प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना: घाटे में सरकारी कंपनियां, प्राइवेट को 70 प्रतिशत तक का मुनाफा

कृषि पर संससदीय स्थायी समिति ने कहा कि मुनाफा होने पर बीमा कंपनियां ग्रामीण विकास के लिए सीएसआर फंड बनाएं
रेड रॉट रोग का शिकार गन्ना। फोटो: राजू सजवान
रेड रॉट रोग का शिकार गन्ना। फोटो: राजू सजवान
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प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों को फायदा हुआ हो या नहीं, लेकिन बीमा कंपनियों के लिए यह योजना फायदे का सौदा साबित हुई। पांच साल में इन कंपनियों को  प्रीमियम के तौर पर 1,26,521 करोड़ रुपए जमा कराए गए, जबकि कंपनियों ने नुकसान के एवज में 87,320 करोड़ रुपए का भुगतान किया। यानी कंपनियों ने लगभग 69 फीसदी मुआवजे का भुगतान किया और लगभग 31 फीसदी बचत की।

कृषि पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में यह आंकड़े दिए गए हैं। समिति को यह आंकड़े कृषि एवं कृषक कल्याण विभाग ने उपलब्ध कराए हैं। आंकड़े बताते हैं कि इन पांच सालों में 7.25 करोड़ किसानों को मुआवजा दिया गया है।

समिति की इस रिपोर्ट में दिए गए गए आंकड़े अप्रैल 2016 से लेकर 14 दिसंबर 2020 के बीच के हैं। इस दौरान किसानों ने फसल बीमा के लिए 26.99 करोड़ आवदेन जमा कराए और 23.54 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्रफल का बीमा कराया।

चूंकि किसानों को कुल प्रीमियम का 1.5 प्रतिशत (खरीफ सीजन) और 2 प्रतिशत (रबी सीजन) ही जमा कराना होता है। बाकी प्रीमियम केंद्र व राज्य सरकारें मिल कर जमा कराती हैं। इसलिए इन पांच साल के दौरान किसानों ने 19,913 करोड़ रुपए जमा कराए, जबकि कुल प्रीमियम के तौर पर 1,26,521 करोड़ रुपए जमा कराए गए।

आंकड़े बताते हैं कि फसल का नुकसान होने पर किसानों ने 92,954 करोड़ रुपए का क्लेम किया था, लेकिन उन्हें भुगतान 87,320 करोड़ रुपए का किया गया। यानी दिसंबर 2020 तक किसानों को क्लेम का 5,724 करोड़ रुपए नहीं दिया गया था।

अब सवाल उठता है कि इस योजना का किसने ज्यादा फायदा उठाया? सरकारी बीमा कंपनियों को अधिक फायदा हुआ या प्राइवेट कंपनियां आगे रही?

घाटे में सरकारी कंपनियां

रिपोर्ट के आंकड़े बताते हैं कि 2016-17 से 2019-20 के दौरान पांच में से दो सरकारी बीमा कंपनियों ने जितना प्रीमियम वसूला, उससे ज्यादा क्लेम का भुगतान किया। यानी कंपनियां घाटे में रहीं। जबकि पांचों कंपनियों के कुल बिजनेस की बात की जाए तो प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से इन कंपनियों को 10.86 फीसदी ही फायदा हुआ।

स्थायी समिति की यह रिपोर्ट बताती है कि कुल फसल बीमा बिजनेस में पांचों सरकारी कंपनियों की हिस्सेदारी 50 फीसदी है। इसमें भी सबसे बड़ी हिस्सेदारी एग्रीकल्चर इंश्योरेंस कंपनी ऑफ इंडिया (एआईसी) लिमिटेड की है। एआईसी के अलावा नेशनल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड, यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड और न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी लिमिटेड सरकारी कंपनियां हैं।

इस बिजनेस में सरकारी कंपनी के तौर पर केवल एआईसी ही ठीकठाक स्थिति में है। इस कंपनी ने चार साल में 32,429.24 करोड़ रुपए का प्रीमियम हासिल किया, जबकि 26,874.6 करोड़ रुपए के क्लेम का भुगतान किया। यानी एआईसी को लगभग 17.12 फीसदी का फायदा हुआ।

न्यू इंडिया एश्योरेंस और ओरियंटल इंश्योरेंस के लिए प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना घाटे का सौदा रही। न्यू इंडिया एश्योरेंस कंपनी को चार साल के दौरान 4660.31 करोड़ रुपए का प्रीमियम मिला, जबकि उसने 5145.22 करोड़ रुपए का भुगतान किया। इसी तरह ओरियंल इंश्योरेंस को 3893.16 करोड़ रुपए का प्रीमियम मिला, जबकि कंपनी ने क्लेम के रूप में 4305.66 करोड़ रुपए का भुगतान किया। नेशनल इंश्योरेंस ने 2574.34 करोड़ रुपए के प्रीमियम के बदले 2514.77 करोड़ रुपए का भुगतान किया। तीन साल तक यह कंपनी भी घाटे में रही।

