हरियाणा कृषि विभाग की लापरवाही से सीधी बिजाई धान क्षेत्र में कमी की आशंका
वर्ष 2022-23 में हरियाणा में धान की खेती लगभग 16 लाख हेक्टेयर भूमि पर की गई, जिससे 59 लाख टन उत्पादन प्राप्त हुआ। हरियाणा के कृषि मंत्री ने 6 अप्रैल 2025 को मीडिया को बताया कि वर्ष 2024 में 50,540 किसानों ने 1.80 लाख एकड़ भूमि पर भूजल एवं संसाधन संरक्षण आधारित "सीधी बिजाई धान" (डीएसआर) तकनीक को अपनाया।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 1968 तक हरियाणा के किसान पारंपरिक रूप से पर्यावरण अनुकूल सीधी बिजाई विधि से ही धान की खेती करते थे। लेकिन हरित क्रांति के दौर में केंद्र सरकार की नीतियों के चलते भूजल का इस्तेमाल करने वाली रोपाई विधि को जबरन प्रोत्साहित किया गया, जिससे हरियाणा में गंभीर भूजल संकट उत्पन्न हो गया। परिणामस्वरूप, राज्य के अधिकांश ब्लॉक आज भूजल संकटग्रस्त होकर 'ग्रे-जोन' में आ चुके हैं।
इस संकट से निपटने के लिए अब नीति-निर्माता पुनः पारंपरिक एवं टिकाऊ "सीधी बिजाई" विधि को बढ़ावा दे रहे हैं। इस तकनीक से लगभग 30 प्रतिशत भूजल, लागत, बिजली, ऊर्जा व श्रम की बचत होती है। साथ ही यह विधि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को भी कम करती है, और रोपाई विधि की तुलना में फसल 10-15 दिन पहले पकती है, जिससे पराली प्रबंधन में भी मदद मिलती है।
हरियाणा सरकार ने खरीफ 2025 के लिए 4 लाख एकड़ भूमि (कुल धान क्षेत्र का लगभग 10%) पर सीधी बिजाई का लक्ष्य रखा है, जिसके लिए 4,500 रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि देने की घोषणा की गई है। पराली प्रबंधन हेतु भी 1,200 रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन देने की बात कही गई है।
किन्तु दुर्भाग्यवश, स्वयं कृषि विभाग की जटिल, विलंबकारी और दोषपूर्ण कार्यशैली सरकार की इन महत्वाकांक्षी योजनाओं को निष्प्रभावी बनाने में लगी है। सीधी बिजाई धान की बुआई का सर्वोत्तम समय 20 मई से 5 जून तक माना जाता है, परंतु विभाग ने योजना के प्रचार हेतु विज्ञापन 7 जून को प्रकाशित करवाए, जब बुआई का समय समाप्त हो चुका था। यह कर्तव्य के प्रति गंभीर लापरवाही का मामला है, जिसकी उच्च स्तरीय जांच आवश्यक है।
बताया जाता है कि पिछले वर्ष इन योजनाओं को अपनाने वाले किसानों के लगभग 200 करोड़ रुपये की राशि कृषि विभाग की जटिल प्रक्रियाओं के चलते अब तक लंबित है। इनमें सीधी बिजाई योजना के लगभग 55 करोड़ रुपये तथा पराली प्रबंधन योजना के लगभग 145 करोड़ रुपये शामिल हैं। इससे किसानों का विश्वास सरकारी योजनाओं से घट रहा है, और इसी कारण इस वर्ष इन योजनाओं में किसानों की भागीदारी में भारी गिरावट देखी जा रही है। परिणामस्वरूप, निर्धारित लक्ष्य (4 लाख एकड़) प्राप्त होने की संभावना बेहद कम है।
अतः सरकार को चाहिए कि वह भूजल संरक्षण योजनाओं को प्रभावी बनाने के लिए कृषि विभाग की कार्यशैली को सरल, पारदर्शी और किसान हितैषी बनाए। साथ ही, भूजल अपव्ययी रोपाई विधि पर पूर्ण प्रतिबंध लगाकर, पर्यावरण हितैषी "सीधी बिजाई धान" को व्यापक रूप से प्रोत्साहित करे।
पराली प्रदूषण की समस्या के समाधान हेतु सभी कंबाइन हार्वेस्टरों पर सुपर स्ट्रॉ मैनेजमेंट सिस्टम (एसएमएस) को कानूनी रूप से अनिवार्य किया जाए, जिससे किसान "मोल्ड बोर्ड हल" के माध्यम से पराली को भूमि में दबाकर जैविक खाद तैयार कर सकें। यह उपाय पराली प्रदूषण रोकने और भूमि की उर्वरता बनाए रखने के लिए अत्यंत प्रभावशाली सिद्ध हो सकता है।