आंध्रप्रदेश के एक गांव के लोग प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। फोटो: सीएसई
आंध्रप्रदेश के एक गांव के लोग प्राकृतिक खेती कर रहे हैं। फोटो: सीएसई

जैविक खेती का सच-4: कुछ ही राज्य ले रहे हैं दिलचस्पी

जैविक और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकारों को आगे आना होगा, लेकिन कुछ राज्यों को छोड़कर ज्यादातर राज्य इनकी अनदेखी कर रही है
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पर्यावरण और स्वास्थ्य पर रासायनिक खेती के गंभीर दुष्प्रभाव को देखते हुए धीरे-धीरे ही सही लेकिन जैविक व प्राकृतिक खेती की तरफ लोगों का झुकाव बढ़ रहा है। यह खेती अपार संभावना ओं का दरवाजा खोलती है। हालांकि भारत में यह खेती अब भी सीमित क्षेत्रफल में ही हो रही है। सरकारों द्वारा अभी काफी कुछ करना बाकी है। अमित खुराना व विनीत कुमार ने जैविक खेती के तमाम पहलुओं की गहन पड़ताल की। पहली कड़ी में आपने पढ़ा, खेती बचाने का एकमात्र रास्ता, लेकिन... । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, सरकार चला रही है कौन से कार्यक्रम। इसके बाद आपने पढ़ा, खामियों से भरे हैं सरकारी कार्यक्रम  । पढ़ें आगे की कड़ी - 


ज्यादातर राज्यों के शुद्ध बोए गए क्षेत्रफल का छोटा प्रतिशत ही जैविक के अंदर आता है। करीब 20 राज्यों में जैविक नीति, एक्ट या योजना है, लेकिन इसके बावजूद जैविक कवरेज का हिस्सा बहुत छोटा है। यह कवरेज भी देश के विभिन्न राज्यों में असमान रूप से फैला है। जैविक क्षेत्रफल का बड़ा हिस्सा चुनिंदा राज्यों में सीमित है, जैसे देश के जैविक क्षेत्रफल का 27 प्रतिशत हिस्सा अकेले मध्य प्रदेश में है। देश का आधा जैविक क्षेत्रफल सबसे ज्यादा जैविक कवरेज वाले 3 राज्यों- मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र में सिमटा है। पूरे देश के जैविक क्षेत्रफल का 80 प्रतिशत हिस्सा चोटी के 10 राज्यों में है। इन राज्यों में भी शुद्ध बोए गए क्षेत्रफल का एक बेहद छोटा हिस्सा ही जैविक है। उदाहरण के तौर पर मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र का क्रमश: 4.9, 2 और 1.6 प्रतिशत हिस्सा ही जैविक है। सिक्किम एकमात्र पूर्ण जैविक राज्य है। 

कुछ अन्य राज्य जैसे मेघालय, मिजोरम, उत्तराखंड, गोवा आदि का 10 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा जैविक है, लेकिन इनमें से गोवा को छोड़कर बाकी सभी राज्य पहाड़ी हैं। राज्य में जल्दी जैविक नीति लाने का मतलब यह कतई नहीं है कि जैविक कवरेज भी ज्यादा होगा। उदाहरण के लिए कर्नाटक 2004 और केरल 2010 में जैविक नीति ले आए थे पर अब भी इन राज्यों का जैविक हिस्सा क्रमश: 1.1 और 2.7 प्रतिशत ही है। वहीं राजस्थान जैसा राज्य जो जैविक नीति 2017 में लाया, लेकिन अपेक्षाकृत अधिक हिस्सा जैविक में बदल दिया है। 2015-16 से 2018-19 तक कुल प्रामाणिक जैविक खाद्य पदार्थों का 96 प्रतिशत हिस्सा अकेले नेशनल प्रोग्राम फॉर ऑर्गेनिक प्रॉडक्शन के अंतर्गत हुआ है और बाकी का 4 प्रतिशत हिस्सा पीजीएस सर्टिफिकेशन के अंतर्गत दर्ज है। कुछ चुनिंदा राज्यों जैसे राजस्थान, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड में अन्य योजनाओं के मुकाबले परंपरागत कृषि विकास योजना का हिस्सा अधिक है। 

