का पर्याप्त मूल्य नहीं मिलना
31. भेड़ मांस निर्यात के मानकों का अभाव
32. फसल अपशिष्टों को जलाना
(लेखक भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के केन्द्रीय भेड़ एवं ऊन अनुसंधान संस्थान, अविकानगर से जुड़े हैं)