माधव शर्मा
राजस्थान के पुष्कर में पशु मेला लगा है और हनुमंत सिंह राठौड़ पशु मेले में अपने 10 ऊंटों को बेचने के लिए लाए हैं। मेले को शुरू हुए चार दिन बीत चुके लेकिन हनुमंत का एक भी ऊंट अभी तक नहीं बिक सका है। थक-हार कर हनुमंत वापस पाली जिले के सांदडी गांव में अपने घर लौट आये हैं। मेले तक जाने और आने का उन्होंने दस हजार रुपए खर्च कर दिया और पाया कुछ नहीं।
यह दुखड़ा मेले में ऊंटों की अच्छी बिक्री की उम्मीद लेकर पहुंचने वाले कई ऊंट पालकों का है। मेले की कभी शान रहने वाले ऊंटों का आज कोई अच्छा मोल देने वाला नहीं बचा है। राजस्थान के तमाम ऊंट पालक पिछले कई सालों से इन्हीं मुसीबतों से गुजर रहे हैं। इनके पास अपने ऊंटों को पालने के पैसे भी नहीं हैं। न ही पाबंदी के कारण ये पालक ऊंटों को दूसरे राज्यों में बेंच सकते हैं।
पुष्कर मेले में पहुंचे हनुमंत सिंह राठौड़ डाउन टू अर्थ से बताते हैं “मेरे पास कुल 50 ऊंट हैं। इनमें से 10 ऊंट मेले में बेचने के लिए आया था। 3 दिन गुजर चुके हैं लेकिन मेरा एक भी ऊंट नहीं बिक सका है।”
हनुमंत बताते हैं कि पहले ऊंट का बच्चा भी 10 हजार रुपये तक में बिकता था, अब जवान ऊंट भी पांच सौ से तीन हजार रुपए तक में बिक रहा है। ऊंटों की बिक्री नहीं होने के कारण मजबूरी में हमें ऊंटनियां बेचनी पड़ रही हैं। हालात ये हैं कि मेले में कम रेट पर चारा उपलब्ध होने के बावजूद हमारे पास ऊंटों के लिए चारे तक के पैसे नहीं हैं।
मेले में आए ऊंट पालक अमनाराम राईका बताते हैं कि हम कभी ऊंटनी नहीं बेचते थे। इसकी एक वजह हमारी धार्मिक मान्यता है तो दूसरी वजह यह भी है कि उनसे ही ऊंट का कुनबा बढ़ता है। अब ऊंट तो बिक नहीं रहे और खराब भाव के कारण पालक ऊंटनी ही बेच दे रहे हैं।
एक तो पशु पालक की जेब तंग है, दूजा पशु मेले में ऊंटों को चारा देने का भी इंतजाम नहीं किया गया है। पशुपालक धन्नाराम कहते हैं कि एक दिन में ऊंट 20 किलो का चारा खाता है। बाहर से 15 रुपये किलो का चारा खुद लाना पड़ता है। इस चारे में ग्वार और मूंग की फली के छिलके शामिल होते हैं।
ऊंट के पालन का काम करने वाले रेवारी समाज के भंवर रेवारी डाउन टू अर्थ को बताते हैं कि पहले गांवों में चारागाह और गोचर होते थे। अब इन पर अतिक्रमण है। कृषि विभाग के मुताबिक पूरे राज्य में कुल 17 लाख हेक्टयर चारागाह भूमि बची है।
आखिर ऊंट और उनके पालक क्यों बेहाल हो गए ?
ऐसा नहीं है कि सरकार ने लगातार ऊंटों की घटती संख्या को बढ़ाने के बारे में सोचा नहीं। सोचा जरूर लेकिन अमल रत्तीभर नहीं किया गया। यही वजह है कि ऊंटों की खुराक को पूरा करने वाले उनके पालकों की हालत विगत कुछ वर्षों से बिगड़ती चली गई है। बीते एक साल से ऊंटों को पालने के लिए सरकारी सहायता ऊंट पालकों को नहीं दिया गया है। ऊंटों की संख्या और प्रजनन को बढ़ावा देने के लिए 2016 में उष्ट्र विकास योजना शुरु की गई थी। इस योजना के तहत ऊंट पालकों को ऊंटनी के ब्याहने पर टोडरियों (ऊंटनी के बच्चे) के रख-रखाव के लिए तीन किश्तों में 10 हजार रुपए सरकार की ओर से दिए जाते हैं। योजना पर चार साल में 3.13 करोड़ रुपए खर्च होने थे। टोडरिया के पैदा होने पर तीन हजार, नौ महीने का होने पर तीन हजार और फिर 18 माह की उम्र होने पर चार हजार रुपए देय होते हैं।
ऊंट पालकों का कहना है कि नई सरकार बनने के बाद से किसी भी ऊंट पालक को यह राशि नहीं दी गई है। ऐसी ही मांगों को लेकर ऊंट पालकों ने आंदोलन की चेतावनी भी दी थी, हालांकि 07 नवंबर, 2019 को पशु विभाग की ओर से जल्द ही राहत दिए जाने की सांत्वना के बाद आंदोलन वापस ले लिया गया है। पशुपालकों ने सरकार से उष्ट्र विकास योजना के तहत मिलने वाली सहायता राशि को 10 हजार रुपये से बढ़ाकर 30 हजार रुपये करने की भी मांग की है। 07 नवंबर, 2019 को राजस्थान, पशुपालन विभाग के निदेशक शैलेष शर्मा और अन्य अधिकारियों ने पशुपालकों से मुलाकात भी की। इस दौरान पशुपालकों ने 11 सूत्रीय मांग पत्र अधिकारियों को सौंपा और कहा कि अगर तय वक्त में समस्याओं का समाधान नहीं हुआ तो तहसील स्तर पर आंदोलन किया जाएगा। हालांकि, पशुपालन विभाग ने उष्ट्र विकास योजना की सहायता राशि को पशुपालकों तक जल्द ही पहुंचाने की बात कही है।