हाल में उठाए गए कदम 

छत्तीसगढ़ की गोधन न्याय योजना जैविक खेती और ग्रामीण रोजगार को बढ़ावा देने के उद्देश्य से जुलाई 2020 से लागू की गई है। योजना के सलाहकार प्रदीप शर्मा बताते हैं कि इसके अंतर्गत राज्य सरकार 2 रुपए प्रति किलो के हिसाब से गोबर खरीदेगी और वर्मी कंपोस्ट बनाकर किसानों को 8 रुपए प्रति किलो के हिसाब से उपलब्ध कराएगी। छत्तीसगढ़ की कृषि उत्पादन आयुक्त एम गीता बताती हैं कि सरकार का उद्देश्य आने वाले समय में रासायनिक उर्वरकों की खपत को 40 प्रतिशत तक कम करना है। ओडिशा में कृषि विभाग के मुख्य सचिव गौरभ गर्ग बताते हैं कि सरकार जैविक कृषि पॉलिसी 2018 और ओडिशा मिलेट मिशन 2017 लेकर आई है, जिससे राज्य में रसायन मुक्त खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। वह बताते हैं कि ओडिशा सरकार ने अपने मिलेट कार्यक्रम को बढ़ावा देते हुए जन वितरण प्रणाली से जोड़ा है। साथ ही अन्य पोषण कार्यक्रम जैसे इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विसेस, मिड डे मील और इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट वेलफेयर हॉस्टल्स के साथ जोड़ने की योजना चल रही है। मिलेट कार्यक्रम के अंतर्गत जैविक उत्पादन को प्रोत्साहित किया जा रहा है। 1 सितंबर 2020 से ओडिशा के क्योंझर जिले के सभी 13 ब्लॉक और सुंदरगढ़ जिले के कुछ हिस्से में रागी लड्डू को इंटीग्रेटेड चाइल्ड डेवलपमेंट सर्विसेस में शामिल किया गया है। इसी तरह ओडिशा का मलकानगिरी मई 2020 में एग्रो इकोलॉजी और एग्रो बायोडायवर्सिटी कमिटी बनाकर राज्य का ऐसा पहला जिला बन गया है। 

उत्तराखंड के कृषि विभाग में ऑर्गेनिक फार्मिंग के संयुक्त निदेशक एके उपाध्याय बताते हैं कि राज्य सरकार ने ऑर्गेनिक एग्रीकल्चर एक्ट 2019 लागू करके अपने 10 ब्लॉक को जैविक घोषित कर दिया है। इन सभी ब्लॉक में रासायनिक उर्वरक और कीटनाशक बिक्री और इस्तेमाल पूर्णत: बंद कर दिया है। उत्तराखंड ऑर्गेनिक कमोडिटी बोर्ड के प्रबंध निदेशक विनय कुमार के अनुसार, जैविक किसानों की मदद के लिए बोर्ड किसानों को सीधे खरीदारों से जोड़ रहा है। जैविक हाट, मेले, प्रदर्शनी, जैविक रसोई, जैविक आउटलेट्स को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। कुमार कहते हैं कि उनकी योजना राज्य के हर जिले में 13 ऑर्गेनिक आउटलेट्स, खासकर धार्मिक और पर्यटन स्थलों के रास्ते में खोलने की है। कर्नाटक के वरिष्ठ कृषि अधिकारी बताते हैं कि रायथा सिरि योजना 2019-20 के अंतर्गत मिलेट पैदा करने वाले किसानों को 10,000 रुपए प्रति हेक्टेयर देने का प्रावधान है। ज्यादातर किसान मिलेट्स बिना रासायनिक उर्वरकों के पैदा करते हैं। कर्नाटक सरकार ने मिलेट्स को जन वितरण प्रणाली के साथ जोड़ा है और जैविक रागी और ज्वार को न्यूनतम समर्थन मूल्य से 20-25 प्रतिशत ज्यादा पर खरीदने की घोषणा की है। राज्य में किसानों के बड़े संगठन कर्नाटक राज्य रायता संघ के अध्यक्ष चामरस पाटिल बताते हैं कि यह घोषणा अच्छी है पर यह जमीन पर अब तक लागू नहीं हुई है। 

