
फसल की कीमतों को स्थिर बनाए रखने और किसानों को लाभ पहुंचाने के लिए बनाई गई केंद्र सरकार की प्रमुख ऑपरेशन ग्रीन्स योजना ने 2024-25 के लिए अपने आवंटित बजट का मात्र 34 प्रतिशत ही खर्च हो पाया है।
यह स्थिति तब है जब महाराष्ट्र में प्याज के किसान भारी नुकसान से लगातार जूझ रहे हैं और पूर्वी राज्यों में आलू की कमी है। यह बात संसदीय रिपोर्ट में कही गई है। ध्यान रहे कि यह योजना इसीलिए बनाई गई थी ताकि किसान और उपभोक्ताओं दोनों लाभ की स्थिति में रहें।
2018 में शुरू की गई इस योजना का उद्देश्य किसानों की आय और उपभोक्ताओं द्वारा फसलों के लिए भुगतान की जाने वाली राशि में उनका हिस्सा बढ़ाना था। इसके लिए फार्म गेट अवसंरचना का निर्माण किया गया जो किसानों को भंडारण सुविधाओं जैसी बेहतर कीमतें मिलने तक माल को स्टोर करने की अनुमति देता है।
इसने एक मूल्य श्रृंखला विकसित करने की भी योजना बनाई और शुरुआत में कीमतों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव और कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने के लिए टमाटर, प्याज और आलू पर ध्यान केंद्रित किया गया। 2021-22 में इस योजना का विस्तार किया गया और इसके अंतगर्त 22 ऐसी फसलों को भी शामिल किया गया, जिनके शीघ्र ही खराब होने का अंदेशा होता है।
हालांकि कृषि, पशुपालन और खाद्य प्रसंस्करण पर बनी संसदीय स्थायी समिति द्वारा 17 दिसंबर 2024 को पेश की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि योजना की स्थिति अब तक निराशाजनक ही बनी हई है।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से ताल्लुक रखने वाले सांसद चरणजीत सिंह चन्नी की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि 11 अक्टूबर 2024 तक आवंटित 173.40 करोड़ रुपए के बजट में से केवल 59.44 करोड़ रुपए का उपयोग किया गया था जो बजट अनुमान का मात्र 34.27 प्रतिशत ही है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि बजट का 65.73 प्रतिशत शेष रहने के साथ केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय (जिसके अंतर्गत यह योजना आती है) को व्यय विभाग के दिशानिर्देशों का पालन करने में संघर्ष करना पड़ सकता है जो तिमाही व्यय सीमा निर्धारित करते हैं। इसके अलावा इस वित्तीय वर्ष में पूरा होने के लिए निर्धारित 10 परियोजनाओं में से 14 अक्टूबर 2024 तक केवल तीन ही पूरी हो पाईं थीं।
जैसे-जैसे वित्तीय वर्ष अपनी अंतिम तिमाही में प्रवेश कर रहा है ऑपरेशन ग्रीन्स के तहत अप्रयुक्त निधि और अधूरी परियोजनाएं, इस योजना के प्रभाव और अस्थिर कृषि बाजारों की चुनौतियों का समाधान करने की सरकार की क्षमता पर ही सवाल उठा रही हैं।
इस योजना की सीमित सफलता महाराष्ट्र में स्पष्ट रूप से दिखाई देती है, जहां प्याज के किसान कीमतों में गिरावट से जूझ रहे हैं। प्याज की कीमतों में केवल 15 दिनों में लगभग 50 प्रतिशत की गिरावट आई है जो कि मांग से अधिक आवक के कारण है। किसान विरोध कर रहे हैं और निर्यात को बढ़ावा देने और अपने मार्जिन में सुधार करने के लिए 20 प्रतिशत निर्यात शुल्क हटाने की मांग कर रहे हैं। पिछले एक साल में सरकार द्वारा किसानों की तुलना में उपभोक्ताओं के पक्ष में की गई कई नीतियों में बदलाव के कारण प्याज उत्पादकों को भारी निराशा है।
दिसंबर 2023 में सरकार ने घरेलू आपूर्ति की कमी को दूर करने और यह सुनिश्चित करने के लिए कि यह घरेलू उपभोक्ताओं को उचित मूल्य पर उपलब्ध हो, प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया। शुरुआत में 31 मार्च 2024 को समाप्त होने वाला प्रतिबंध अनिश्चित काल के लिए बढ़ा दिया गया था, जिसे 4 मई को हटा लिया गया।
हालांकि निर्यात शुल्क लगाते हुए 45,884 रुपए प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य लागू करने से किसानों का मार्जिन और कम हो गया, जिससे उनका गुस्सा और बढ़ गया। जबकि प्याज किसान विरोध कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर ओडिशा और झारखंड जैसे राज्य आलू की कमी से जूझ रहे हैं। पश्चिम बंगाल से आलू की आपूर्ति पर प्रतिबंध (जहां बेमौसम बारिश और ठंड के कारण उत्पादन में गिरावट देखी गई ) ने इस मुद्दे को और बढ़ा दिया है।
यह संकट ऑपरेशन ग्रीन्स के सामने आने वाली चुनौतियों की असलियत को उजागर करता है। कायदे से इस योजना को यह सुनिश्चित करना होता है कि किसानों को उनकी फसलों के लिए उचित मूल्य मिले और साथ ही साल भर उपभोक्ताओं के लिए किफायती मूल्य बना रहे।