मुनाफे में हैं निजी कंपनियों

स्थायी समिति की रिपोर्ट में दिए गए आंकड़े बताते हैं कि निजी कंपनयों को चार साल के दौरान 30 प्रतिशत से अधिक फायदा हुआ। कई कंपनियों ने 60 से 70 फीसदी तक मुनाफा कमाया। भारती एएक्सए 2017-18 में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में शामिल हुई और तीन साल के दौरान कंपनी ने 1575.42 करोड़ रुपए का प्रीमियम वसूला, जबकि क्लेम का भुगतान 438.80 करोड़ रुपए किया। यानी कंपनी 72.14 फीसदी मुनाफे में है। रिलायंस जीआईसी लिमिटेड ने चार साल में 6150.22 करोड़ रुपया प्रीमियम के तौर पर वसूला, जबकि किसानों को 2580.56 करोड़ रुपए का भुगतान किया। यानी कंपनी को इस योजना से लगभग 59 प्रतिशत का मुनाफा हुआ। इसी तरह फ्यूचर जनरली इंडिया इंश्योरेंस को 60.91 प्रतिशत, इफ्को को 52 फीसदी, एचडीएफसी एग्रो को लगभग 32 फीसदी का मुनाफा हुआ।

दिलचस्प बात यह है कि जिन प्राइवेट कंपनियों को नुकसान हुआ या कम मुनाफा हुआ, उन्होंने इस योजना से अपने हाथ खींच लिए। श्रीराम जीआईसी लिमिटेड ने 2016-19 में 170.95 करोड़ रुपए प्रीमियम लिया था, लेकिन जब उसे क्लेम के तौर पर 256.95 करोड़ रुपए का भुगतान करना पड़ा तो उसके बाद कंपनी ने फसल बीमा करना बंद ही कर दिया।

आईसीआईसीआई लुम्बार्ड को जब मुनाफा कम हुआ तो उसने भी एक साल बाद से प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से हाथ खींच लिए। कंपनी ने 2016-17 में 2177.93 करोड़ रुपए प्रीमियम के बदले 1927.65 करोड़ रुपए क्लेम का भुगतान किया और उसके बाद कंपनी ने फसल बीमा करना बंद कर दिया। टाटा टीआईजी और चोला मंडलम ने भी मुनाफा कम होने पर 2018-19 के बाद प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में भाग नहीं लिया।

कितना है कंपनियों का खर्च 

कृषि एवं कृशक कल्याण विभाग ने स्थायी समिति को जानकारी दी कि कंपनियां का प्रशासनिक खर्च और दोबारा बीमा (रिइंश्योरेंस) का खर्च कंपनियां उठाती हैं। यह खर्च तकरीबन 10 से 12 फीसदी होता है। 

दिलचस्प बात यह है कि जिन सरकारी कंपनियों को इस स्कीम से फायदा हो भी रहा है, वह 10 फीसदी के आसपास ही है। जबकि 10 से 12 फीसदी बचत करने वाली प्राइवेट कंपनियां अपना बिजनेस समेट चुकी हैं।  

सीएसआर पर खर्च करें कंपनियां

संसद की स्थायी समिति ने कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय से कहा कि जो कंपनियां प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से मुनाफा कमा रही हैं, उनसे कहा जाए कि वे कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व (सीएसआर) के तहत जिन जिलों से यह मुनाफा कमा रही हैं, उन जिलों में ग्रामीण क्षेत्र के विकास पर एक तय रकम खर्च करें। हालांकि कृषि विभाग ने तर्क दिया कि ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत होने वाला मुनाफे का सीएसआर फंड बनाया जाए। विभाग ने यह भी तर्क दिया कि कई बार फसलों का नुकसान अधिक होने के कारण प्रीमियम से काफी अधिक क्लेम देना पड़ जाता है, इसलिए मुनाफे की गणना करना सही नहीं है।

राज्यों ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से मुंह मोड़ा

खरीफ 2019 में जहां 4.40 करोड़ किसानों ने आवेदन किया था, 2020 में घटकर 4.27 करोड़ रह गया, क्योंकि राज्य आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, झारखंड, गुजरात ने खरीफ सीजन 2020 में स्कीम में शामिल होने से इंकार कर दिया। स्थायी समिति ने सरकार से कहा है कि वे राज्यों से बात करके यह जानने की कोशिश करे कि आखिर उन्होंने इस योजना से मुंह क्यों मोड़ा?

कंपनियों के कार्यालय तक नहीं

योजना के तहत यह प्रावधान किया गया था कि राज्य जब किसी बीमा कंपनी को चयनित करे तो कम से कम तीन साल के लिए अनुबंध करे। इसका आशय था कि कंपनी से लंबे समय के लिए संबंध स्थापित हों। स्थायी समिति ने कहा कि इस तरह की शिकायत मिल रही हैं कि कंपनियों के कार्यालय नहीं हैं और किसानों की बीमा कंपनियों तक पहुंच नहीं है। स्थायी समिति के समक्ष अधिकारियों ने माना कि कंपनियों को अपने कार्यालय खोल लेने चाहिए और वे इस बारे में बीमा कंपनियों से कहेंगे कि वे न केवल अपने कार्यालय खोलें, बल्कि पोर्टल में भी कार्यालय के स्थान और कार्यालय के अधिकारियों की जानकारी सार्वजनिक करें।

बीमा कंपनियों पर जुर्माना

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत प्रावधान किया गया है कि यदि तय समय के भीतर किसानों को क्लेम नहीं मिलता है, तो बीमा कंपनियों को 12 फीसदी ब्याज के रूप में जुर्माना देना होगा। स्थायी समिति ने यह जानना चाहा कि क्या किसी बीमा कंपनी पर जुर्माना लगाया गया तो विभाग के अधिकारियों ने बताया कि रबी सीजन 2017-18 के लिए चोला एमएस जनरल इंश्योरेंस कंपनी, आईसीआईसीआई लुम्बार्ड जनरल इंश्योरेंस, न्यू इंडियन एश्योरेंस कंपनी और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया जनरल इंश्योरेंस पर लगभग  22 करोड़ 17 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया।

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