हिमाचल में प्राकृतिक खेती की उपज खरीदने की योजना तैयार

कृषि-बागवानी के साथ डेयरी, मांस, मछली, मेडिसिनल प्लांट और जंगलों से मिलने वाले सभी तरह के खाद्यान्नों को उचित मूल्य और बाजार उपलब्ध करवाने की तैयारी
हिमाचल के किन्नौर जिले में प्राकृतिक खेती करने वाली महिला किसान। फोटो : रोहित पराशर
हिमाचल के किन्नौर जिले में प्राकृतिक खेती करने वाली महिला किसान। फोटो : रोहित पराशर
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हिमाचल प्रदेश में प्राकृतिक खेती विधि के तहत पैदा हो रहे खाद्यान्नों की खरीद के लिए एक सतत खाद्य प्रणाली (सस्टेनेबल फूड सिस्टम) को विकसित किया जा रहा है। इसका मकसद उगाए जा रहे उत्पाद को खेत से उपभोक्ता की प्लेट तक पहुंचाने के लिए एक पारदर्शी सिस्टम तैयार करना है। 

किसान को यह जानकारी रहेगी कि उसके खेत का उत्पाद कौन से बाजार में किस उपभोक्ता के पास किस दाम पर जा रहा है। वहीं दूसरी ओर जो उपभोक्ता उत्पाद को खरीद रहा है, उसे यह पूरी जानकारी रहेगी कि जो उत्पाद उसने खरीदा है, वह कौन से किसान के पास से आया है।

इस खाद्य प्रणाली को अगले 30 वर्षों की खाद्य जरूरत को ध्यान में रखते हुए तैयार किया जा रहा है। इस प्रणाली में सबसे पहले हिमाचल के स्थानीय बाजार की जरूरत को पूरा किया जाएगा, ताकि बाहरी राज्यों से आयात होने वाले अनाज, फल और सब्जियों पर अंकुश लग सके। 

इसके बाद सरप्लस उत्पाद को बाहरी राज्य की मंडियों में भेजा जाएगा। इसके लिए किसान संघों का निर्माण किया जाएगा और इन किसान संघों के क्षमता विकास और उनकी देखरेख के लिए राज्य स्तर पर एक माॅनिटरिंग कमेटी होगी, जो किसान संघों और किसानों की निगरानी करेगी।

गौरतलब है कि साढे़ तीन साल पहले हिमाचल में शुरू हुई प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के तहत प्राकृतिक खेती विधि के तहत अभी तक 1 लाख 33 हजार किसान जुड़े चुके हैं।

इन किसानों के उत्पादों की मार्केटिंग (बिक्री) के कार्यान्वयन की जिम्मेवारी राज्य परियोजना कार्यान्वयन इकाई के पास है, जो प्राकृतिक खेती उत्पादों के साथ-साथ प्राकृतिक तरीके के सभी प्रकार के खाद्यान्नों जिनमें डेयरी उत्पादों, मांस, मच्छली, वनों से मिलने वाली खाद्य वस्तुओं को एक सिस्टम के तहत लाकर सस्टेनेबल फूड सिस्टम कर रही है।

इस सिस्टम में हिमाचल के चारों जलवायु क्षेत्रों में पैदा होने वाले अनाजों, सब्जियों और फलों का पहले सर्वे किया जाएगा। इसके बाद एक स्थान में पैदा होने वाले उत्पाद को पहले स्थानीय बाजार और इसके बाद दूसरे जिलों में भेजा जाएगा। इसके अलावा हिमाचल को आत्मनिर्भर बनाने के लिए एक जिले या एक स्थान में उगने वाली फल सब्जियों और अनाजों को दूसरे जिले में जरूरत के हिसाब से बेचने की व्यवस्था को तैयार किया जाएगा।

पांच सिद्धांतों पर होगा काम

इस खाद्य प्रणाली में पांच सिंद्वातों पर काम होगा। सबसे पहले किसानों के उत्पादन और आय में बढ़ोतरी कर सरप्लस उत्पादन को बाजार में ले जाने पर बल दिया जाएगा। इसके अलावा किसानों को एक फसलीय प्रणाली से बहुफसलिय प्रणाली की तरफ ले जाया जाएगा।

इसके लिए छोटे व मंझोले किसानों को किसान उत्पाद संघों और कंपनियों के माध्यम से बाजार उपल्बध करवाया जाएगा। किसानों को  एफपीओ के माध्यम से उचित मूल्य उपलब्ध करवाया जाएगा।

इस खाद्य प्रणाली के सिस्टम को तैयार कर रहे प्राकृतिक खेती खुशहाल किसान योजना के कार्यकारी निदेशक प्रो राजेश्वर सिंह चंदेल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इस सिस्टम में किसानों और उपभोक्ताओं के बीच भरोसा कायम करने के लिए किसानों का निशुल्क पंजीकरण किया जाएगा।

विश्व में सतत खाद्य प्रणाली को तैयार करने वाली अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं, एफएओ, इनरा फ्रांस, आईफोम, बायोविजन, जीआईजेड, और एक्सेस लाइवलिहुड के विशेषज्ञों के साथ कई दौर की वार्ता करने के बाद खाद्य प्रणाली का मसौदा तैयार किया गया है। इस खाद्य प्रणाली को एक साल के समय के भीतर लागू करने की तैयारी की जा रही है।

हिमाचल के कृषि सचिव डॉ अजय शर्मा ने डाउन टू अर्थ को बताया कि सरकार का मकसद है कि इसका मकसद कृषि के साथ पशुपालन, मत्सय पालन, मधुमक्खी पालन, भेड़ पालकों, औषधीय पौधों और वनों से मिलने वाले उत्पादों से भी प्रदेश के लोगों को उचित आय सके। 

हाल ही में एक उच्च स्तरीय बैठक बैठक में जीआईजैड इंडिया के नेशनल रिसोर्स मैनेजमेंट और एग्रोइकोलॉजी के निदेशक राजीव अहल ने कहा कि इस योजना से न सिर्फ किसानों का लाभ हो रहा है बल्कि इससे पर्यावरण, कृषि पारिस्थितिकी और जल और उर्जा संरक्षण भी हो रहा है।

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