प्राकृतिक खेती के प्रयास 

आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, हरियाणा, कर्नाटक और केरल जैसे राज्य प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने का प्रयास कर रहे हैं। आंध्र प्रदेश ने 2027 और हिमाचल प्रदेश ने पूरे राज्य को 2022 तक प्राकृतिक कृषि के अंदर लाने का लक्ष्य रखा है। आंध्र प्रदेश ने खरीफ 2016 से क्लाइमेट रेसिलिएंट जीरो बजट नेचुरल फार्मिंग कार्यक्रम की शुरुआत की। राज्य सरकार की अपनी गैर-लाभकारी संस्था रयथु साधिकार इस कार्यक्रम को कृषि विभाग के अधिकारियों, गैर-सरकारी संगठनों तथा किसानों को साथ लेकर लागू कर रही है। रयथु साधिकार संस्था के वरिष्ठ सलाहकार जी मुरलीधर बताते हैं, “इस कार्यक्रम को अब कम्युनिटी मैनेज्ड नेचुरल फार्मिंग प्रोग्राम भी कहा जा रहा है। एक किसान को प्राकृतिक खेती में बदलने में लगभग 25,550 रुपए का खर्च आता है जबकि एक ग्राम पंचायत पर यह खर्च करीब एक करोड़ आता है।” राज्य सरकार के अनुसार, मार्च 2020 तक राज्य के 6.2 लाख यानी राज्य के कुल किसानों में 10.4 प्रतिशत इस कार्यक्रम में नामांकित किए गए हैं। इनमें से 4.4 लाख किसान (राज्य के कुल किसानों का 7.5 प्रतिशत) 4.5 लाख एकड़ भूमि पर प्राकृतिक कृषि कर रहे हैं। यह राज्य की शुद्ध बोई गई जमीन का 2.9 प्रतिशत है। राज्य के हर जिले में लगभग 4.8 से 12.4 प्रतिशत किसान, जिले की 1.5 से 6.6 प्रतिशत भूमि पर प्राकृतिक कृषि में संलग्न हैं।



अनंतपुर जिले के कादिरी मंडल के कुछ किसान बताते हैं कि उनको प्राकृतिक खेती में एक आशा की किरण दिखाई देती है। सूखा प्रभावित क्षेत्र होने और रोजगार के साधन न होने से हर वर्ष बड़े स्तर पर किसानों को शहरों की तरफ पलायन करना पड़ता है। मल्लागागारीपल्ली गांव में रहने वाले के शिवराम रेड्डी एक ऐसे ही किसान हैं जो शहरों से गांव लौट आए हैं और अब प्राकृतिक खेती में सफलता हासिल कर खुश हैं। दिगुवापल्ली गांव के किसान नरसिम्हुलु और उसके भाई भी अपने आसपास के गांवों में कुछ प्राकृतिक किसानों की सफलता को देखते हुए शहरों से लौटने के लिए प्रोत्साहित हो रहे हैं। क्लाइमेट रेसिलिएंट जीरो बजट प्राकृतिक कृषि कार्यक्रम में शामिल सेंटर फॉर सस्टेनेबल डेवलपमेंट के कार्यकारी निदेशक रामनजनेयुलु बताते हैं कि हम रसायन मुक्त कृषि की ट्रेनिंग दे रहे हैं। आंध्र प्रदेश में कृषि विभाग के सलाहकार व रयथु साधिकार संस्था के उपाध्यक्ष टी विजय कुमार बताते हैं कि सूखा प्रभावित रायलसीमा क्षेत्र के लिए प्री मॉनसून ड्राई सोइंग नाम की नई पद्धति विकसित की गई है, जिससे वायुमंडल में मौजूद जलवाष्प का इस्तेमाल करके किसान सूखा प्रभावित क्षेत्रों में भी खेती कर पा रहे हैं। 

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