पुराने उपकर का नहीं हुआ कृषि विकास में इस्तेमाल, अब नए उपकर से कृषि सरंचनाएं बनाने का वादा

सरकार ने कृषि सरंचनाओं को खड़ा करने के लिए दलहन समेत कुछ उत्पादों पर कृषि संरचना उपकर लगाया है लेकिन क्या यह कदम वाकई खेती-किसानी के संकट का समाधान कर पाएगा।
पुराने उपकर का नहीं हुआ कृषि विकास में इस्तेमाल, अब नए उपकर से कृषि सरंचनाएं बनाने का वादा
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कृषि विकास में सबसे बड़ा रोड़ा गांवों और किसानों के पास सरंचनाओं का न होना है। सरकार ने भी इस बात को स्वीकार किया है। साथ ही आम बजट 2021-22 के भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पेट्रोल-डीजल, वाइन, कुछ दलहनों समेत अन्य उत्पादों पर कृषि संरचना और विकास उपकर (एआईडीसी)लगाए जाने की घोषणा की है। हालांकि बजट इस उपकर की पारदर्शिता को लेकर कुछ भी नहीं कहा गया है। वहीं, न ही इसका इस्तेमाल कैसे किया जाएगा उसके बारे में कुछ बताया गया है। वहीं, पूर्व में सरकार के जरिए वसूले गए उपकरों के इस्तेमाल का रिकॉर्ड बेहद खराब रहा है।

सीएजी (कैग) करीब दो दशक से यह बात दोहराती रही है कि उपकरों का इस्तेमाल तय की गई जगह पर ही किया जाना चाहिए और इसके बावजूद सरकार उपकर की रकम का बहुत थोड़ा सा हिस्सा ही तयशुदा योजनाओं में खपाती है।

उपकर (सेस) दरअसल कर के ऊपर लगने वाले कर को ही उपकर कहते हैं। इन्हें सरकार वसूलती है ताकि इसका इस्तेमाल लोगों की भलाई, कल्याण या उन्नति से जुड़ी योजनाओं को बेहतर और मजबूत बनाने में किया जा सके। इसलिए उपकर के पैसे को योजना से जुड़े खास मकसद वाले रिजर्व फंड में संसद की अनुमति से डाला जाता है, ताकि संबंधित मंत्रालय विभाग रिजर्व फंड का इस्तेमाल आसानी से कर सके। 

बीते वर्ष आई सीएजी कैग (2018-19) की रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ था कि 1 जुलाई, 2017 को जीएसटी में शामिल किए जाने वाले कई उपकरों में कुल 9 ऐसे उपकर थे, जिन्हें 2018-19 में भी वसूला गया और जिनका इस्तेमाल नहीं किया गया। ऐसे कुल 9 उपकरों से 2018-19 में कुल 414.51 करोड़ रुपए वसूले गए और इसमें 168.9 करोड़ रुपए का कृषि कल्याण कोष के लिए वसूला जाने वाला उपकर भी शामिल था। 

सरकार की प्राथमिकता में यदि कृषि क्षेत्र का कल्याण है तो कृषि कल्याण के लिए वसूले जाने वाले उपकर का इस्तेमाल आखिर क्यों नहीं किया गया। सिर्फ कृषि ही नहीं अन्य वसूले गए सेस के प्रतिबद्ध तरीके से इस्तेमाल न किए जाने की बात सीएजी रिपोर्ट में कही गई। हालांकि, इस बार के आत्मनिर्भर के दावे वाले आम बजट पर एग्री इंफ्रा सेस को लेकर कृषि व्यापारिक संगठनों की राय अलग है। 

इंडिया पल्सेस एंड ग्रेंस एसोसिएशन (आईपीजीए) के सदस्य बिमल कोठारी ने डाउन टू अर्थ से बातचीत में कहा कि एग्री इंफ्रा डेवलपमेंट उपकर एक स्वागत योग्य कदम है। दलहनों के आयात पर इंपोर्ट ड्यूटी को 10 फीसदी और बाकी कृषि सरंचना विकास उपकर के लिए लगाया गया है। ऐसे में सरकार के पास सरंचना विकास के लिए अच्छा फंड जुटेगा जोकि इस वक्त की बड़ी जरूरत है।

उन्होंने कहा कि साल में करीब 20 लाख टन दलहनों का आयात होता है। इसमें 10 लाख टन मसूर शामिल होती है और बाकी 10 लाख टन में अन्य दालें। इस ट्रेड का आकार करीब 7 से 8 हजार करोड़ रुपये होता है, जिससे करीब 2400 करोड़ रुपए का उपकर कृषि संरचना विकास के लिए जुटेगा।   

नया कृषि संरचना और विकास उपकर की दरें 

2.5 फीसदी उपकर सोना पर, चांदी और डोर बार्स, 100 फीसदी उपकर एल्कोहॉलिक बेवरेज पर, 17.5 फीसदी उपकर पॉम कच्चा खाद्य तेल पर, 20 फीसदी कच्चा सोयाबाीन और सनफ्लॉवर तेल, 35 फीसदी सेब, 1.5 फीसदी कोयला लिग्नाइड और पीट, 5 फीसदी विशेष फर्टिलाइजर, 30 फीसदी काबुली चना, 50 फीसदी बंगाली चना और छोला चना, 20 फीसदी मसूर  (चारो दाल पर इस उपकर के साथ 10 फीसदी आयात शुल्क भी लगेगा )

कैसे हो किसानों की आय डबल 

किसानों की आय डबल करने का सुझाव देने वाली दलवई समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि इस देश का 85 फीसदी किसान छोटा और सीमांत किसान है जिसका 40 फीसदी सरप्लस कृषि उत्पादन ऐसा होता है जो बाजार के लायक है लेकिन उसके पास एक  भी ऐसा आसानी से उपलब्ध होने वाला बाजार नहीं है जो उसके उत्पाद की उचित कीमत देता हो।  17वीं लोकसभा में केंद्रीय कृषि मंत्रालय की स्थायी समिति ने अपनी हालिया  “कृषि बाजार की भूमिका और साप्ताहिक ग्रामीण हाट” की सिफारिश व कार्रवाई वाली रिपोर्ट में कहा है कि राष्ट्रीय किसान आयोग कि सिफारिश के मुताबिक भारत में पांच किलोमीटर की परिधि में एक संयुक्त बाजार होना चाहिए। ऐसे में करीब 41 हजार संयुक्त कृषि बाजार ही राष्ट्रीय आयोग के मानक (पांच किमी परिधि पर एक बाजार) को पूरा कर सकते हैं। यानी 41 हजार संयुक्त कृषि बाजार किसानों को उनके उत्पादन का सही मूल्य दिलवा सकते हैं। जबकि देश में औसत 469 वर्ग किलोमीटर दायरे में  ही एक कृषि बाजार है।

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