रेवारी समाज है सबसे बड़ा ऊंट पालक
राजस्थान में रेवारी समाज मुख्य रूप से ऊंट पालता है। रेवारी समाज के धर्मगुरु रामरघुनाथ का कहना है कि ऊंट केे राज्य पशु घोषित होने के बाद से ऊंट पालकों की हालत खस्ता हो गई है।
ऊंटों को दूसरे राज्य में ले जाने पर भी कई तरह की पाबंदियां लगी हैं। 2015 में राजस्थान ऊंट वध का प्रतिषेध व निर्यात का विनियमन कानून बनने के बाद उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा, पंजाब से आने वाले खरीददार हर साल कम हो रहे हैं।
समाज का कहना है कि वे इस कानून में संशोधन चाहते हैं ताकि ऊंटों को आसानी से एक राज्य से दूसरे राज्यों में बिक्री के लिए ले जाया जा सके। वहीं, ऊंटपालकों ने भीलवाड़ा में ऊंट के दूध प्लांट को लगाने की मांग भी की है, इसकी घोषणा मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपने बजट में की थी। दरअसल उदयपुर, चित्तौड़ और भीलवाड़ा इलाके में करीब सात हजार लीटर ऊंट के दूध का उत्पादन होता है।
अलग-अलग दावे
पशुपालन विभाग, अजमेर में संयुक्त निदेशक और पुष्कर के मेला अधिकारी अजय अरोड़ा के अनुसार मेले में अब तक करीब छह हजार पशु आए हैं। इनमें अब तक 201 पशुओं की ही बिक्री हुई है, जिसमें 142 ऊंट और 59 घोड़े शामिल हैं। पशु पालकों के बीच 49.67 लाख रुपए का लेन-देन हुआ है। मेले में करीब 3 हजार ऊंट, 2400 घोड़े बिकने के लिए लाए गए हैं। अधिकारी के मुताबिक सर्वाधिक 40 हजार और न्यूनतम 5 हजार रुपए में ऊंट बिका है।
हालांकि पशुपालक मेला अधिकारी अजय अरोड़ा की बातों से इत्तेफाक नहीं रखते। मेले में आए बाबूलाल रेवारी कहते हैं कि हर साल मेले की रंगत कम होती जा रही है। सरकार ने ऊंट को राज्य पशु तो बना दिया लेकिन उसके संवर्धन के लिए कुछ नहीं किया। पहले हम एक राज्य से दूसरे राज्य में आसानी से ऊंट बेच दिया करते थे लेकिन अब कानून में रोक की वजह से ये काम बंद हो गया है। रोक होने के कारण ऊंटों की तस्करी भी बढ़ी है और इसका खामियाजा हम पशु पालकों को भुगतना पड़ रहा है। पुष्कर मेले में पशुपालक अपने ऊंट 5-8 हजार रुपये में बेच रहे हैं. जबकि राज्य पशु बनने से पहले 8-10 हजार रुपए में ऊंट के बच्चे बिक जाते थे।
राजस्थान में लगातार कम हो रही ऊंटों की संख्या
ऊंटों की तस्करी, बाहर ले जाने पर रोक और उपयोगिता में कमी आने कारण प्रदेश में ऊंटों के अस्तित्व पर संकट आ गया है। 2012 पशुगणना के मुताबिक राज्य में 3.26 लाख ऊंट थे। 2017 की पशु गणना के अनुसार इनकी संख्या 2.13 लाख ही रह गई है। हालांकि ऊंट पालक इस संख्या को 1.5 लाख तक ही मानते हैं। देश के 80 फीसदी ऊंट राजस्थान में ही पाए जाते हैं। हनुमंत सिंह राठौड़ कहते हैं, ऊंट पश्चिमी राजस्थान के जीवन की धुरी हुआ करता था, लेकिन बीते 15-20 सालों में यहां भी यातायात के साधन बढ़े हैं। इसीलिए परिवहन में इनका उपयोग कम हुआ है। खेती में नए साधनों और मशीनों के कारण इनकी उपयोगिता कम हुई है। ऊंटों को चरने के लिए जमीन भी नहीं बची है। वन विभाग इन्हें वन को उजाड़ने वाला पशु मानता है जबकि ऊंट हमेशा हरी पत्तियों पर एक बार ही मुंह मारता है और आगे बढ़ जाता है। हमारी मांगों में वन भूमि पर ऊंटों को चरने की छूट देने की भी मांग शामिल है।
ऊंटों की प्रजातियां
राजस्थान में कई नस्लों के ऊंट पाए जाते हैं। इनमें से मुख्य नाचना और गोमठ ऊंट हैं। नाचना नस्ल के ऊंट सवारी या तेज दौड़ने वाले होते हैं जबकि गोमठ ऊंट कृषि संबंधी या भारवाहक के रूप में काम में लिया जाता है। इसके अलावा अलवरी, बाड़मेरी, बीकानेरी, कच्छी, सिंधु और जैसलमेरी ऊंट की नस्लें भी राजस्थान में मिलती हैं।