दुनिया की पांच सबसे बड़ी कीटनाशक बनने वाली कम्पनियां अपनी आय का करीब एक तिहाई हिस्सा हानिकारक कीटनाशकों को बेच कर कमाती हैं। यह केमिकल पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा हैं। चौंका देने वाला सच दो प्रमुख गैर लाभकारी संस्था अनअर्थड एंड पब्लिक आई द्वारा की गयी संयुक्त जांच में सामने आया है। अध्ययन के अनुसार यह कम्पनियां अपने अत्यधिक हानिकारक कीटनाशकों (एचएचपी) को अधिकतर विकासशील देशों में बेच रही हैं। विश्लेषण के अनुसार जहां भारत में इन कम्पनियों द्वारा बेचे गए कुल कीटनाशकों में एचएचपी का हिस्सा करीब 59 फीसदी था जबकि उन्होंने ब्रिटेन में सिर्फ 11 फीसदी एचएचपी की बिक्री की थी।
यह शोध 2018 के टॉप-सेलिंग क्रॉप प्रोटेक्शन प्रोडक्ट्स के विशाल डेटाबेस के विश्लेषण पर आधारित है। जिसमें उन्होने इन कंपनियों द्वारा 43 प्रमुख देशों में बेचे जाने वाले कीटनाशकों का विश्लेषण किया है। जिससे पता चला है कि दुनिया की प्रमुख एग्रोकेमिकल कंपनियों ने अपनी बिक्री का 36 फीसदी हिस्सा अत्याधिक हानिकारक कीटनाशकों को बेच कर कमाया है। इनके अनुसार इन कंपनियों ने वर्ष 2018 में करीब 34,000 करोड़ रुपये के हानिकारक कीटनाशकों की बिक्री की है। यह हानिकारक कीटनाशक इंसानों के लिए तो नुक्सानदेह हैं ही, साथ ही यह जानवरों और इकोसिस्टम पर भी बुरा असर डालते हैं। यह केमिकल इंसानों में कैंसर और उनकी प्रजनन क्षमता को नुकसान पहुंचा सकते हैं। इन एग्रोकेमिकल दिग्गजों में बीएएसएफ, बेयर , कोर्टेवा, एफएमसी और सिन्जेंटा शामिल हैं। यह सभी केमिकल इंडस्ट्री के प्रभावशाली समूह क्रॉपलाइफ इंटरनेशनल का हिस्सा हैं।
भारत में इन कंपनियों के केमिकल्स हानिकारक
अध्ययन के अनुसार इनके द्वारा बेचे जाने वाले कुछ कीटनाशक यूरोपीय बाजारों में प्रतिबंधित हैं क्योंकि वो इंसानों और मधुमक्खियों पर बुरा असर डालते हैं। लेकिन विकासशील देशों में लचर कानूनों के चलते यह कंपनियां आराम से अपने केमिकल्स को बेक रही हैं। यही वजह है कि भारत और ब्राज़ील जैसे देशों में इनकी भारी मात्रा मात्रा बेच दी जाती है। अनुमान है कि भारत में इनके द्वारा बेचे जाने वाले कुल कीटनाशकों में 59 फीसदी कीट्नाशक अत्यधिक हानिकारक की श्रेणी में आते है जबकि ब्राज़ील में 49 फीसदी, चीन में 31 फीसदी, थाईलैंड में 49, अर्जेंटीना में 47 और वियतनाम में 44 फीसदी अत्यधिक हानिकारक श्रेणी के कीटनाशक बेचे जाते हैं। जबकि विकसित और विकासशील देशों के बीच तुलनात्मक रूप से देखें तो इन कंपनियों द्वारा विकासशील देशों में करीब 45 फीसदी अत्यधिक हानिकारक कीटनाशकों की बिक्री की थी। जबकि विकसित देशों में करीब 27 फीसदी एचएचपी की बिक्री की थी।
इस विश्लेषण के अनुसार इन पांच कंपनियों द्वारा बेचे जाने वाले करीब 25 फीसदी कीटनाशक मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं। 10 फीसदी मधुमखियों को नुकसान पहुंचा सकते हैं जबकि इनमे से 4 फीसदी इंसानों के लिए अत्यंत जहरीले होते हैं। गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) और एफएओ द्वारा एचएचपी को अत्यधिक हानिकारक कीटनाशकों के रूप में परिभाषित किया हैं जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए अत्यंत हानिकारक होते हैं। जिसमें पर्यावरणीय खतरों में जल स्रोतों के प्रदूषण, परागण में आने वाली दिक्कतों और पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ने वाले असर जैसी समस्याओं को शामिल किया है। इस खतरे से निपटने के लिए डब्ल्यूएचओ और एफएओ ने न केवल कठोर नियमों की आवश्यकता पर बल दिया है बल्कि उसके क्रियान्वयन पर भी जोर दिया है।
भारत में भी हानिकारक कीटनाशक एक बड़ी समस्या हैं| 2018 में भारत का कीटनाशक बाजार 19,700 करोड़ रुपये आंका गया है जिसके 2024 तक बढ़कर 31,600 करोड़ रुपये का हो जाने का अनुमान लगाया जा रहा है। ऐसे में इन हानिकारक कीटनाशकों की बिक्री एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। जिससे जल्द निपटने की जरुरत है। इसलिए आगामी कीटनाशक प्रबंधन विधेयक 2020 अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि भारत में कृषि काफी हद तक इन कीटनाशकों पर ही निर्भर है, जिसमें बड़ी मात्रा में ऐसे कीटनाशक शामिल हैं जिनका अत्यधिक उपयोग और दुरुपयोग मनुष्यों, जानवरों, जैव-विविधता और पर्यावरण के स्वास्थ्य पर भारी असर डाल रहा है। ऐसे में इन हानिकारक कीटनाशकों के उपयोग पर लगाम कसना जरुरी है। इसके साथ ही जैविक खेती को बढ़ावा देना एक अच्छा विकल्प हो सकता है|